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(३६८) नवषद विधि विगेरे संग्रह ॥ श्रीमती मयणासुंदरीए अनुभवथी बतावेलं श्री नव
पदजी आराधन, फल.
नव पद ध्यानेरे पाप पलाय, दुरित न चारो डे ग्रह वक्रनो जी॥४॥ अरि करि सागर हरि ने व्याल ज्वलन जलोदर बंधन भय सवे जी ॥ जाय रे जपतां नव पद जाप, लहे रे संपत्ति इह भवे परभवे जी ॥५॥ बीजा रे खोजे कोण प्रमाण, अनभव जाग्यो मुज ए वातनो जी॥ हुओ रे पूजानो अनुपम भाव, आज रे संध्याए जगतातनो जी॥६॥ तदगतचित्त समयवि. धान, भावनी वृद्धि भवभय अति घणो जी ॥ विस्मय पुलक प्रमोद प्रधान, लक्षण ए छे अमृतकिया तणो जी ॥ ७ ॥ अमृतनो लेश लह्यो इक वार, बीजें रे औषध करवू नवि पडे जी ॥ अमृतकिया तिम लही एक वार, बीजां रे साधन विण शिव नवि अडे जी ॥ ॥८॥ एहवो रे पूजामा मुजभाव, आव्यो रे भाव्यो ध्यान सोहामणो जी ॥ हजीअ न माये मन आणंद,