Book Title: Navpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Author(s): Vijayodaysuri
Publisher: Maneklalbhai Mansukhbhai

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Page 378
________________ सिद्धचक्र भगवंतनी आराधना (३६३) मयणसुंदरी त्यारे भणे, पूर्वे पूज्यं सिद्धचक्र । मेरे ला० धन त्यारें थोडं हतुं, हमणां तुं ऋद्धे शक, मे० म०॥२॥ धन मोटे छोटुं करे, धर्म उजमणुं तेह; मेरे लाल। __ (पाठांतर) जे करणी धर्मनुं तेह; मे। फळ पूर्फ पामे नहीं, मम करजो तिहां संदेह-मे० म.३ विस्तारे नवपदतणी, तिण पूजा करो सुविवेक; मे० धननो लाहो लीजीयें, राखी महोटी टेक. मं०म०॥४॥ मयणा वयणां मन धरी, गुरुभक्ति शक्ति अनुसार मे. अरिहंतादिक नवपद भलां, आराधे ते सार. मे०म०॥५॥ नव जिनघर नव पडिमा भली,नव जीर्णोद्धार कराव.मे. नानाविध पूजा करी,जिन आराधन शुभभाव;मे. म.६ एम सिद्धतणी प्रतिमातणुं, पूजन त्रिंहुं काल प्रणाम, मेरेलाल. तन्मय ध्याने सिद्धनु,करे आराधन अभिराम। मे.म.७ आदर भगति ने वंदना, वेयावच्चादिक लग्ग० मे० सुश्रूषा विधि साचवी,आराधे सूरि समग्ग. मे. म.॥८॥ अध्यापक भणतां प्रति, वसनाशन ठाण बनाय. मे०

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