Book Title: Niti Dipak Shatak
Author(s): Bhairodan Jethmal Sethiya
Publisher: Bhairodan Jethmal Sethiya

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 交换房 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir inte इसलिए धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थ की सिद्धि का मुख्य उपाय एक धर्म ही है || ३ || प्राप्यैतन्नरजन्म दुर्लभतरं धर्मे न ये कुर्वते, ते क्लेशाय भवेयुरेव तनयाः पित्रोः कुलस्याऽऽधयः । लब्धं कल्पतरं विहाय सुखदं नानाप्रमादान्विताः, धत्तरं हि कठोरकण्टकयुतं संशोधयन्ते भ्रमात् ॥ ४ ॥ जो मूर्ख अत्यन्त दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर धर्म का सेवन नहीं करते हैं, वे केवल अपने माता पिता को कष्ट के लिये हुए हैं, और कल को पीड़ा देने वाले हैं, तथा ऐसे प्रमादी - आलसी मनुष्य प्राप्त हुए सुखकारी कल्पवृक्ष को त्याग कर सुख के लिए तीखे कांटे वास्ते धतूरेको देते हैं ॥ ४ ॥ मनुष्यजन्म की सर्वोत्कृष्टतापात्रे रत्नमये पदं कलुषितं प्रक्षालयेन्मन्दधीः, पीयूषेण स वाहयेत्क रिवरं काष्ठाश्ममृत्कण्टकान् । काकानुडुयितुं क्षिपेत्करतला च्चिन्तामणि सागरे, दुष्प्रापं नरजन्म यो गमयति व्यर्थे प्रमादादिभिः ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use Only जो प्राणी इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर आलस्य विषय कषाय निद्रा आदि में गाता है, वह मूर्ख रत्नके पात्र में अमृत से मैले पैर धोता है। हाथी पर कांटे मिट्टी काठ पत्थर लादता है। हाथ में रखे हुए चिन्तामणि रत्न को काग उड़ाने के लिये समुद्र में फेंकता है ॥५॥

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