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(२५४) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ श्री सिद्धचक्रनी कीजे सेवा मन वांछित लहीये नित्य मेवा अजर अमर सुखदायक साचो रुडा मनथी नित्य नित्य राचो
श्री नवपद् ६
श्री नवपद ७
नवपदजीनी लावणी. ॥
जगतमें नवपद जयकारी, पूजंता रोग टले भारी । प्रथम पद तीर्थपति राजे, दोष अष्टादश कुं त्यागे॥ आठ प्रतिहारज छाजे, जगत प्रभु गुण बारे राजे । अष्टकरम दल जीतके, सकल सिद्ध थयासिद्ध अनंत। भजो पदबीजे, एक समय शिव जाय । प्रकट भयो निजस्वरूप भारी ॥ १॥ जगतमां ॥ सूरिपदमां गौतम केशी, उपमाचंद्र सूरज जेसी । ऊगार्यों राजा परदेसी, एक भवम् हे शिवलेशी। चोथेपदे पाठक नमुं, श्रुतधारी उवज्झाय, सव्वसाहु पंचम पदमांही, धन्य धन्नो मुनिराय, वखाण्यो वीर प्रभु भारी ॥ २॥ जगतमां ॥