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सठियाप्रन्थमाला
(मुनि आर्यिका श्रावक श्राविका ) है । ऐसा विचार कर जिनेन्द्र भगवान् के उक्त चतुर्विध संघ की सेवा-भक्ति करनी चाहिये॥२१॥
संघः कल्पतरुः सदैव भजनात् संघः स चिन्तामणिः, स्वेष्टं दुर्लभमप्युपार्जयति यत्सेवावशात्सजनः । संघोऽसौ बलिदुष्टकर्मदलने दक्षः पचिर्तुःखभिसंघो जैनमते सदा विजयते दारिद्रयदावानलः ॥२२॥
सदा सेवन किया गया यह संघ, कल्पवृक्ष और चिन्तामणिरत्न के समान मनोवांछित पदार्थ को देनेवाला है । इसकी संवा करके सज्जन पुरुष अत्यन्त दुर्लभ इष्टवस्तु को पाते हैं। यह संघ प्रबल दुष्टकर्मों का नाश करने में प्रवीण है। तथा दुःखों का नाश करने के लिए वज्र के समान, और दारिद्रय को जलाने के लिए दावानल के समान है। इस प्रकार उक्तगुणों से भूषित यह चतुर्विध संघ जैनमत में सदा जयवंत रहता है ॥२२॥ धर्मोऽसौ सुरपादपस्सुमुनयः शाखाश्चरित्रोत्तमाः,
पत्रौधो मुनियोधवाक्यनिचयः पुष्पं तपः शोभनम् । छाया जीवदया च मूलममल: संघस्तु रक्ष्यो यतो. मूले नाशमुपागतेदलशिखापुष्पोद्गमो नो भवेत्॥२३॥
धर्म कल्पवृक्ष के समान चिन्तित पदार्थ को देने वाला है। चारित्र पालने वाले तत्त्वज्ञानी मुनि इस धर्मकल्पवृक्ष की शाखा हैं। मुनीश्वरों के हितोपदेश इसके पत्ते हैं। पवित्र तपस्या पुष्प तथा
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