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( ३२६ ) नवपद विधि विगेरे संग्रह |
'सुनो भविप्राणी जी ॥ १ ॥ मानवभव तुमे पुण्ये पाम्या, श्रीसिद्धचक्र आराधो जी ॥ अरिहंत सिद्ध सूरि उवझाया, साधु देखी गुण वाधे जी || दरशण नाण चारित्र तप कीजे, नव पद ध्यान धरीजे जी ॥ धुर आसोथी करवां आंबिल, सुख संपदा पामीजे जी ॥ २ ॥ श्रेणिक राय गौतमने पूछे, स्वामी ए तप केले कीधो जी ॥ नव आंबिल तप विधिशुं करतां, वंछित सुख केणे लीधो जी ॥ मधुरी ध्वनि बोल्या श्री गौतम, सांभलो श्रेणिकराय वयणां जी ॥ रोग गयो ने संपदा पाम्या, श्रीश्रीपाल ने मयणा जी ॥ ३॥ रुमझुम करती पाये नेउर, दीसे देवी रूपाली जी ॥ नाम चक्केसरी ने सिद्धाइ, आदि जिनवर रखवाली जी ॥ विघन कोड हरे सहु संघनां, जे सेवे एना पाय जी ॥ भाणविजय कवि सेवक नय कहे, सानिध्य करजो माय जी ॥४॥
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॥ सिद्धचक्र स्तुति ॥
॥ श्री सिद्धचक्र सेवो सुविचार, आणी हैडे हरख अपार, जिम लहो सुख श्रीकार ॥ मन शुद्धे ओली