Book Title: Navpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Author(s): Vijayodaysuri
Publisher: Maneklalbhai Mansukhbhai

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Page 393
________________ ( ३७८ ) नवपद विधि विगेरे संग्रह || तेह तणे हित हेते जी ॥ १२ ॥ जे भावे ए भणशे गुणशे, तस घर मंगलमाला जी ॥ बंधुर सिंधुर सुंदर मंदिर, मणिमय झाकझमाला जी ॥ १३ ॥ देह सवल ससनेह परिच्छद, रंग अभंग रसाला जी || अनुक्रमे तेह महोदय पदवी, लहेशे ज्ञान विशाला जी ॥ १४ ॥ "संबोधप्रकरण" मां बतावेली श्री आचार्य गुणनी ४७ छत्रीशीओ. "" "" १ ली छत्रीशी १४ प्रतिरूपादि, १० यतिधर्म, १२ भावना २ जी ५ इन्द्रियसंवर, ९ ब्रह्मगुप्ति; ४ कषायत्याग; ५ महाव्रत, ५ आचार, ५ समिति, ३ गुप्ति. १ विधिप्रतिपन्नचारित्र; गीतार्थवत्सल, सुशील; सेवितगुरुकुल अनुयत्तिपरदेश, कुल - जाति--रूपवान्, संघयणी -धृति--अनाशंसी - अविकत्थ, अमायी, स्थिर, परिपाटीगृहीतवान् जीतपरिषद्, जीतनिद्र, मध्यस्थ, देशज्ञ कालज्ञ भावज्ञ; आसन्नलब्धप्रतिभ बहुदेशभाषज्ञ, पंचाचारयुक्त, सूत्रविधिज्ञ ३ जी

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