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कळश ॥
(३७७) जस शाहे दीधो, बिरुद सवाइ आपी जी ॥ ४ ॥ श्री विजयदेव सूरि तस पटधर, उदया बहु गुणवंता जी॥ जास नाम दश दिशि छे चावू, जे महिमाए महंता जी ॥५॥श्रीविजयप्रभ तस पटधारी, सूरि प्रतापे छाजे जी ॥ एह रासनी रचना कीधी, सुंदर तेहने राजे जी ॥ ६ ॥.सूरि हीरगुरुनी बहु कीरति, कीर्तिविजय उवझाया जी ॥ सीस तास श्रीविनयविजय वर, वाचक सुगुण सोहाया जी॥णा विद्या विनय विवेक विचक्षण, लक्षण लदित देहा जी ॥ सोभागी गीतारथ सारथ संगत सखर सनेहा जी ॥ ८॥ संवत् सत्तर अडत्रीसा वरसे, रही रानेर चोमासे जी ॥ संघ तणा आग्रहथी मांड्यो, रास अधिक उलासे जी ॥९॥ सार्द्ध सप्त शत गाथा विरची, पहोता ते सुरलोके जी ॥ तेहना गुण गावे छे गोरी, मिली मिली थोके थोके जी ॥१०॥ तास विश्वासभाजन तस पूरण, प्रेम पवित्र कहाया जी ॥ श्रीनयविजयविबुधपयसेवक, सुजशविजय उवझाया जी ॥ ११ ॥ भाग थाकतो पूरण कीधो, तास वचन संकेते जी ॥ तिणे वळी समकितदृष्टि जे नर,