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यह असत्य वचन , सम्पत्तिरूनी : कोटी नदी को सुखाने को लिये ग्रीष्म ऋतु के प्रचण्ड सूर्य के तेज के समागविपतिरूपी लना को सींचने के लिए मेघ के जल के समान है, उज्ज्वल मु. यश रूपी हरे भरे वन को भस्म करने के लिए भयङ्कर दावाग्नि के . समान है, कल्याणलक्ष्मी कपी लता का नाश करने के लिए म.. दोन्मत्त हस्ती के समान है, और पाप का मूल कारण है। ऐसे असत्य वचन को पुण्यात्मा पुरुष, कस बोल्न सकते हैं ? ॥३१॥ तस्याम्भो ज्वलनः स्थलं जलनिधिर्मित्रं रिपु : किङ्करा:
देवाः पूर्विपिनं गृहं गिरिपतिर्माल्यं फणी केशरी । सारङ्गोऽस्त्रमहा दम्बुजदले कोष्टा मृगारिFि FATE पीय विषम सम वदतिया सत्य वच पावनम् ३२॥
AFN STARTEN बड़े आश्चर्य की बात है कि जो पवित्र सत्यवचन बोलता है,
IKELKKAUTTAISRIFTIETSTA उसके अग्नि जलसमान हो जाता है, समुद्र स्थलसमान, तथा शत्रु मित्रसमान हो जाता है । देव सवक के समान, तथा वन नगर के समान हो जाता है । पर्वन व क ममान, तथा सर्प माला के समान हो जाता है । मिह मृग के समानः तथा घाण आदि अस्त्र कमल के पत्ते समान हो जाते हैं। व्याघ्र ग्वग्गोश का समान, तथा विष अमृत के समान हो जाता है ॥३२॥
..अचौर्यवती महिमा--- सिद्विस्तं वृणुते सुकीर्तिरमला तस्मै ददात्यादरं, तंसम्पत्सकला ममेति न कदाऽप्युा भवार्तिश्च तम्।
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