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___गुरुवंदन व्याख्यानश्रवण प्रत्याख्यान ग्रहणविधि (४७)
चैत्यवन्दन करता बनता सुधी जे प्रभु सन्मुख चैत्यवन्दन करता होईए तेमनुज चैत्यवन्दन, स्तवन, स्तुति बोलवी.
चैत्यवन्दन करता वर्ण-अर्थ अने आलबंननो अवश्य उपयोग राखवो जेनुं स्वरूप प्रथम कर्तुं छे.
स्वस्तिकादि तथा चैत्यवन्दनादि प्रभुभक्तिमां लीन थता आत्माओने ते समये धर्मना चारे अंग दान, शील, तप अने भावनी समकाले आराधना थाय छे. आश्रव कषायादि कर्मबन्धना साधनोनो त्याग थाय छे, तथा किंचिदंशे भव्यजीवोने बारे व्रतोनी पण आराधना थाय छे. तथा सम्यक्त्वशुद्धि, दृढता तथा वृछिन तो मुख्य साधन छे.
गुरुवन्दन व्याख्यानश्रवण प्रत्याख्यान ग्रहणविधि.
प्रभु दर्शन-पूजन जेटबुं अगत्यनुं छे तेटबुंज गुरुवन्दन पण खास अगयत्यनुं छे माटे गुरुना स्थानमां आवी विधिपूर्वक गुरुवन्दन करवू, स्वस्तिक