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पच्चक्खाण पारवानो विधि ॥
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पछी आहार ( आयंबिल ) करवाना स्थानके आवी श्रीसिद्धचक्र भगवान्नुं ध्यान धरतो छतो बनता सुधी 'उत्कृष्ट आयंबिलना प्रकारवाळु तथा श्री अरिहंतप्रभुनुं ध्यान तथा सात्त्विक वृत्ति रहेवा माटे उज्ज्वलवर्णे चोखानुं आयंबिल करे, आयंबिल करतां आहार करता जे विधि प्रथम बताव्यो छे ते उपर खास लक्ष्य राखj.
आयंबिल कर्या बाद स्वच्छ म्हों (मुखशुद्धि ) करी ठाम चउविहार बनी शके तो ते, नहि तो तिविहारनुं पच्चक्खाण करे, साथे उपयोगनी तीव्रता माटे मुट्ठिसहियादि पच्चक्खाण कर, त्यारबाद पाणी पीव्रं होय तो चैत्यवन्दन करी, जो मुट्ठिसहियादि पच्चखाण होय तो ते नवकार गणी पारी पाणी पीव्रं, पुनः मुट्ठिसहियादि पच्चक्खाण करी लेवुं, आ
१ आयंबिलना प्रकारो गीतार्थ गुरुमहाराज पासे समजी यथाशक्ति उत्कृष्ट थाय तेवो उपयोग राखवो, उत्कृष्ट न थइ शके चो पण यथाशक्ति आराधना अवश्य करवी.