Book Title: Nandisutra Mool Path
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Chotelal Yati

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ [ ५६ ] होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे । गुण ग्रहण का भाव रहे, नित दृष्टि न दोषों पर जावे ॥ कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी श्रावे या जावे । लाखों वर्षों तक जीवू, या मृत्यु आज ही आ जावे ।। अथवा कोई कैसा ही, भय या लालच देने आवे । तो भी न्याय मार्ग से मेरा, कभी न प डिगने पावे ॥ होकर सुख में मग्न न फूलें, दुःख में कभी न घबरावें । पर्वत, नदी, स्मशान भयानक,अटवी से नहीं भय खावें ॥ रहे अडोल, अकम्प निरन्तर, यह मन दृढ़तर बन जावे । इष्ट वियोग अनिष्ट योग में, सहन शीलता दिखलावें ।। सुखी रहें सब जीव जगत के, कोई कभी न घबरावे । वैर पाप अभिमान छोड़, जग नित्य नये मंगल गावें ॥ . घर घर चर्चा रहे धर्म की, दुष्कृत दुष्कर हो जावें । ज्ञान चरित उन्नत कर अपना, मनुज जन्म फल सब पावें। ईति भीति व्यापे नहीं जग में, वृष्टि समय पर हुआ करे । धर्म निष्ट होकर राजा भी, न्याय प्रजा का किया करे । रोग मरी दुर्भिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे । परम अहिंसा धर्म जगत में, फैल सर्व हित किया करे ।। फैले प्रेम परस्पर जग में, मोह दूर पर रहा करे । अप्रिय, कटुक, कठोर शब्द नहीं, कोई मुख से कहा करे ।। बनकर सब “युग-बीर" हृदय से, देशोन्नति रत रहा करें। वस्तु स्वरूप विचार खुशी से, सब दुःख संकट सहा करे ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60