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श्री नवपदजीनी पूजा ॥
॥ अथ सप्तम श्री सम्यग्ज्ञानपदपूजा प्रारंभ ॥
॥ काव्यं ॥ अन्नाणसंमोहत मोहरस्स ॥ नमो नमो नाणदिवायरस्स॥ हो जेथी ज्ञान शुद्ध प्रबोधे, यथावर्ण नासे विचित्रावबोधे | तेणे जाणिये वस्तु षड् द्रव्यभावा, न हुये वितत्था निजेच्छा स्वभावा ॥ १६ ॥ होय पंच मत्यादि सुज्ञानभेदे, गुरूपास्तिथी योग्यता तेह वेदे || वळी ज्ञेय हेय उपादेय रूपे, लहे चित्तमां जेम प्रदीपे ॥ १७ ॥
( २३९ )
२ बीजी प्रतनो वधारो -
१ अन्नाण० पंचप्पयारस्सुवगारस्स, सत्ताण सव्वत्थपगासगस्स ॥ २ सप्तम पदश्रीज्ञान छे, सिद्धचक्र तपमांय
आराधी जे शुभ मने, दिन दिन अधिक उच्छाह ॥ २ ॥ ( बाकी सरखु )
सदनुष्ठान संपूर्ण फल, तास प्रदायक एह तेह निरन्तर भावशु, ज्ञान उपयोग करेह ॥ १ ॥ वर्ष कोटि बहु नारकी, कर्म खपावे जेह ज्ञानी श्वासोश्वासमां, तिन गुप्ति शुं तेह ॥ २ ॥