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॥ स्तवनो॥ (३०१) ॥ अथ पंचम स्तवनम् ॥ ॥ भवियां श्री सिद्धचक्र आराधो, तुमे मुक्तिमारगने साधो, इह नरनव दुर्लभ लाधो हो लाल ॥ नव पद जाप जपीजे ॥१॥त्रण टंक देव वांदीजे, त्रिहुं काले जिन पूजीजे, आंबिल तप नव दिन कीजे हो लाल ॥ न ॥२॥ सुदि आसो चैत्रज मासे, तप सातमथी अभ्यासे; पद सेव्यां पातक नासे हो लाल ॥ न० ॥३॥ मयणा ने नृप श्रीपाले, आराध्या मंत्र उजमाले, एह दुःख दोहगने टाले हो लाल ॥ न० ॥४॥ एहनी जे सेवा सारे, तस मयगल गाजे बारे, इति भीति अनीति निवारे हो लाल ॥ न० ॥५॥ मिथ्यात्व विकार अनिष्ट, इय जाये दोषी दुष्ट, इण सेव्या समकित पुष्ठ हो लाल ॥ न० ॥ ६॥ जशवंत जिनेंद्र सुसाखे, भाव सिद्धचक्रना गुण भाखे, ते ज्ञानविनोद रस चाखे हो लाल ॥ न०॥७॥इति ॥
॥ अथ सप्तम स्तवनम् ॥ ॥ चिंतामणि स्वामी सच्चा साहेब मेरा ए॥ देशी ॥
आराहो प्राणी साची नवपद सेवा ॥ ए आंक