Book Title: Navpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Author(s): Vijayodaysuri
Publisher: Maneklalbhai Mansukhbhai
View full book text
________________
श्रीपाल महाराजे करेली स्तवना॥ (३७१) तिहां जोगनालिका समता नामे, विश्वनो तारुजी। तें जोवा मांडि उतपथ छांडि उद्यमें; वारूजी ॥ तिहां दीठी दूरे आनंदपूरे, विश्वनो तारूजी। उदासीनता शेरी नहि भव फेरी वक छे. वा० ॥८॥ ते तुं नवि मूके जोग न चूके, विश्वनो तारूजी। बाहिर न अंतर तुंज निरंतर सत्य ; वारूजी ॥ नय छे बहुरंगा तिहां न एकंगा, विश्वनो तारूजी। तुमें नय पक्षकारी छो अधिकारी मुक्तिना वा० ॥९॥ तुमें अनुभव जोगी निजगुण भोगी, विश्वनो तारूजी। तुमें धर्मसंन्यासी शुद्ध प्रकाशी तत्त्वना; वारूजी ॥ तुमें आतमदरसी उपशम वरसी, विश्वनो तारूजी। सींचो गुण वाडी थाये जाडी पुण्यशं. वारूजी ॥१०॥ अप्रमत्त प्रमत न द्विविध कहीजें, विश्वनो तारूजी। जाणंग गुणठाणंग एकज भाव ते ते ग्रह्यो; वारूजी॥ तुमें अगम अगोचर निश्चय संवर, विश्वनो तारूजी। फरस्युं नवि तरस्युं चित्त तुम केरुं स्वप्नमां. वा० ॥११॥ तुज मुद्रा सुंदर सुगुण पुरंदर विश्वनो तारूजी।

Page Navigation
1 ... 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416