Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नीतिदीपिका छह काय के जीवों की दया इसकी छाया है, और निर्दोष संघ मूलजड़ है । वृक्ष की जड़ नष्ट होजाने पर पत्ते फूल शाखा आदि की उत्पत्ति नहीं हो सकती है, इस लिए धर्म कल्पवृक्ष को सदा हरा भरा रखने के लिए संव की पूरी तरह रक्षा करनी चाहिये ॥२३॥ मुक्ता रत्नवरैर्विभाति बहुभी रत्नाकरो वीचिभि नागः सन्मणिभिः सती स्वपतिनाऽहश्चित्रभानोः करैः। द्यौर्देवैः क्षणदेन्दुना सुयशसा ते सद्गुगा देहिनां, तत्सङ्घमणिविभाति विमलो धर्मेण सत्यात्मना ॥२४॥ जैसे सुन्दर सुन्दर रत्नों से मोती, बहुत सी लहरों से समुद्र, श्रेष्ठ मणियों से नाग, अपने पति से सती-पतिव्रता स्त्री, सूर्य की किरणों से दिवस तथा देवों से स्वर्ग, और चन्द्रमा से रात्रि, एवं मुयश स प्राणियों के गुण शोभा पाते हैं । इसी प्रकार सत्यधर्म से निर्मल संघ रूप मणि शोभा पाती है ॥२४॥ अहिंसा- दया की महिमासंसाराम्बुधिनौश्च दुष्कृतरजःसन्नाशवात्या श्रियां, दृती मुक्तिसखा सुबुद्धिसहजा दुःखाग्निमेघावली । निःश्रेणी त्रिदिवस्य सर्वसुखदा यात्यगला दुर्गते. जीवेषु क्रियतां दयाऽलमपरः कृत्यैरशेषैर्जनाः ॥२५॥ हे भव्यजीवो ! जीवदया संसाररूपी समुद्र को तिरने के लिये नाव के समान, और दुष्कर्म रूपी गज़ को उड़ाने के लिए For Private And Personal Use Only

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