Book Title: Nandisutra Mool Path
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Chotelal Yati

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Page 7
________________ [ ५ ] जेसिं इमो अणुप्रोगो पयरह अजावित्रढभरहम्मि। बहु नयर निग्गय जसे ते वंदे खंदिलायरिए ॥३७॥ तत्तो हिमवन्त महंत विक्कमे घिइ परक्कम मणंते ॥ सज्झाय मणंतधरे हिमवंते वंदिमो सिरसा ॥३८॥ कालिय सुय अणु प्रोगस्स धारए धारए य पुव्वाणं । हिमवंत खमा समणे वंदे णागज्जुणायरिये ॥३६॥ मिउमद्दव संपन्ने आणुपुवि वायगत्तणं पत्ते ॥ श्रोहसुय समायारे नागज्जुण वायए वंदे ॥४०॥ गोविंदाणंपि नमो अणुप्रोगे विउल धारिणिं दाणं ॥ णिचं खंति दयाणं परवणे दुल्लाभिं दाणं ॥४१॥ तत्तो य भूयदिन्न निचं तव संजमे अनिविण्णं ॥ पंडिय जण सामण्णं वंदामो संजम विहिएणु ॥४२॥ वरकणगतवियचंपग विमउलवर कमल गभसरिवन्ने। भविय जणहिययदइए दयागुण विसारए धीरे ॥४३॥ अड्ढ भरहप्पहाणे बहुविह सज्झाय सुमुणियपहाणे। अणुप्रोगिय वर वसभे नाइल कुल वंसनंदिकरें ॥४४॥ भूयहियअपगम्भे वंदेऽहं भूयदिन्न मायरिए भवभय वुच्छेय करे सीसे नांगजण रिसीणगाशा सुमुणिय निच्चा निच्चं सुमणि सुत्तत्य धारयं वन्दे ।। सम्भावुभावणया तत्थं लोहिचणामाणं ॥४६॥

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