Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नौतिदीपिका जिसतरह सूर्य को देखकर अन्धकार मिट जाता है, इसी तरह भगवान् की पूजा करने वाले का दारिद्रय बहुत दूर भाग जाता है । जैसे दुष्ट स्त्री अपने पति को छोड़ देती है, इसी प्रकार दुर्गति और कुदशा जिन पूजक पुरुष को त्याग देती है ॥११॥ स्नानं भावजलैर्विलेपनमथो तद्वोधसच्चन्दनैः, पुष्पैः शुद्धमनोमयैश्च सततं ध्यानेन धूपं तथा । दीपं ज्ञानमयं शमाज्यनिभृतं कृत्वा जिनस्यार्चनां, ये कुर्वन्ति निरञ्जनस्य नितरां धन्या मतास्ते जनाः ॥१२॥ शुद्धभावरूप जल से स्नानकर ज्ञानरूप उत्तम चन्दन का लेप करे । पवित्र मानसिक विचाररूप पुष्प चढ़ाकर ध्यान रूप धूप खेवे, तथा शान्ति रूप घृत से भरा ज्ञानमय दीपक जलावे । इसप्रकार जो मनुष्य कर्मकलङ्करहित- निरञ्जन जिनेन्द्र भगवान् की पूजा करते हैं, उनको धन्य है ॥१२॥ चार श्लोकों द्वारा गुरुभक्ति का वर्णन करते हैं.सन्मार्ग परिवर्तते स्वयमथाऽन्यान्वतयत्यस्पृहः सद्बोधेन भवाम्बुधिं तरति योऽन्यांस्तारयत्यादरात् । शान्तः सत्यशुचिर्दयालुरभयो यः सद्गुणैर्मण्डितः । सेव्यः स्वीयहितैषिणा गुरुवरः संसारसन्तारकः ॥१३॥ - जो स्वयं मत्यमार्ग पर चलते हैं, और निः स्वार्थ बुद्धि से दू For Private And Personal Use Only

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