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जीवन ग्रन्थमाला का १६ वां पुष्प
नन्दीसूत्र मूलपाठ
प्रकाशक
छोटेलाल यति
जीवन कार्यालय
सन् १९३५. ].
अजमेर
(तार घर के पीछे ) अजमेर
ত
[ मूल्य
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शीघ्रता कीजिये ? अपूर्व अवसर ??
हाथ से न जाय
पूज्य श्री १००८ श्री जवाहिरलालजी महाराज के व्याख्या द्वारा जो पुस्तकें निकलती हैं:
उनके पढ़ने से देश, जाति, नीति और जैन के गूढ़ रहस्यों के साथ परोपकार वृत्ति का प्रसार होता हैं तथा जैसे-जैसे इन दैवी गुणों की सत्ता बढ़ती जायगी वैसे वैसे संसार की पीड़ारूप आसुरी भाव का मूलोच्छेद होता जायगा ।
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आज तक दयादान सम्बन्धी अपूर्व तर्क वितर्कों सेपरिपूर्ण ऐसी पुस्तकें जैन समाज में प्रकाशित नहीं हुई हैं। तेरापंथ समाज ने इन पुस्तकों को बीकानेर गवर्नमेंट से जब्त कराने के लिये दो दो बार तन, मन, धन, से महान प्रयत्न किया किन्तु दया-धम प्रेमी सरकार ने दया-धर्म के सिद्धान्तों की पूर्ण रक्षा की है।
"सद्धमे मंडन" (१२०० पृष्ट के अंदाज का ग्रंथ रु० १) में । “चित्रमय अनुकम्पा विचार" ( जिसमें दयादान सम्बन्धी २० चित्र रहेंगे) इसका मूल्य केवल आठ आने ।
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नथमल लूणियाद्वारा आदर्श प्रेस अजमेर में छपी
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॥ श्रीमद्देवऋद्धिगणिक्षमाश्रमणप्रणीत ॥ श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः।
जयइ जगजीव जोणी वियाणो। जगगुरू जगाणंदो। जगणाहो जगबंधू । जयइ जगप्पियामहोभयवं ॥१॥ तयइ सुत्राणं पभवो । तित्थयराण अपच्छिमोजयइ । जयइ गुरूलोगाणं। जयइ महप्पा महावीरो ॥२॥ भई मव्वं जगुज्जोयगस्म। भई जिणस्म वीरस्स ॥ भई सुरासुरनमंसियस्स। भई धुयरयस्स ॥३॥ गुणभवणगहण । सुयरयण भरियदंसणविमुद्धरत्थागा संघ नगर भदं ते। अखंड चारित्तपागारा ॥४॥ संजम तव तुंबारयस्स । नमो सम्मत्त पारियल्लस्त। अप्पडिचक्कस्स जो होउ सया संघचक्कस्स ॥५॥ भई सील पडागूसियस्स। तव नियम तुरय जुत्तस्स ।। संघरहस्स भगवो । सज्झाय सुनंदिघोसस्स ॥६॥
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कम्मरनजलोह विणिग्गयास सुयरयणे दीहनालस्स। पंच महन्वय थिरकन्नियहस । गुणकैसरालस्सा सावगजण महुअरि परिंखुरसा जिण सूरतेय बुद्धस्सा। संघपंजमस्स भई । समण गर्ण मह स पितरस जा तवसंजममयलंडण।अकिरियराहुमुह दुद्धरिसनिचं । जय संघ चंद। निम्मल सम्मत्त विसुद्ध जोण्हागा ॥६॥ पर तित्थिय गह पहनासगस्सातवतेय दित्त लेसस्स। नाण जोयस्स जए भदं दम संघ सूरस्स ॥१०॥ भई धिइ वेला परिगयस्स। सज्झायजोग मगरस्स ॥ अक्खोहस्स भगवओ। संघ समुदस्स रुंहस्स ॥११॥ सम्म इंसण वर वइर दृढ रूढ गाढावगाढ पेढस्स। धम्म वररयण मंडिय चामीयर मेहलागस्स ॥१२॥ नियमूसियकणय सिलायलुज्जल जलंत चित्तकूडस्स। नंदण वण मणहर सुरभि सील गंधुधुमायस्स ॥१३॥ जीवदया सुंदर कंद रुद्दरिय मुणिवर मइंद इन्नस्स ॥ हेउ सय धाउ पगलंत रयणदित्तोसहि गुहस्स ॥१४॥ संवर वर जल पगलिय उज्झर पविराय माणहारस्स॥ सावग जण पउर रवंत मोर नचंत कुहरस्स ॥१॥ विणय नय पवर मुणिवर फुरंत विजुज्जलंत सिहरस्स। विविह गुण कप्प रुक्खग फलभर कुसुमाउल
वणस्स ॥१६॥
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नाण वर रयण दिपंत कंत वेरुलिय विमल चूलस्स। वंदामि विणय पणो संघ महामंदर गिरिस्स ।१७॥ गुण रयणुज्जल कडयं सील सुगंधि तव मंडिउद्देसं॥ सुयवारसंगसिहरं संघ महामंदरं वंदे ॥१८॥ नगर रह चक्क पउमे चंदे सूरे समुद्द मेरुम्मि । जो उवमिजइ सययं तं संघगुणायरं वंदे ॥१६॥ बंदे उसभं अजियं संभव मभिनंदण सुमइ सुप्पंभ
सुपासं॥ ससि पुप्फदंत सीयल सिजंसं वासुपुज्जं च ॥२०॥ विमल मणंत य धम्म सन्ति कुंथु अरं च मल्लिं च ॥ मुनिसुन्वय नमिनेमिं पासं तह वद्धमाणं च ॥२१॥ पढमित्थ इंदभूइ बीए पुणहोइ अग्गिभूइत्ति॥ तईए य वाउभूई तो वियत्ते सुहम्मेय ॥२२॥ मंडिअ मोरिय पुत्ते अकंपिए चेव अयल भायाय॥ मे यजेय पहासेय गणहरा हुंति वीरस्स ॥२३॥ निव्वुइ पह सासणयंजयइ सया सव्व भाव देसणयं ॥ कुसमय मय नासणयं जिणिंदवर वीरसासणयं ॥२४॥ सुहम्मं अग्गिवेसाणं जंबुनामं च कासवं पभवं। कच्चायणं वंदे वच्छं सिजंभवं तहा ॥२॥ जसमदं तुंगियं वंदे संभूयं चेव माढरं ॥ भद्दबाहुं च पाइन्न थूलभदं च गोयमं ॥२६॥
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[ ४ ] एलावच्चसगोत्तं वंदामि महागिरि सुहत्थिं च ॥, तत्तो कोसियगोत्तं बहुलस्स सरिव्वयं वन्दे ॥२७॥ हारिय गुत्तं साइं च वंदिमो हारियं च सामजं ॥ वन्दे कोसिय गोत्तं संडिल्लं अज्ज जीयधरं ॥२८॥ तिसमुद्दखायकित्तिं दीव समुद्देसु गहिय पेयालं ॥ वंदे अज्ज समुह अक्खुभिय समुद्दगंभीरं ॥२६॥ भणगं करगं झरगं पभावगं णाणदंसण गुणाणं ॥ वंदामि अज मंगुं सुय सागर पारगं धीरं ॥३०॥ वंदामि अज्ज धम्मं तत्तो वंदे य भद्द गुत्तं च ।। तत्तोय अज्ज वइरं तव नियम गुणेहिं वहर समं ॥३१॥ वंदामि अज्ज रक्खिय खमणे रक्खिय चारित्त
सव्वस्से ॥ रयण करडंग भूत्रो अणुरोगो रक्खिो जेहिं ॥३२॥ नाणम्मि दंसण म्मिय तव विणए णिच्च काल मुज्जुत्तं॥ अज्जं नंदिलखमणं सिरसा वंदे पसन्नमणं ॥३३॥ वढउ वायगवंसो जसवंसो अज नागहत्थीणं ।। वागरण करण भंगिय कम्मप्पयडी पहाणाणं ॥३४॥ जच्चंजण धाउ समप्पहाण मुद्दिय कुवलय निहाणं ॥ वढउ वायगवंसो रेवइनक्खत्त नामाणं ॥३॥ अयलपुरा णिक्खंते कालियसुय प्राणुरोगिए धीरे॥ बंभद्दीवगसीह वायगपय मुत्तमं पत्ते ॥३६॥
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[ ५ ] जेसिं इमो अणुप्रोगो पयरह अजावित्रढभरहम्मि। बहु नयर निग्गय जसे ते वंदे खंदिलायरिए ॥३७॥ तत्तो हिमवन्त महंत विक्कमे घिइ परक्कम मणंते ॥ सज्झाय मणंतधरे हिमवंते वंदिमो सिरसा ॥३८॥ कालिय सुय अणु प्रोगस्स धारए धारए य पुव्वाणं । हिमवंत खमा समणे वंदे णागज्जुणायरिये ॥३६॥ मिउमद्दव संपन्ने आणुपुवि वायगत्तणं पत्ते ॥ श्रोहसुय समायारे नागज्जुण वायए वंदे ॥४०॥ गोविंदाणंपि नमो अणुप्रोगे विउल धारिणिं दाणं ॥ णिचं खंति दयाणं परवणे दुल्लाभिं दाणं ॥४१॥ तत्तो य भूयदिन्न निचं तव संजमे अनिविण्णं ॥ पंडिय जण सामण्णं वंदामो संजम विहिएणु ॥४२॥ वरकणगतवियचंपग विमउलवर कमल गभसरिवन्ने। भविय जणहिययदइए दयागुण विसारए धीरे ॥४३॥ अड्ढ भरहप्पहाणे बहुविह सज्झाय सुमुणियपहाणे। अणुप्रोगिय वर वसभे नाइल कुल वंसनंदिकरें ॥४४॥ भूयहियअपगम्भे वंदेऽहं भूयदिन्न मायरिए भवभय वुच्छेय करे सीसे नांगजण रिसीणगाशा सुमुणिय निच्चा निच्चं सुमणि सुत्तत्य धारयं वन्दे ।। सम्भावुभावणया तत्थं लोहिचणामाणं ॥४६॥
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[६]
अत्थ महत्थक्खाणिं सुसमण वक्खाण कहण ॥ निव्वाणि ॥ पयईए महुरवाणिं पय पणमामि दूसगणिं ॥४७॥ तव नियम सब संजम विण्यज्जव खंति मद्दवरयाणं ॥ सील गुणगद्दियाणं श्रणुयोग जुगप्पाषाणं ॥ ४८ ॥ सुकुमाल कोमल तले तेसिं पणमामि लक्खए पत्थे पाए पावयणीणं पडिच्छ सय एहि पणि वहए ॥ ४६ ॥ जे ने भगवन्ते कालिय सुय आणु ओगिए धीरे ।। ते पणमिण सिरसा नाणस्स परूवणं वोच्छं ॥ ५० ॥* इति ।
२
सेल-घणे, कुडग, चालणि, परिपूणग, हंस, महिस, मेसे य, मसग, जलूर्ग, बिराली, जाहेग, गो, भेरी
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आभीरी ॥ ५१ ॥
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[ . “सा समासत्रो तिविहा पन्नत्ता तंजहा जाणिया, अजाणिया, दुब्वियड्ढा" जाणिया जहा खीरमिव, . जहा हंसा जे घुट्टन्ति इह गुरुगुण समिद्धा दोसे य विवजंति तं जाणसु जाणियं परिसं ॥५२॥ अजापिया जहा-जा होइ पगइमहुरा मियछावय सीह कुक्कुडय भूत्रा । रयणमिव असंठविया । अजाणिया साभवे परिसा ॥५३।। दुब्वियड्ढा जहा-नय कत्थइ निम्माअोन य पुच्छह परिभवस्स दोसेणं । वत्थिव्व वायपुगणो फुइगामिल्लयवियड्ढो दुव्वियडढो॥५४॥ (सूत्र) नाणं पञ्चविहं पन्नतं, तंजहा-आभिणि बोहियनाणं सुखनाणं, अोहिनाणं, मणपजवनाणं, केवलनाणं॥१॥ तं समासश्रो दुविहं परणतं, तंजहापञ्चक्खं च परोक्खं च ॥ सू०२॥से किं तं पञ्चक्खं ? ' पञ्चक्खं दुविहंपण्णत्तं, तंजहा इंदियपच्चक्खं। नोइंदियपच्चक्खं च ॥ सू० ३॥ से किं तं इंदिय पञ्चक्खं ? इंदियपच्चक्खं पश्चविहं पण्णत्तं, तंजहा-सो इंदियपच्चक्खं । चविखदिय पञ्चक्रवं । घापिदिय पञ्चक्खं। जिभिदिय पचक्खं । फासिंदिय पच्चकखं। सेनं इंदियपञ्चक्खं । सू० ४॥ से किं तं नोइंदियपञ्चक्खं ? नोइंदियपच्चक्खं तिविहं. परणत्तं तंजहा-ओहिनाण पचक्खं । भणपज्जवनाण पञ्चक्खं । केवलनाण
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[८ ] पचक्खं ॥शासे किंतं मोहिनाण पञ्चक्खं ? श्रोहिनाण पचक्खं दुविहं पगणतं, तंजहा-भवपञ्चइयंचखाओवसमियं च ॥६॥से किं तं भवपञ्चइयं? भवपञ्चइयं दुण्हं, तंजहा-देवाणय नेरइयाणय ॥७॥से किं तं खा प्रोवसमियं? खाअोवसमयं दुण्हं, तंजहा-मणूसाण य पंचेंदिय तिरिक्ख जोणियाण य । को हेऊ खाअोवसमियं? खात्रोवसमियं तयावरणि जाणं कम्माणं उदिणाणं खएणं अणुदिणाणं उवसमेणं अोहिनाणं समुपज्जइ ।। सू०८॥ अहवा गुणपडिवन्न स्स अणगारस्स अोहिनाणं समुपज्जइ तं समासो छव्विहं पगणतं, तंजहा-आणुगामियं, अणाणुगामियं वड्ढमाणयं, हीयमाणयं, पडिवाइयं, अपडिवाइयं, ॥६॥ से किं तं प्राणुगामियं प्राणुगामियं श्रोहिनाणं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा-अंतगगं च मझगयं च।से किंतं अंतगगं? अंतगयंतिविहं पण्णत्तं तंजहा पुरो अंतगयं?मग्गो अंतगयं। पासो अंतगणं से किं तं पुरो अंतगगं ? पुरो अंतगयं-से जहा नामए केइ पुरिसे उकवा चड्डुलियं वा अलायं वा मणिं वा पईवं वा जोई वा पुरो काउं पणुल्लेमाणे २ गच्छेज्जा, से तं पुरो अंतगयं । से किं तं मग्गो
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[९]
अंतगयं? मग्गओ अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलिय वा अलायं वा मणिं वा पईवं वा जोई वा मग्गओ काउं अणुकड्ढेमाणे २ गच्छिज्जा, से तं अंतगयं । से किं तं पास अंतगयं ? पास अंतगयं सेजहानामए केइ पुरिसे उकं वा चडुलियं वा अलायं वा मणिं वा पईवं वा जोई वा पासची काउं परिकड्ढे माणे २ गच्छिज्जा, से तं पास अंतगयं सेतं अंतगयं । से किंतं मज्भगणं ? मज्भगयं से जहा नामए केइ पुरसे उक्वं वा चडुलियं वा अलायं वा मणिं वा पईवं वा जोई वा मत्थए काउं समुव्वह माणे २ गच्छिना सेतं मज्भगयं । अंतगयस्स मज्झगयरस य को पइविसेसो । पुरो अंतगएणं श्रहि नाणं पुर व संखिज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ मग्गो अंतगएणं अहिनाणं मग्गओ चेव संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाई जाएइ पासह | पास अंतगएणं ओहिनाणं पास व संखिज्जाणि वा श्रसंखिज्जाणि वा जोयणाई जाएइ पासइ । मज्झगएणं श्रहिनाणेणं सव्व समता संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाई जाइ पासइ । से तं श्रणुगामियं श्रहिनाणं ॥ १० ॥ से किं तं अणाणुगामियं ओहिनाणं
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[ १० ] stery गामियं श्रहिनाणंसे जहानामए केइ पुरिसे एगं महंतं जोइट्ठाणं काउं तस्सेव जोइट्टाएस्स परिपेरं तेहिं परिपेरतेहिं, परिघोले माणे परिघोलेमाणे तमेव जोइट्ठाणं पासइ, अन्नत्थगए न जाएइ न पासइ एवामेव अणाणुगामियं ओहिनाएं जत्थेव समुप्पजज्ह तत्थेव संखेज्जाणि वा श्रसंखेज्जाणि वा संबद्धाणि वा असंबद्धाणि वा जोयणाई जाएइ पासह; अन्नस्थगएण पासह, से तं अणाणुगामियं श्रहिनाणं ॥ ११ ॥ से किं तं वड्ढमाणयं श्रहिनाणं ? बड्ढमाणयं ओहिनाणं पसत्थेसु अज्भवसायट्ठाणेसु वदृमाणस्स वड्ढमाण चरित्तस्स । विसुज्झमाणस्स विसुज्झमाण चरित्तस्स । सव्वच समता श्रहि वड्ढइ—
जावइया तिसमयाहारगस्स सुहुमस्स पणगजीवस्स ॥ श्रोगाहणा जहन्ना ओहीखित्तं जहन्न तु ॥५५॥ सव्व बहु गणि जीवा निरंतरं जन्तियं भरिज्वंसु ॥ वित्तं सव्वदिसागं परमोही खेत्तनिद्दिट्ठो ॥ ५६ ॥ अंगुलमावलियाणं भाग मसंखिज्ज दोसु संखिज्जा ॥ अंगुलमावलियंतो आवलिया अंगुल पुहुत्तं ॥५७॥ हत्थम्मि मुहुत्तो, दिवसंतो गाउयम्मि बोद्धव्वो । जोयण दिवसपुहुत्तं पक्खंतो पन्नवीसाचो ॥५८॥
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[ ११ ].. भरहम्मि अद्धमासो, जम्बुद्दीवम्मि साहिओ मासा॥ वासं च मणुय लोए, वासपुहत्तं च रुयगम्मि ॥५६।। संखिजम्मि उ काले, दीवसमुद्दावि हुंति संखिज्जा । कालम्मि असंखिजे, दीवसमुद्दा उ भइयव्वा ॥६०॥ काले चउण्हवुड्ढी, कालो भइयव्वु खित्त वुड्ढीए । वुड्ढीए दव्वपज्जव, भइयव्वा खित्तकाला उ ॥६१॥ सुहुमो य होइ कालो, तत्तो सुहुमयरं हवइ खित्त । अंगुल सेढी मित्तं, अोसप्पिणिो असंखिज्जा ॥६२॥ से त्तं वड्ढमाणयं श्रोहिनाणं सू॥१२॥ से किं तं हीयमाणयंत्रोहिनाणं? हीयमाणयं ओहिनाणं अप्पसत्थेहि अज्झवसायट्ठाणेहिं वड्ढमाणस्स वडूढमाणचरित्तस्स संकिलिस्स माणस्स संकिलिस्समाणचरित्तस्स सव्वश्रो समन्ता अोही परिहायइ से तंहीयमाणयंत्रोहिनाणं ॥१३॥ से किं तं पडिवाइ अोहिनाणं ? पडिवाह प्रोहिनाणं जहणणेणं अंगुलस्स असंखिजय भागं वा संखिजय भागं वा बालग्गं वा बालग्ग पुहुत्तं वा लिक्खं वा लिक्खपुहुत्तवा, जूगंवा जूगंपुहुत्तंवा, जवंवा जव पुहुत्तं वा।अंगुलं वा अंगुलपुहुत्तं वा। पायंवा पाय पुहुत्तं वा । विहत्थिं वा विहत्थि पहुत्तं वा । रयणिं वा रयणि पुहुत्तं वा । कुञ्छि वा कुच्छिपुहुत्तं वा, धjथा धणुपहुतं वा। गाउघंवा गाउयपुहुत्तं वा । जोयण
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[ १२ ]
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वा जोयणं पुहुत्तं वा । जोअणसयं वा जोयणसय पुहुत्तं वा जोयण सहस्सं वा जो यणसहस्स पुहुत्तं वा । जो यणलक्खं वा जोयणलक्ख पुहुत्तं वा । जोयणकोर्डि वा जोयकोडि पुहुन्तं वा । जोयणकोडाकोडिं वा जोकोडा कोडि पुहुतं वा । [ जो अणसंखिजंवा जो संखिज पुहुत्तं वा । जो ऋण असंखेजंवा जो असंखेज्जपुहुंत्तंवा ।] उक्कोसेणं लोगं वा पासि ताणं पडिवइज्जा से तं पडिवाइ ओहिनाणं ॥ १४ ॥ से किं तं पडिवाइ ओहिनाणं । अपडिवाइ अहिनाणंजेणं लोगस्स एगमवि आगासपएसं जाणइ पासइते परं पडिवाइ ओहिनागं । से तं अपडिवाइ ओहिनाणं ॥ १५॥ तं समासश्रो चउव्विहं पण्णत्तं तंजहा दव्वत्र, खित्तत्र, कालओ, भावच । तत्थ दव्व ओ ओहिनाणी जहन्नेणं अणंताइं रूविदव्वाइं जाणइ पासइ उक्कोसेणं सव्वाइं रूविदव्वाई जाएइ पासइ, खित्तणं ओहिनाणी जहन्नेणं अंगुलस्स
संखिज्जय भागं जाणइ पासइ, उक्कोसेणं असंखि ज्वाइं लोगे लोगप्पमाण मित्ताई खंडाई जाएइ पासइ, कालओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं आवलियाए असंखिज्जय भागं जाणइ पासइ, उक्कोसेणं असंखिज्जाओ उस्सप्पिणीओ अवसप्पिणीओ अईय
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[ १३ ]
मणागयं च कालं जाणइ पासइ, भावओ एं ओहिनाणी जहन्नेणं अणंते भावे जाणइ पासह, उक्केसेवि
ते भावे जाणइ पासइ । सव्व भावाण मणंत भाग भावे जाणइ पास || १६ || ओही भवपचइत्रो गुणपचय वरिओ दुविहो । तस्स य बहू विगप्पा व्वे खिते य कालेय | नेरइयदेवतित्थंकरा य ओहिस्सबाहिरा हुंति । पासंति सव्वओ खलु सेसा देसे पासंति । से त्तं श्रहिनाणपञ्चक्खं से किं तं मणपज्जवनाएं ? मणपज्जवनाणे णं भंते! किं मणुस्साणं उप्पज्ज अमणुस्साणं ? गोयमा ! मणुस्साणं नो अमणुस्साएं ० ? जइमगुस्साएं किं संमुच्छिममणुस्साएं गन्भवक्कंतिय मणुस्साएं ? गोयमा ? नोसमुच्छिममणुस्साएं उपज्जई गन्भवकतियमणुस्साएं | जइगन्भवकंतियमणुस्साणं किं कम्मभूमिय गग्भवतिय मणुस्साणं, अकम्मभूमिय गग्भवतिय मणुस्सा, अन्तरदीवगगन्भवक्कंतिय मणुस्साणं, गोयमा ? कम्मभूमिय गन्भक्कंतियमणुस्साएं, नो कम्मभूमिय गन्भवतियमणुस्साणं, नो अन्तरदीवग गन्भ व ंतियमपुस्साणं कम्मभूमियगन्भवतियमणुस्साणं,
जइ
किं
संखिज्जवासाउयकम्मभूमिय गन्भवक्कंतियमणुस्साणं
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[ १४ ] असंखिज्जवासाउयकम्मभूमिय गम्भवतिय मणुस्साणं ? गोयमा ? संखैज्जवासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं, नो असंखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं । जइ संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गम्भवतिय मणुस्साणं किं पज्जत्तग संखेज्जवासाउयकम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं, अपज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं ? गोयमा! पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं, नो अपज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं । जइ पज्जत्तग संखेज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं० किं सम्मदिट्टि पजत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं, मिच्छदिहि पज्जत्तग संखेज्जवासाउय कम्मभूमिय गम्भवकंतिय मणुस्साणं, सम्मामिच्छद्दिष्टि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं? गोयमा ? सम्मद्दिहि पज्जत्तग संखेज्जावासाउय कम्मभूमिय गम्भवतिय मणुस्साणं, नो मिच्छ दिहि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गम्भ घवंतिय मणुस्साणं०, नो सम्मामिच्छद्दिट्टि पज्जत्तग
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[ १५ ]
संखेज्ज वासाज्य कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं, जइ सम्मद्दिट्ठिपज्जन्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं किं संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाज्य कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं, असंजय सम्मद्दिट्ठि पज्जतग संखेज्ज वासाज्य कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं । संजया संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जन्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्सारणं ? गोयमा ! संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जन्तग संखेज्ज वासाज्य कम्मभूमिय गन्भवक्कतिय मणुस्साणं, नो असंजय सम्मद्दिट्टि पज्जन्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमि गन्भवतिय मणुस्साणं । नो संजयासंजय सम्मद्दिट्ठि पज्जन्तग संखेज्जवासाज्य कम्मभूमिय गन्भवक्कंतिय मणुस्साणं । जइ संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जन्त्ता संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्सारणं किं पमन्त संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाज्य कम्मभूमिय गन्भवकंतिय मणुस्सा, अपमत्त संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जन्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गग्भवतिय मणुस्साणं ? गोयमा ? पमत्तसंजय सम्मद्दिट्ठि पज्जन्तग संखेज्ज वासाज्य कम्मभूमिय गन्भवतिय मणु
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[ १६ ]
स्सा, नो पमत्त सञ्जय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवकंतिय मणुस्साणं । जइ अपमन्त संजय सम्मद्दिट्टि पज्जत्तग संखेज्ज वासाज्य कम्मभूमिय गग्भवतिय मणुस्सा, किं इड्ढीपत्त अपमत्त संजय सम्मद्दिट्ठि पत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्सा अणिड्ढीपत्त अपमन्त संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जतग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साएँ ? गोयमा ! इड्ढीपत्त अपमत्त संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जन्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मस्साणं, नो अणिड्ढीपत्त अपमत्त संजयसम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवक्कंतिय मणुस्साणं । मणपज्जवनाणं समुप्पज्जइ || सू० ॥ १७ ॥ तं च दुविहं उप्पज्जइ तंजहाउज्जुमई य विउलमई य तं समासओ चउब्बिहं पन्नत्तं तंजहा- दव्वत्र, खित्तओ, कालओ, भावच । तत्थ दब्वओणं उज्जुमई
ते अांत पएसिए खंधे जाणइ पोसइ, तं चेव विलमई अमहियंतराए विउलतराए विसुद्धतराए वितिमिरतराए जाएइ पासह । खित्तयां उज्जुमई यजहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जय भागं उक्कोसेणं हे
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[ १७ ]
जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेट्ठिल्ले खुड्डग पयरे उड्ढं जाव जोइसस्स उवरिमतले, तिरियं जाव अन्तोमस्तखित्ते अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पन्नरस्ससु कम्मभूमिसु तीसाए कम्मभूमिसु छपन्नाए अन्तरदीवगेसु सन्निपंचेंद्रियाणं पज्जन्त्तयाणं मणोगए भावे जाणइ पासइ तं चेव बिउलमई अड्ढाईज्जेहिमंगुलेहिं अमहियत्तरं विउलतरं विसुद्धतरं वितिमिरतरागं खेत्तं जाणइ पासइ । काल उज्जुमई जहन्नेणं पलिश्रवमस्स असंखिज्जयभागं उक्कोसेरावि पलिश्रवमस्स संखिज्जभागं श्रतीयमणागयं वा कालं जाणइ पासइ । तं चैव विमई अभहियतरागं विजलतरागं विसुद्ध - तरागं वितिमिरतरागं जाणइ पासइ । भावश्र णं उज्जुमईते भावे जाणइ पासह, सव्वभावाणं अनंतभागं जाणइ पासइ । तं चैव विउलमई अन्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाएइ पासइ | मणपज्जवनाणं पुण जणमणपरिचिंतियत्थपागडणं । माणुसखित्तनिबद्ध गुणपच्चइयं चरितव ॥ ६५ ॥ से त्तं मणपज्जवनाणं ॥ सू० ॥ ॥ १८ ॥ से किं तं केवलनाणं ? केवलनाणं दुविहं पन्नत्तं, तंजहा - भवत्थकेवलनाणं च सिद्धकेवल
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[१८]
नाणं च । से किं तं भवत्थकेवलनाणं ? भवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा - सजोगि भवत्थकेवलनाणं च अजोगिभवत्थकेवलनाणं च । से किं तं सजोगि भवत्थकेवलनाणं ? सजोगि भवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा — पढमसमयसजोगिभवत्थ, केवलनाणं च पढम समय सजोगिभवत्थकेवलनाणं 'च, अहवा चरमसमयसजोगि भवत्थ केवलनाणं च अचरम समयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च, से तं सजोगि भवत्थकेवलनाणं । से किं तं अजोगिभवत्थकेवलनाणं? अजोगि भवत्थकेवलनाणं दुविहं पन्नत्तं, तंजहा - पढमसमय जोगि भवत्थकेवलनाणं च अपढमसमय जोगिभवत्थकेवलनाणं च अहवा चरमसमय अजोगि भवत्थकेवलनाणं च अचरमसमयअजोगि भवत्थकेवलनाणं च, से त्तं अजोगि भवत्थकेवलनाणं, से त्तं भवत्थकेवलनाणं || सू० ॥ १६ ॥ से किं तं सिद्धकेवलनाणं? सिद्धकेवलनाणं दुविहं परणत्तं, तंजहा - अणंतर सिद्धकेवलनाणं च परंपरसिद्ध केवल नाणं च ॥ सू०॥ २० ॥ से किं तं अणंतरसिद्धकेवलनाणं ? अणंतर सिद्ध केवलनाणं पन्नरस विहं पण्णत्तं, तंजहातित्थसिद्धा १, अतित्थसिद्धा २, तित्थयरसिद्धा ३, अतित्थयरसिद्धा ४ सयंबुद्धसिद्धा ५, पत्तेयबुद्ध
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[१९]
सिद्धा ६, बुद्धबोहियसिद्धा ७, इत्थिलिंगसिद्धा ८, पुरिसलिंग सिद्धा ६, नपुंसगलिंगसिद्धा १०, सलिंगसिद्धा ११, अन्नलिंगसिद्धा १२, गिहिलिंगसिद्धा १३, एगसिद्धा १४, अणेगसिद्धा १५, से त्तं अणंतर सिद्धकेवलनाणं || सू०||२१|| से किं तं परंपरसिद्धकेवलनाणं ? परंपरसिद्ध केवलनाणं अणेगविहं पण्णत्तं, तंजहा - अपढमसमयसिद्धा, दुसमयसिद्धा, तिसमयसिद्धा, चउसमयसिद्धा, जाव दससमयसिद्धा, संखिज्ज समयसिद्धा, असंखिज्जसमयसिद्धा, अनंतसमयसिद्धा, से तं परंपरसिद्धकेवलनाणं, से तं सिद्धकेवलनाणं ॥ तं समासओ चउव्विहं पण्णत्तं, तंजहा - दव्वत्र, खित्तत्रो, कालओ, भावश्रो । तत्थ दवणं केबलनाणी सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ । वित्त णं केवलनाणी सव्वं खित्तं जाणइ पासइ । कालो णं केवलनाणी सव्वं कालं जाणइ पासइ । भाव णं केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ । अह सव्वदव्वपरिणाम, भावविरणत्तिकारणमणंतं । सासय मप्पडिवाइ, एगविहं केवलं नाणं ॥ ६६ ॥ सू० ||२२|| केवलनाणेणऽत्थे, नाउं जे तत्थ पण्णवणजोगे । ते भासइ तित्थयरो, वड्जोगसुयं हवइ सेसं ॥ ६७॥ से त्तं केवलनाणं, से त्तं नोइंदियपच्चक्खं,
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[ २० ] सेत्तं पञ्चक्खनाणं॥सू०॥२३॥ से किंतं परोक्खनाणं? परोक्खनाणं दुविहं पन्नत्तं, तंजहा-आभिणिबोहियनाणपरोक्खं च, सुयनाण परोक्खं च, जत्थ आभिणिबोहियनाणं तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुयनाणं तत्थाभिणिबोहियनाणं, दोऽवि एयाइं अण्णमण्णमणुगयाई, तहवि पुण इत्थ अायरिया नाणत्तं पण्णवयंतिअभिनिबुज्झइति आभिणिबोहियनाणं, सुणेइत्ति सुयं, मइपुव्वं जेण सुयं, न मई सुयपुब्विया ॥सू०॥ ॥२४॥ अविसेसिया मई, मइनाणं च मइअन्नाणं च। विसेसिया सम्मदिहिस्स मई मइनाणं, मिच्छद्दिहिस्स मई मइअन्नाणं । अविसेसियं सुयं सुयनाणं च सुय. अन्नाणं च । विसेसियं मुयं सम्मदिहिस्स सुयं सुयनाणं, मिच्छद्दिहिस्स सुयं सुयअन्नाणं ॥सू०॥ २५ ॥ से किं तंत्राभिणिबोहियनाणं? आभिणिबोहियनाणं दुविहं परणत्तं, तंजहा-सुयनिस्सियं च, अस्सुयनिस्सियं च । से किं तं अस्सुयनिस्सियं ? अस्सुयनि स्सियं चउव्विहं पण्णत्तं, तंजहा- उप्पत्तिया १ वेणइया २, कम्मया ३, परिणामिया ४ । बुद्धि चउविवहा वुत्ता, पंचमा नोवलब्भइ ॥६८॥ सू० ॥२६॥ पुत्वमदिट्ठमस्सुयमवेइय, तक्खणविसुद्धगहियत्था। अव्वाहयफलजोगा, बुद्धि उप्पत्तिया नाम ॥ ६६ ॥
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[ २१ ]
भरहसिल ? पणिय२ रुक्खे ३ खुड्डग४ पड५ सरड६ काय७ उच्चारे= | गय घयण १० गोल ११ खंभे १२, खुड्डग १३ मग्गि१४ स्थि१५ पइ १६ पुत्ते १७ ॥ ७० ॥ भरह १ सिल २ मिंट ३ कुक्कुड ४, तिल ५ वालुध ६ हत्थि ७ अगड ८ वणसंडे है । पायस १० इया ११ पत्ते १२, खाडहिला १३ पंच पिरो य १४ ॥ ७१ ॥ महसित्य १८ मुद्दि १६ के २०, य नाणए २१ भिक्खु २२ चेडगनिहाणे २३ । सिक्खा २४ य अत्थसत्थे २५, इत्थी य महं २५ सयसहस्से २७ ॥ ७२ ॥ भरनित्थरणसमत्था, तिवग्गसुत्तत्थगहियपेयाला । उभो लोग फलवई, विणयसमुत्था हवइ बुद्धी ॥७३॥ निमित्ते १ अत्थसत्थे य२, लेहे ३ गणिए ४ य कूल ५ अस्से६ य । गद्दभ ७ लक्खण ८ गंठी ६, अगए १० रहिए ११ य गणिया १२ य ॥७४॥ सीया साडी दीहं, च तणं अवसव्वयं च कुंचस्स १३ । निव्वोदए १४ य गोणे, घोडगपडणं च रुक्खाओ १५ ॥ ७५ ॥ उवओगदिट्ठसारा, कम्मपसंगपरिघोलणविसाला । साहुक्कारफलवई, कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ॥ ७६ ॥ हेरएि १ करिए २, कोलिय ३ डोवे ४ य मुत्ति ५ घय ६ व ७ तुन्नाए ८ वड्ढड्य है पूयइ १० घड ११ उचितकारे १२ य ॥ ७७ ॥ अणुमाण हे उदिट्ठतसाहिया
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[ २२ ] वयविवागपरिणामा । हियनिस्सेयसफलवई, बुद्धी परिणामिया नाम || ७८ ॥ अभए १ सिट्ठि कुमारे ३, देवी ४ उदिए हवइ राया ५ । साहूय नंदिसेणे ६, धणदत्ते ७ सावग ८ मच्चे ६ ॥ ७६ ॥ खमए १० अच्चपुत्ते ११, चाणक्के १२ चेव थूलभद्दे १३ य । नासिकसुंदरिनंदे १४ वइरे १५ परिणामिया बुद्धी ॥ ८० ॥ चलणाहण १६ मंडे १७, मणी १८ य सप्पे १६ य खगि २० थुभिंदे २१ । परिणामियबुद्धीए, एवमाई उदाहरणा ॥ ८१ ॥ सेतं अस्सुयनिस्सियं । से किं तं सुयनिस्सियं ? सुयनिस्सियं चउव्विहं पण्णत्तं, तंजा - उग १ ईहा २ अवाओ ३ धारणा ४ ॥ सू० ॥ २६ ॥ से किं तं उग्गहे ? दुविहे पण्णत्ते, तंजहाअत्युग्गहे य वंजग्गहे य, ॥ सू० २७ ॥ से किं तं वंजणुग्गहे ? वंजणुग्गहे चव्विहे पण्णत्ते, तंजहासोइंदियवंजणुग्गहे, घाणिदियवंजणुग्गहे, जिम्मिंदियवंजणुग्गहे, फासिंदियवंजणुग्गहे, से त्तं वंजणुग्गहे ॥ सू० ॥ २८ ॥ से किं तं अत्थुरग हे १ अत्युग्गहे छवि पण्णत्ते, तंजहा- सोइंदियऋत्थुग्गहे, चक्खिदियत्थुग्गहे, घाणिंदियात्थुग्गहे, जिम्मिंश्रिथुग्गहे, फासिंदियत्थुग्गहे, नोइंदियअत्थुग्गहे ॥ सू० ॥ २६ ॥ तस्स णं इमे एगट्टिया नाणाघोसा
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[ २३ ]
नाणा वंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तंजहा -ओगेरहणया, अवधारणया, सवणया, अवलंबणया, मेहा, से त्तं उग्गहे ||सू०||३०|| से किं तं ईहा ? ईहा छव्विहा पण्णत्ता, तंजहा- सोइंदियईहा, चक्खिदियईहा, घाणिंदियईहा, जिभिदियईहा, फासिंदियईहा, नोइंदियईहा, तीसेणं इमे एगट्टिया नाणाघोसा नाणा वंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तंजहा - श्रभीगणया, मग्गणया, गवेसणया, चिंता, वीमंसा, से तं ईहा || सू० ।। ३१ ।। से किं तं अवाए ? अवाए छव्विहे पण्णत्ते, तंजहा- सोइंदियावाए, चक्खिदियावाए, घाणिदिवाए, जिब्भिदियअवाए, फासिंदियावाए, नोइंदियावाए, तस्स णं इमे एगहिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्जा भवन्ति, तंजहा उट्टणया, पच्चाउट्टणया, अवाए, बुद्धी, विष्णा, से तं वाए | सू० ३२|| से किं तं धारणा ? धारणा छव्विहा परुणता तंजहा- सोइंदियधारणा, चक्खिदियधारणा, घाणिंदियधारणा, जिभिदियधारणा, फासिंदियधारणा, नोइंदियधारणा, तीसे णं इमे एगट्टिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नाम - धिज्जा भवंति, तंजहा धरणा, धारणा, ठवणा, पइट्ठा, कोट्टे, से तं धारणा || सू० ।। ३३ ।। उग्गहे इक्कस
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[ २४ ] मइए, अंतोमुहुत्तिया ईहा, अंतोमुहुत्तिए अवाए, धारणा संखेज वा कालं असंखेज्जं वा कालं ॥ सू०॥ ३४ ॥ एवं अट्ठावीसइविहस्स आभिणिबोहियनाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि पडियोहगदिलुतेण मल्लगदिढतेण । से किं तं पडिबोहगदिलुतेणं? पडिबोहगदिहतेणंसे जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं सुत्तं पडिबोहिज्जा, अमुगा अमुगत्ति, तत्थ चोयगे पन्नवयं एवं वयासी-किं एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? जाव दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ?, संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ?, असंखिऊ समयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति ?, एवं वयंतं चोयगं परणवए एवं वयासी-नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमयपविठ्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, जाव नो दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, से त्तं पडिबोहगदिलुतेणं । से किं तं मल्लगदिटुंतेणं ? मल्लगदिटुंतेणं से जहानामए केइ पुरिसे अावागसीसानो मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिंदु पक्खेविज्जा
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[ २५ ]
सेन, रवि पक्खिन्ते सेऽवि नद्वे, एवं परिवप्पमाणेसु पक्विप्पमाणेसु होही से उद्गबिंदू, जेणं तं मल्लगं रावेहिइत्ति; होही से उद्गबिंदू, जे गं तंसि मल्लगंसि ठाहिति; होही से उद्गबिंदू जेणं तं मल्लगं भरिहित; होही से उद्गबिंदू, जे णं तं मल्लगं पवाहेहिति; एवामेव पक्खिष्पमाणेहिं पक्खिप्पमाऐहिं अणतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरियं होइ; ताहुति करेइ नो चेव णं जाणइ के वेस सद्दाइ ? तो हं पविसई, तजाई मुगे एस सद्दइ; तत्र वायं पविसइ, तो से उवगयं हवइ, तत्र धारणं पविसइ, तणं धारेइ संखिज्जं वा कालं, असंखिज्जं वा कालं, से जहानामए केइ पुरसे अव्वत्तं सद्दं सुपिज्जा, तेणं सद्दोत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस साइ; तओ ईहं पविसह, तत्र जाणइ
मुगे एस सद्दे, तो अवायं पविसइ, तत्रो से उवगयं हवइ; तत्र धारणं पविसइ, तो णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं रूवं पासिज्जा तेणं रूवत्ति उग्ग हिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रूवत्ति; तओ ईपविसइ, तो जाणइ अमुगे एस रूवे, तो अवायं पविसइ, तत्र से उवगयं हवइ, तम्रो धारणं पवि
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[ २६ ] सह, तो णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्ज वा कालं । से जहानामए केहपुरिसे अव्वत्तं गंध अग्घाइज्जा तेणं गंघत्तिउग्गहिए, नो चेव णं जाणा के वेस गंधेत्ति; तो ईहं पविसइ. तो जाणइ अमुगे एस गंधे; तो अवायं पविसइ, तो से उवगयं हवइ, तो धारणं पविसइ, तो णं धारेइ संखेजं वा कालं असंखेजं वा कालं । से जहानामएके पुरिसे अव्वत्तं रसं श्रोसाइज्जा तेणं रसोत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रसेत्ति; तो ईहं पविसइ, तो जाणइ अमुगे एस रसे, तो अवायं पविसइ, तो से उवगयं हवा तो धारणं पविसह,तो गंधारेइ संखिजं वा कालं असंखिज्ज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं फासं पडिसंवेइज्जा तेणं फासेत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस फासश्रोत्ति; तो ईहं पविसइ, तो जाणइ अमुगे एस फासे, तो अवायं पविसइ, तो से उहगयं हवइ, तो धारणं पविसइ, तो णं धारेइ संखेज वा कालं असंखेज्जं वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पासिज्जा तेणं सुमिणेत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस सुमिणेत्ति, तो ईहं पविसह, तो जाणइ अमुगे
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[ २७ ] एस सुमिणे; तो अवायं पविसइ, तो से उवगर्य हवइ, तो धारणं पविसइ, तो णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं, से त्तं मल्लगदिहतेणं ॥ सू० ३५ ॥ तं समासश्रो चउम्विहं पएणतं, तंजहा व्वरो, खित्तत्रो, कालो, भावप्रो, तत्थ व्वो णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वाइं व्वाई जाणइ, न पासइ । खेत्तप्रोणं आभिणिषोहियनाणी आएसेणं सव्वं खेत्तं जाणइ न पासइ। कालो णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वं कालं जाणा न पासइ। भावप्रोणं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वे भावे जाणइ, न पासइ । उग्गह ईहाऽवाओ, य धारणा एव हुँति चत्तारि । भाभिणिवोहियनाणस्स भेयवत्थू समासेणं ॥ ८२ ॥ * अत्थाणं उग्गहणम्मि उग्गहो तह वियालणे ईहा । ववसायम्मि अवाओ, धरणं पुण धारणं विति ॥८॥ उग्गह इकं समयं, ईहावाया मुहुत्तमद्धतु। कालमसंखं संख, च धारणा होई नायव्वा ॥८४॥ पुढे सुणेइ सई, रुवं पुण पासइ अपुढे तु। गंधं रसं च फासंच, बद्धपुढे वियागरे॥८५ ॥ - * अस्थाणं उग्गहणं, च उग्गहं तह वियालणं हं । ववसायं च श्रवायं धरणं पुण धारणं विति ॥ १ ॥ इति पाठान्तरगाथा ।
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[ २८ ] भासासमसेढीओ, सदं जं सुणइ मीसियं सुणइ । वीसेढी पुण सई, सुणेइ नियमा पराघाए ॥८६॥ ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। सन्ना सई मई पन्ना, सव्वं आभिणिबोहियं ॥८७॥
से तं आभिणिबोहियनाणपरोक्खं, से तं मइनाणं ॥ सू०॥ ३६॥ से किं तं सुयनाणपरोक्खं ? सुयनाणपरोक्खं चोद्दसविहं पण्णत्तं तंजहा-अक्खरसुयं १ अणक्खरसुयं२ सरिणसुयं ३ असरिणसुयं४ सम्मस्यं५ मिच्छसयं६ साइयं७ अणाइयं८ सपज्जवसियंह अपज्जवसियं १० गमियं ११ अगमियं १२ अंगपविट्ठ १३ अणंगपविलु१४॥सू०॥३७॥ से किं तं अक्खरसयं? अक्खरसुयं तिविहं पण्णत्तं तंजहा-सन्नक्खरं, वंजणक्खरं, लद्धिअक्खरं । से किं तं सन्नक्खरं ? सन्नक्खरं अक्खरस्स संठाणागिई, से त्तं सन्नक्खरं । से किं तं वंजणक्खरं ? वंजणक्खरंअक्खरस्स वंजणाभिलावो, से त्तं वंजणक्खरं । से किं तं लद्धिअक्खरं ? लद्धिअक्खरं अक्खरलद्धियस्स लद्धिअक्खरं समुप्पजइ, तंजहासोइंदिय लद्धिअक्खरं, चक्खिदिय लद्धिअक्खरं, घापिदिय लद्धिअक्खरं, रसणिदिय लद्धिअक्खरं, फासिंदिय लद्धिअक्खरं, नोइंदिय लद्धिअक्खरं, से तं
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से किं तकरण, हेऊवएसेणं, पणत्तं, तंजहा
[ २९ ] लद्धिअक्खरं, से तं अक्खरसुयं ॥ से किं तं अणक्खरसयं? अणक्खरसुयं अणेगविहं पण्णत्तं, तंजहाऊससियं नीससियं, निच्छूढं खासियं च छीयं च । निस्सिघियमणुसारं, अणक्खरं छेलियाईयं ॥ ८८॥
से त्तं अणक्ख रसुयं ॥ सू० ॥ ३८॥ से किं तं सरिणसुयं ? सण्णिसुयं तिविहं पण्णत्तं, तंजहाकालिप्रोवएसेणं, हेऊवएसेणं, दिहिवाओवएसेणं । से किं तं कालिग्रोवएसेणं ? कालिग्रोवएसेणं जस्स णं अत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से णं सरणीति लगभइ । जस्सणं नत्थि --- ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वोमंसा, से णं असरणीति लगभइ, से त्तं कालिप्रोवएसेणं । से किं तं हेऊवएसेणं ? हेऊवएसेणं जस्सणं अत्थि अभिसंधारणपुब्विया करणसत्ती से णं सरणीति लब्भइ । जस्स णं नत्थि अभिसंधारणपुब्विया करणसत्ती से णं असरणीति लगभइ, सेत्तं हेऊवएसेणं । से किं तं दिहिवाओवएसेणं? दिहिवाअोवएसेणं सण्णिसुयस्स खोवसमेणं सरणी लब्भइ, असपिणसुयस्स खोवसमेणं असण्णी लब्भइ, से तं दिहिवाअोवएसेणं, से त्तं सएिणसुयं, से त्तं असपिणसुयं ॥ सू०॥ ३९ ॥ से किं तं सम्मसुयं ? सम्म
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[ ३० ] सुयं जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पण्णनाणदंसणधरेहिं तेलुकनिरिक्खियमहियपूइएहिं तीयपडुप्पगणमणागयजाणएहिं सव्वगाहिं सव्वदरिसीहिं पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं, तंजहा-आयारो? सूयगडो२ ठाणं ३ समवाओ४ विवाहपण्णत्ती५ नायाधम्मकहाओ६ उवासगदसानो ७ अंतगडदसाओ८ अणुत्तरोववाइयदसामोह पबहावागर णाई १० विवागसुयं ११ दिहिवाओ १२, इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं चोदसपुस्विस्स सम्मसुयं, अभिएणदसपुस्विस्स सम्ममुयं, तेण परं भिण्णेसु भयणा, से त्तं सम्मसुयं ।। सू०४०॥ से किं तं मिच्छासुयं ? मिच्छासुयं जं इमं अण्णाणिएहिं मिच्छादिट्ठिएहिं सच्छंदबुद्धिमइविगप्पियं, तंजहा-भारहं, रामायणं, भीमासुरुक्खं, कोडिल्लयं, सगडभदियारो, खोड (घोडग) मुहं, कप्पासियं, नागसुहुमं, कणगसत्तरी, वइसेखियं, बुद्धवयणं, तेरासियं, काविलियं, लोगाययं, सद्वितंतं, माढरं, पुराणं, वागरणं, भागवयं, पायंजली, पुस्सदेवयं, लेहं, गणियं, सउणरुयं, नाडयाई, अहवा बावत्तरिकलाओ, चत्तारि य वेया संगोवंगा, एयाई मिच्छदिहिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्छासुयं, एयाई चेव सम्मदिहिस्स सम्मत्त
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[ १] परिग्गहियाई सम्मसुयं, अहवा मिच्छदिहिस्सवि एयाइं चेव सम्मसुयं, कम्हा ? सम्मत्तहेउत्तणो जम्हा ते मिच्छदिट्ठिया तेहिं चेव समएहिं चोइया समाणा केइ सपक्खदिट्ठीओ चयंति, से त्तं मिच्छा सुयं ॥ सू० ॥ ४१॥ से किं तं साइयंसपज्जवसियं, अणाइयं अपज्जवसियं च ? इच्चे इयं दुवालसंगं गणि पिडगं वुच्छित्तिनयट्ठयाए साइयं सपज्जवसियं अवुच्छित्तिनयट्ठयाए अणाइयं अपज्जवसियं, तं . समासो चउव्विहं पण्णत्तं, तंजहा-व्वश्रो, खित्तो, कालो, भावप्रो, तत्थ व्वो णं सम्मसुयं एगं पुरिसं पड्डुच्च साइयं सपज्जवसियं, बहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं, खेत्तो णं पंच भरहाई पंचेरवयाइं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, पंच महाविदेहाइं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं, कालो णं उस्सप्पिणिं प्रोसप्पिणिं च पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, नो उस्सप्पिणिं नो प्रोसप्पिणिं च पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं, भावप्रो णं जे जया जिणपन्नत्ता भावा आघविज्जंति, परणविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति, ते तया भावे पडुच्च साइयं सपज्जवसियं खाअोवसमियं पुण भावं पडुच्च अणाइयं अपज्जव
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[ ३२ ]
सियं, अहवा भवसिद्धियस्स सुयं साइयं सपज्जवसियं च अभवसिद्धियस्स सुयं अणाइयं अपज्जवसियं च सव्वागासपएसग्गं सव्वागासपएसेहिं अनंतगुणियं पज्जवक्खरं निष्फज्जइ, सव्वजीवापि य णं अक्खरस्स अनंतभागो, निच्चुग्घाडियो जइ पुण सोऽवि आवरिज्जा तेणं जीवो अजीवत्तं पाविज्जा, -- “ सुट्टुवि मेहसमुदए, होइ पभा चंदसूराणं" से तं साइयं सपज्जवसियं, से त्तं अणाइयं अपज्जवसियं ॥ सू० ॥ ४२ ॥ से किं तं गमियं ? गभियं दिट्टिवाओ, से किं तं गमियं गमियं कालियं सुर्य, से तं गमियं से त्तं गमियं । श्रहवा तं समासत्र दुविहं पण्णत्तं, तंजहा - अंगपविट्ठ, अंग बाहिरं च । से किं तं अंगबाहिरं ? अंगबाहिरं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा - आवस्सयं च, आवस्सयवहरितं च । से किं तं श्रवस्सयं ? आवस्सयं छव्विहं पण्णत्तं, तंजहा - सामाइयं, चग्वी सत्थत्रो, वंदणयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं; से तं आवस्मयं । से किं तं वस्सयवहरितं ? आवस्सयवइरित्तं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा- कालियं च, उक्कालियं च । सेकिंतं उक्का लियं २ अणेगविहं पण्णत्तं, तंजहादसवेयालियं, कप्पियाकप्पियं, चुल्लकप्पसुयं, महाक
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[ ३३ ] प्पसुयं, उववाइयं, रायपसेणियं, जोवाभिगमो, पएणवणा, महापरणवणा, पमायप्पमायं, नंदी, अणुप्रोगदाराई, देविंदत्थओ, तंदुलवेयालियं, चंदा. विज्झयं, सूरपएणत्ती,पोरिसिमण्डलं, मण्डलपवेसो, विज्जाचरणविणिच्छो ,गणिविज्जा, भाणविभत्ती, मरणविभत्ती, प्रायविसोही, वीयरागसुयं, संलेहणासुयं,विहारकप्पो, चरणविही, आउरपच्चक्खाणं, महापचक्खाणं, एवमाइ, से त्तं उक्कालियं । से किं तं कालियं ? कालियं अणेगविहं पएणतं, तंजहाउत्तरज्झयणाई, दसाओ, कप्पो, ववहारो, निसीहं, महानिसीहं, इसिभासियाई, जम्बूदीवपन्नत्ती, दीवसा गरपन्नत्ती, चंदपन्नत्ती, खुड्डिया विमाणपविभत्तोमहल्लिया विमाणपविभत्ती, अंगचूलिया, वग्गचलिया, विवाहचूलिया, अरुणोववाए, वरुणोववाए, गरुलोववाए, धरणोववाए, वेसमणोववाए, वेलंधरोववाए, देविंदोववाए, उट्ठाणसुए, समुट्ठाणसुए, नागपरियावलियात्रो, निरयावलियारो कप्पियायो, कप्पवाडसियाश्रो, पुफियाओ, पुप्फचूलियाओ, वण्हीदसाओ, पासोविसभावणाणं, दिहिविसभावणाणं, सुमिण भावणणं महासुमिणभावणाणं, तेयग्गिनिसग्गाणं, एवमाइयाइंचउरासीइं पइन्नगसहस्साई
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[ ३४ ] . भगवनो अरहो उसहसामिस्स आइतित्थयरस्त, तहा संखिज्जाइं पइन्नगसहस्साइं मज्झिमगाणं जिणवराणं, चोद्दस पइन्नगसहस्साई भगवत्रो वद्धमाणसामिस्स, अवहा जस्स जत्तिया सीसा उप्पत्तियाए, वेण. इयाए कम्मयाए, पारिणाभियाए, चउव्विहाए बुद्धीए उववेया तस्स तत्तियाइं पइएणगसहस्साइं. पत्तेयबुद्धावितत्तिया चेव, से त्तं कालियं, से तंत्रावस्सयवइरित्तं,से त्तं अणंगपविट्ठ॥सू॥४॥से किं तं अंगपविठं? अंगपविटुंदुवालसविंपएणतं, तंजहा-आयारो १ सूयगडो २ ठाणं ३ समवाओ ४ विवाहपन्नत्ती ५ नायाधम्मकहाओ ६ उवासदसाो ७ अंतगडद. साश्रो अणुत्तरोववाइयदसाश्रो हपण्हावागरणाई १० विवागसुयं ११ दिट्ठिवाओ १२॥ सू०॥४४॥ से किं तं पायारे ? अायारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयारगोयरविण्यवेणइयसिक्खाभासाअभासाचरणकरणजायामायावित्तीओ आघविज्जंति, से समा सोपंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-नाणायारे,दंसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे, पायारेणं परित्ता वायणा, संखेजा अणुप्रोगदारा, संखिजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखिजानो निज्जुत्तीरो, संखिजात्रो संगहणीओ, संखिज्जाश्रो पडिवत्तीओ, से
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[ ३५ ] णं अंगठ्ठयाए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीइ उद्देसणकाला, पंचासीइ समुइसणकाला, अट्ठारस पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखिजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपएणत्ता भावा आघविजंति, पन्नविजंति, परविजंति, दंसिज्जंति, निदंसिजंति, उवदंसिजंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विएणाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से त्तं पायारे १॥ सू०॥ ४५ ॥ से किं तं सूयगडे ? सूयगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, लोयालोए सूइज्जइ, जीवा सूइज्जंति, अजीवा सूइजंति, जीवाजीवा सूइज्जति, ससमए सूइज्जद, परसमए सूइजइ, ससमयपरसमए सूइ. जह, सूयगडे णं असीयस्स किरियावाइसयस्स, चउरासीइए अकिरियावाईणं, सत्तट्ठीए अण्णाणीयवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं, तिण्हं तेसहाणं पासंडियसयाणं वूहं किचा ससमए ठाविजइ, सूयगडे णं परित्ता वायणा, संखिजा अगुोगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखिजानो निजुतीनो, संखिजात्रो संगहणीप्रो, संखिजानो पडिवत्तीयो, से णं अंगठ्याए बिइए अंगे, दो सुयक्खं
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[ ३६ ] धा, तेवीसं अज्झयणा, तित्तीसं उद्देसणकाला, तित्तीसं समुद्देसणकाला, छत्तीसं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखिजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता. भावा आपविजंति, पएणविजंति, परुविजंति, दंसिजति, निदंसिजंति, उवदंसिजति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विणणाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से तं सूयगडे २ ॥सू०॥४६॥ से किं तं ठाणे ? ठाणे गं जीवा ठाविजंति, अजीवा ठाविजंति, जीवाजोवा ठाविनंति, ससमए ठाविजइ, परसमए ठाविजइ, ससमयपरसमएठाविजइ, लोएठाविजइ, अलोए ठाविजइ, लोयालोए ठाविजइ, । ठाणे णं टंका, कूडा, सेला, सिहरिणो, पन्भारा, कुंडाइं, गुहाओ, अागरा, दहा, नईओ, अाघविजंति । ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्ढीए दसट्ठाणगविवढियाणं भावाणं परूवणा आघविजइ। ठाणे णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुअोगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजात्रो निन्जुत्तीरो, संखेजात्रो संगहणीप्रो; संखेजात्रो पडिवत्तीयो। से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे, एगे सुयक्खंधे, दसअज्झयणा
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[ ३७ ]
एगवीसं उद्देसणकाला, एक्कवीसं समुद्देसणकाला, बावन्तरि पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अता पजवा, परित्ता तसा, अणता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपन्नत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्वंति, निदंसिज्वंति, उवदंसिज्वंति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विष्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा श्राघविज्जइ, से त्तं ठाणे ३ || सू० ॥ ४७ ॥ से किं तं समवाए ? समवाए णं जीवा समासिज्जंति, जीवा समासिजंति, जीवाजीवा समासिज्जंति, ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमय पर समए समासिज्जइ, लोए समासिज्जइ, अलोए समासिज्जइ लोयालोए समासिज्जइ । समवाए गं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसयविवढियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ; दुवालसविहस्स य गणिपिढगस्स पल्लवर्ग समासिज्जइ, समवायस्स णं परित्ता वायणा, संखिजा गदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संविज्जाओ, निजुत्तीओ, संखिजाओ संगहणी, संखिज्जाओ, पडिवत्तीओ, से णं अंगयाच उत्थे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे अज्भपणे, एगे उद्देसuकाले, एगे समुद्देसणकाले, एगे चोयाले
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[ ३८ ]
सयसहस्से पयग्गेणं; संखेजा अक्खररा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासयकडनिवद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति, परणविज्जंति, परुविज्जंति, दंसिजंति निदंसिज्जंति, उवदंसिजंति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विष्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा श्रघविज्जइ । से त्तं समवाए ४ ॥ ० ॥ ४८ ॥ से किं तं विवाहे ? विवाहे णं जीवा विचहिज्जंति, अजीवा वित्राहिज्जंति, जीवाजीवा विश्राहिजंति, ससमए विहिज्जति, परसमए विद्याहिज्जति, ससमएपरसमए विश्र। हिज्जति, लोए विहिजति, अलोए विना हिज्जति, लोयालोए विहिज्जति, विवाहस्स परिता वायणा, संखिजा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीचो, संखिजा संगहणीओ, संखिजाओ पडिवत्तीओ, से णं गट्टयाए पंचमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झणसए, दस उद्देसगसहस्साई समुसगसहस्साईं, छत्तीसं वागरणसहस्साई, दो लक्खा अट्ठासी पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखिजा अक्खरा, अणता गमा, अणता पज्जवा, परिता तसा, अनंता थावरा, सासयकडनिबद्ध निकाइया जिणपण्णत्ता
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[ ३९ ] भावा आपविजंति पण्णविनंति, परूविजंति, दंसिजंति, निदंसिजति, उवदंसिजंति, से एवं पाया, एवं नाया, एवं विएणोया, एवं चरणकरणपरूवणा प्राविजइ,सेत्तं विवाहे शासू०॥४६॥से किं तं नाया. धम्मकहाश्रो ? नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराई, उजाणाइं, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई,रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इढिविसेसा, भोगपरिचाया, पव्व ज्जाओ, परिप्राया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपञ्चक्खाणाई, पात्रोवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपञ्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियात्रो य प्रायविजंति, दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई, एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवाक्खाइया सयाई एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइयउवक्खाइयासयाइं एवामेव सपुव्वावरेणं अधुट्ठारो कहाणगकोडीअो हवंतित्ति समक्खायं । नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखिजा अणुप्रोगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिजारो निजत्तीओ संगहणीओ, संखिजानो पडिवतीनो । से एं अंगठ्ठयाए छठे अंगे, दो सुयक्खंधा,
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[ ४० ] एगूणवीसं अज्झयणा, एगणवीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं,संखेजा अक्खरा,अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपएणत्ता भावा अाघविजंति परणविजंति परूविजंति देसिज्जति नि दसिजति उवदंसिजंति, से एवं अाया, एवं नाया, एवं विणाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से त्तं नायाधम्मकहाअो ६ ॥ सू० ॥ ५० ॥ से किं तं उवासगदसाो ? उवासगदसासुणं समणोवासयाणं नगराई, उजाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरपाइं, रायाणो, अम्मापिवरो, धम्मायरिया, धम्मकहाम्रो इहलोइयपरलोइया इढिविसेसा, भोगपरिचाया, पव्वजाओ, परिवागा, सुयपरिग्गहा, तवोवहागाई सीलव्वयगुणवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासपडिवजणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपचक्क्खांणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपचाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियायो य आधविजंति; उवासगदसाणं परित्ता वायणा, संखेजा अणुप्रोगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजात्रो निजत्तीअो संखेजात्रो संगहणीश्रो, संखेजात्रो पडिवत्तीयो। से गं अंग
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- [ ४१ ] ट्ठयाए सत्तमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झनणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेजा पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेना अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज वा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा प्राघविजंति पन्नविजंति परूविजंति दंसिजति, निदंसिर्जति, उवदंसिर्जति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ; से तं उवासगदसाप्रो ७॥ सू० ।। ५१ ॥ सं किं तं अंतगडदसायो ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई, उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इढिविसेसा; भोगपरिच्चागा, पव्वजारो परित्रागा, सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई, संलेहणालो, भत्तपञ्चक्खाणाइं, पात्रोवगमणाई अंतकिरियाअो, आधविजंति; अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा, संखिजा अणुअोगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजात्रो निजत्तीओ,संखेजात्रोसंगहणी, संखेजात्रोपडिवत्तीप्रो से गं अंगठ्ठयाए अट्ठमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, अट्ठ वग्गा, अट्ठ उद्देसणकाला, अट्ठ समुहेसणकाला
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[ ४२ ] संखेजा पयसहस्सा पयग्गेणं; संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति, पन्न विजंति परूविजंति, डंसिजति, निदंसिजंति, उवदंसिज्जति; से एवं पाया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा श्राघविजइ; से त्तं अंतगडदसायो ८॥ सू० ५२ ।। से किं तं अणुत्तरोववाइयदसायो ? अणुत्तरोववाइयदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणं नगराई, उजाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इढिविसेसा, भोगपरिच्चोगा, पव्वजाओ, परिभागा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, पडिमात्रो, उवसग्गा, संलेहणाश्रो, भत्तपच्चवखाणाइं पाओवगमणाई, अणुत्तरोववाइय त्ति उववत्ती, सुकुलपञ्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियामो, प्राविज्जंति, अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुप्रोगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजाओ निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संगहणीओ, संखेजात्रो पडिवत्तीओ, से गं अंगट्ठयाए नवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, तिन्नि वग्गा, तिन्नि
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[ ४३ ]
- उद्देसणकाला, तिन्नि समुद्देसणकाला, संखेज्जाई. पयसइस्साईं पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासयकडनिवद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, परणविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्वंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विष्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, सेत्तं अणुत्तरोववाइयदसाओ ह || सू० ५३ से किं तं परहावागरणाई ? परहावागरणेसु अट्टुत्तरं पसिणस, अट्टुत्तरं अपसिएसयं, अ तर परिणापसिणसयं; तंजहा - अंगुट्ठपसिणाई, वाहुपसिगाई, अहागपसिपाई, अन्नेविविचित्ता विज्जाइसया, नागसुवरणेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति, पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखेजा गदारा, संखेज्जा बेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेजाओ निज्जुत्सीओ, संखेजाओ संग हणीओ, संखेजाओ पडिवत्तीओ; से णं गट्टयाए दसमे अंगे एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्भवणा, पणगुलीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसण काला, संगाढसेपयसहस्साइं पयग्गेणं; संखेज्जा अक्खरा, अतः ५ अता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, स्याप
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[ ४४ ] यकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति, परणविजंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निर्दसिज्जंति, उवदंसिज्जंति; से एवं आया, एवं नाया, एवं विरणाया; एवं चरणकरणरूवणा आघविज्जइ; से तं पण्हावागरणाई १० ।। सू० ।। ५४ ॥ से कि तं विवागसुयं ? विवागसुए णं सुकडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जइ, तत्थ णं दस दुहविवागा दस सुहविवागा । से किं तं दुहविवागा ? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराई, उज्जाणाई, वणसंडाई, चेइयाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपर लोइया इड्ढि विसासा, निरयमणाई, संसारभवपवंचा दुहपरंपराओ, दुकुलपच्चायाइओ, दुल्लहबोहियत्तं, आघविज्जइ; से न्तं दुहविवागा । से किंतं सुहविवागा ? सुहविवागेसु णं सुहविवशगाणं नगराई, उज्जाई, वणसंडाइ चेइयाइ, समोसरणाइ, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलो इया इड्ढविसेसा, भोग परिचागा, पव्वज्जाओ, लोगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, संग हणीचक्खाणाई, पावगमणाई, देव लोगगमणाई, याए नरंपराओ, सुकुलपश्चायाईओ, पुणवोहिलाभा,
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[ ४५ ] अंतकिरियानो, आघविजंति। विवागसुयस्य णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुप्रोगदारा,संखेजा वेढा संखेज्जा सिलोगा, संखेजाओ निजुत्तीओ, संखिजाश्रो संगहणीश्रो, संखिज्जारो पडिवत्तीअो । से णं अंगट्ठयाए इकारसमे अंगे, दो सुयक्खंधा, वीसं अज्झयणा, वीसं उद्देसणकाला, वीसं समुद्देसणकाला, संखिजाई पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पन्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति, पन्नविनंति, परूविजंति, दंसि. जंति निदंसिजंति, उवदंसिजति, से एवं पाया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा अाघविजइ, से त्तं विवागसुयं ११ ॥ सू० ५५ ॥ से किं तं दिहिवाए ? दिहिवाएणं सव्वभावपख्वणा आघविजइ, से समासो पंचविहे पण्णत्ते, तंजहापरिकम्मे १ सुत्ताई २ पुव्वगए ३ अणुप्रोगे ४ चलिया ५ । से किं तं परिकम्मे ? परिकम्मे सत्तविहे पएणत्ते, तंजहा-सिद्धसेणिया परिकम्मे १ मणुस्ससेणियापरिकम्मे २ पुट्ठसेणिया-परिकम्मे ३ अोगाढसेणियापरिकम्मे ४ उवसंपजणसेणियापरिकम्मे ५ विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ६ चुयाचुयसेणियाप
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[ ४६ ]
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रिकम्मे ७ । से किं तं सिद्ध सेणियापरिकम्मे ? सिद्धसेणियापरिकम्मे चउदसविहे पण्णत्ते, तंजहा-मउगा पया १ एगट्ठियपयाई २ अट्ठपयाई ३ पाढीचागासपयाई ४ केभूयं ५ रासिषद्ध ६ एगगुणं ७ दुगुणंद तिगुणं ६ केभूयं १० पडिग्गहो ११ संसार पडिग्गहो १२ नंदावतं १३ सिद्धावत्तं १४, से तं सिद्धसेपियापरिकम्मे १ । से किं तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे ? मणुस्ससेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पणते, तंजा - माज्यापयाई १ एगट्टियपवाई २ अट्ठपयाई ३ पाढोगासपाई ४ केउभूयं ५ रासिबद्ध ६ एगगुणं ७ दुगुणं तिगुणं ६ केभूयं १० पडिग्गहो ११ संसार डिग्गहो १२ नंदावत्तं १३ मणुस्सावत्तं १४, सेतं मणुस्स सेणियापरिकम्मे २ । से किं तं पुसेणिया परिकम्मे ? पुट्ठसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पत्ते, तंजहा - पाढो आागासपयाई १ केउ भूयं २ रासबद्ध ३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केउभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो ६ नंदावत्तं १० पुट्ठावत्तं ११, से तं पुट्ठसेणियापरिकम्मे ३ । से किं तं श्रगाढ सेणियापरिकम्मे ? गाढसेणियापरिकम्मे sarafat पत्ते, तंजहा- पाढो आगासपधाई १ के भूयं २ रासबद्ध ३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं
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[ ४७ ]
६ केउभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो ६ नंदावत्तं १० ‘ोगाढावत्तं ११, से त्तं श्रोगाढसेणियापरिकम्मे ४। से किं तं उवसंपजणसेणियापरि कम्मे ? उवसंपज्जणसेणिया परिकम्मे इकारसविहे पण्णत्ते, तंजहा-पाढोागासपयाई १ केभूयं २ रासिबद्ध३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केउभूयं ७ पडिग्गहो ८संसारपडिग्गहो । नंदावत्तं १० उवसंपजणवत्तं ११, सेत्तं उवसंपजणसेणियापरिकम्मे ५ । से किं तं विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ? विप्पजहणसेणियापरिकम्मे इकारसविहे पएणत्ते. तंजहा-पाढोागासपयाइं १ केभूयं २ रासिबद्ध३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केउभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो: नंदावत्तं १०विप्पजहणावत्तं ११, से तं विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ६ । से किं तं चुयाच्यसेणियापरिकम्मे ? चुयाचुयसेणियापरिकम्मे इकारसविहे पन्नत्ते, तंजहा-पाढोागासपयाइं १ केउभूयं २ रासिबद्ध ३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केउभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो ६ नंदावत्तं १० चुयाचुयवत्तं ११,सेत्तं चुयाचुयसेणियापरिकम्मे ७। छ चउक्कनइयाई, सत्त तेरासियाई; सेत्तंपरिकम्मे १।
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[ ४८ ] से किं तं सुत्ताई ? सुत्ताई बावीसं पत्नत्ताई, तंजहा-उज्जुसुयं १ परिणयापरिणयं २ बहुभंगियं ३ विजयचरियं ४ अणंतरं ५ परंपरं ६ मासाणं ७ संजूहं ८ संभिएणं : प्राह चायं १० सोवत्थियावत्तं ११ नंदावत्तं १२ बहुलं १३ पुट्ठापुढे १४ वियावत्तं १५ एवंभूयं १६ दुयावत् १७ वत्तमाण पयं १८ सममिरुढं १६ सव्वोभई २० पस्सासं २१ दुप्पडिग्गहं २२, इच्चेइयाई बावीसं सुत्ताई छिन्नच्छेयनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए; इच्चेइयाई वावीसं सुत्ताई अच्छिन्नच्छेयनइयाणि आजीवियसुत्तपरिवाडीए; इच्चेइयाइं वावीसं सुत्ताई तिगणइयाणि तेरासिय सुत्तपरिवाडीए; इच्चेइयाइं बावीसं सुत्ताइं चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए; एवामेव सपुवावरणं अट्टासीई सुत्ताइं भवंतित्ति मक्खायं, सेत्तं सुत्ताई २। से किंतं पुव्वगए? पुव्वगए चउद्दसविहे पएणत्ते, तंजहा-उप्पायपुव्वं १ अग्गाणीयं २ वीरियं ३ अत्थिनत्थिप्पवायं ४ नाणप्पवायं ५ सच्चप्पवायं ६ श्रायप्पवायं ७ कम्मप्पवायं ८ पञ्चक्खाणप्पवायं (पच्चक्खाणं) विजणुप्पवायं १० अझं ११ पाणाऊ १२ किरियाविसालं १३ लोकबिंदसारं १४। उप्पायपुव्वस्स दस वत्थू, चत्तारि चूलियावत्थू पएणत्ता।
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[ ४९ ] अग्गाणीयपुव्वस्सरांचोइस वत्थू, दुवालस चूलियावत्थू पण्णत्ता । वीरियपुवस्स अट्ठ वत्थू अट्ठ चुलियावत्थू पण्णत्ता । अत्थिनत्थिप्पवायपुव्वस्स णं अट्ठारस वत्थू, दस चूलियावत्थू पएणत्ता । नाणप्पवायपुव्वस्स बारसवत्थू पण्णता । सच्चप्पवायपुवस्सणं दोएिणवत्थूपएणत्ता। प्रायप्पवायपुवस्सणं सोलस वत्थू पण्णत्ता । कम्मप्पवायपुव्वस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता । पच्चक्खाणपव्वस्स णं वीसं वत्थू पण्णत्ता। विजाणुप्पवायपुवस्सणं पन्नरस वत्थू परणत्ता । अवंझपुवस्स णं वारस वत्थू पण्णत्ता। पाणाउपुवस्स गं तेरस वत्थू पण्णत्ता। किरियाविसाल पुवस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता। लोकबिंदुसारपुव्वस्स णं पणुवीसं वत्थू पण्णत्ता, गाहा- दस १ चोदस २ अट्ट ३ ऽट्ठारसेव ४ बारस ५ दुवे ६ य वत्थूणि । सोलस ७ तीस ८वीसाह, पन्नरस १० अणुप्पवायम्मि ॥८६॥
बारस इक्कारसमे , बारसमे तेरसेव वत्थूणि। तीसा पण तेरसमे, चोदसमे परणवीसारो॥१०॥
चत्तारि १ दुवालस २ अट्ठ३ चेवदस ४ चेव चुल्लवत्थूणि । पाइल्लण चउण्हं, चुलिया नत्थि ॥६१ से तं पुव्वगए । से किंतं अणुओगे?अणुप्रोगे दुविहे
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[ ५० ] पण्णत्ते, तंजहा - मूलपढमाणुओगे, गंडियाणुओगे य। से किं तं मूलपढमाणुओगे ? मूलपढमाणुओगे अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवगमणाई, आउं, चवणाई, जम्मणाणि, अभिसेया रायवरसिओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयात्रो, तित्थपवत्तणाणिय, सीसा, गणहरा, अज्जपवन्तिणीओ संघस्स चव्विहस्स जं च परिमाणं, जिएमए पज्जओहिनाणी, सम्मत्तसुयनाणिणोय, वाई, अणुत्तरगईय, उत्तरवेउ चिणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा, सिद्धिपहो जह देसिओ, जच्चिरं च कालं, पोचावगया जे जहिं जत्तियाई भत्ताइं अणसणाए छेत्ता अंतगडे, मुणिवरुत्तमे, तिमिरओघ विप्पमुक्के मुक्खसुहमणुत्तरं च पत्ते, एवमन्ने य एवमाहभावा मूलपढमाणुओगे कहिया, से त्तं मूलपढमाणुओगे से किं तं गंडियाओगे ? गंडियाणुओगे कुलगरगंडिया, तित्थयर गंडियाओ, चक्कवट्टिगंडियाओ, दसारगंडिया, बलदेवगंडिया, बासुदेवगंडियाओ, गणधरगंडियाओ, भद्दवाहुगंडियाओ, तवोकम्मगंडिया, हरिवंसगंडियाओ उस्सप्पिणीगंडिया, श्रसप्पिणीगंडिया, चित्तंतरगंडियाओ अमर र तिरियनिरयगइगमणविविह परियहणेसु एव
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[ ५१ ] माझ्याओ गंडियाो प्राविति, परणविजंति सेत्तं गंडियाणुप्रोगे, से तं अणुश्रोगे ४ । से किं तं चुलियारो ? पाइल्लाणं चउराहं पुव्वाणं, चूलिया, सेसाइं पुब्वाइं अचुलियाई, से त्तं चूलियाो । दिट्ठिवायस्स णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुप्रोगदारा, संखेजा वेढा,संखेजा सिलोगा संखेजाओ पडिवत्तीप्रोसंखिज्जाओं निज्जुत्तीरो,संखेजाओसंग हणीरो से णं अंगठ्ठयाएबारसमे अंगे, एगेसुयक्खंधे, चोद्दस पुवाई, संखेजा वत्थू, संखेजा चूलवत्थू, संखेजा पाहुडा, संखेजापहुडपाहुडा, संखेज्जाओ पाहुडियाओ, संखेजात्रो पाहुडपाहुडियाओ, संखेज्जाइं पयसदस्साइं पयग्गंणं, संखेजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपन्नत्ता भावा आघविज्जंति, परणविजंति, परूविज्जति दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति । से एवं प्राया, एवं नाया एवं विएणाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जति, से त्तं दिट्ठिवाए १२ ॥सू॥ ५६ ॥ इच्चे इयंमि दुवालसंगे गणिपिडगे अणंताभावा अणंता अभावा, अणंता हेऊ.अणंता अहेऊ, अणंता कारणा, अणंता अकारणा, अणंता जीवा अणंतता
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[ ५२ ] अजीवा अणंता भवसिद्धिया अणंता अभवसिद्धिया अणंता सिद्धा, अणंता असिद्धा पण्णत्ताभावमभावा हेऊमहेउ कारणमकारणे चेव । जीवाजीवाभवियमभविया सिद्धा असिद्धाय ॥१२॥ इच्चेइयं दुवालसंगं कणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा प्राणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियटिंसु । इचेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा प्राणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकतारं अणुपरियति । इच्चेइयंदुवालसंग गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियहिस्संति। इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए प्राराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं बीईवइंसु । इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडिगं पडुप्पएणकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चउरतं संसारकंतारं वीईवयंति । इच्चे इयं दुवालसंगं गणिपिडगंणागए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्संति । इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडिगं न कयाइ नासी, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च, भवई य, . भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए
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[ ५३ ] अव्वए, अवट्ठिए, निचे। से जहानामए पंचथिकाए न कयाइनासी न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवहिए, निच्चे, एवामेव दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च, भवइ य, भविस्सइ य,धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वएं, अवहिए, निच्चे । से समासत्रो चउविहे पणत्ते, तंजहा-व्वरो, खित्तो, कालो, भावो। तत्थ व्वनो सुयनापी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ, खित्तो णं मुयनाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ, कालो णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ, भावो णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वे भावे जाणइ पासइ, ॥ सू॥ ५७॥ अक्खर संन्नी सम्म, साइयंखलु सपज्जवसियंच। गमियं अंगपविटुं, सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥१३॥
आगमसत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिटं।। विति सुयनाणलंभं, तं पुव्वविसारया धीरा॥ १४ ॥
मुस्सूसइ १ पडिपुच्छइ २ सुणेइ ३ गिबहइ४
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[ ५४ ] य ईहएयावि ५। तत्तो अपोहए ६ वा, धारेइ ७ करेइ वा सम्म ८॥१५॥
मूअं हुंकारं वा, वाढक्कारं पडिपुच्छ वीमंसा। तत्तो पसंगपारायणं च परिणिट्ट सत्तमए ॥६६॥ - सुत्तत्थो खलु पढमो, बीअो निज्जुत्तिमीसिओ भणियो। तइओ य निरवसेसो, एस विही होइ अणुप्रोगे॥१७॥ ___ सेत्तं अंगपविटुं, से त्तं सुयनाणं, सेत्तं परोक्खनाणं, से त्तं नंदी ॥ नंदी समत्ता ॥
AAAAAAAAAAA00000०००००००००
इन नंदीसुक्तं समतल
पुस्तकें मिलने के पते१-जैन हितेच्छु श्रावक ३-छोटेलाल यति
- मंडल, रतलाम रांगडी चौक, बीकानेर २-घासीलाल चाँदमल जैन ४-जैन प्रकाश पुस्तकालय ... सहर शराय, रतलाम .. . सूजानगढ़
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मेरी भावना जिसने राग द्वेष कामादिक जीते, सब जग जान लिया । सब जीवों को मोक्ष मार्ग का, निस्पृह हो उपदेश दिया । बुद्ध वीर जिन हरिहर ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो । भक्त भाव से प्रेरित हो, यह चित्त उसी में लीन रहो । विषयों की आशा नहीं जिनके, साम्य भाव धन रखते हैं । निज पर के हित साधन में जो, निशिदिन तत्पर रहते हैं । स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या, बिना खेद जो करते हैं । ऐसे ज्ञानी साधु जगत के, दुःख समूह को हरते हैं । रहे सदा सत्संग उन्हीं का, ध्यान उन्हीं का नित्य रहे । उन्हीं जैसी चर्या में यह, चित्त सदा अनुरक्त रहे । नहीं सताऊँ किसी जीव को, झूठ कभी नहीं कहा करूँ । परधन बनिता पर न लुभाऊँ, संतोषामृत पिया करूँ ॥ अहंकार का भाव न रक्खू, नहीं किसी पर क्रोध करूँ । देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईर्ष्या भाव धरूँ ॥ रहे भावना ऐसी मेरी, सरल सत्य व्यवहार करूँ । बने जहाँ तक इस जीवन में. औरों का उपकार करूँ॥ मैत्री भाव जगत में मेरा, सब जीवों से नित्य रहे । दीन दुःखी जीवों पर मेरे, उर से करुणा श्रोत बहे ।। दुर्जन-कर-कुमार्ग रतों पर, क्षोभ न मेरे को आवे । साम्य भाव रखू मैं उन पर, ऐसी परिणति हो जावे ॥ गुणी जनों को देख हृदय में, मेरे प्रेम उमड़ आवे । बने जहाँ तक उनकी सेवा, करके यह मन सुख पावे ॥
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[ ५६ ] होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे । गुण ग्रहण का भाव रहे, नित दृष्टि न दोषों पर जावे ॥ कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी श्रावे या जावे । लाखों वर्षों तक जीवू, या मृत्यु आज ही आ जावे ।। अथवा कोई कैसा ही, भय या लालच देने आवे । तो भी न्याय मार्ग से मेरा, कभी न प डिगने पावे ॥ होकर सुख में मग्न न फूलें, दुःख में कभी न घबरावें । पर्वत, नदी, स्मशान भयानक,अटवी से नहीं भय खावें ॥ रहे अडोल, अकम्प निरन्तर, यह मन दृढ़तर बन जावे । इष्ट वियोग अनिष्ट योग में, सहन शीलता दिखलावें ।। सुखी रहें सब जीव जगत के, कोई कभी न घबरावे ।
वैर पाप अभिमान छोड़, जग नित्य नये मंगल गावें ॥ . घर घर चर्चा रहे धर्म की, दुष्कृत दुष्कर हो जावें । ज्ञान चरित उन्नत कर अपना, मनुज जन्म फल सब पावें। ईति भीति व्यापे नहीं जग में, वृष्टि समय पर हुआ करे । धर्म निष्ट होकर राजा भी, न्याय प्रजा का किया करे । रोग मरी दुर्भिक्ष न फैले, प्रजा शान्ति से जिया करे । परम अहिंसा धर्म जगत में, फैल सर्व हित किया करे ।। फैले प्रेम परस्पर जग में, मोह दूर पर रहा करे । अप्रिय, कटुक, कठोर शब्द नहीं, कोई मुख से कहा करे ।। बनकर सब “युग-बीर" हृदय से, देशोन्नति रत रहा करें। वस्तु स्वरूप विचार खुशी से, सब दुःख संकट सहा करे ।
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जीवन कार्यालय अजमेर के स्थाई ग्राहक और पत्र व्यवहार
के नियम (१) स्थाई ग्राहक बनने की प्रवेश-फीस एक रुपया ।। (२) "माला" की पुस्तकें प्रकाशित होने पर १५ दिन पहले मूल्य
आदि का “सूचना-पत्र” भेज देने के बाद ग्राहकों को २५) सैकड़ा
कमीशन काट कर वी० पी० भेजी जाती है। (३) एक रुपया से कम की वी० पी० नहीं भेजी जायगी ।। (४) आर्डर भेजते समय स्पष्ट लिखना चाहिए कि पुस्तकें रेल से या
डाक से किस प्रकार भेजी जॉय । (५) पुस्तक मंगाकर वापस करने पर नुकसान तथा डाक महसूल कुल
खर्च मंगाने वाले से वसल किया जावेगा, अतः ऑडर देने से पूर्व
बहत सोच समझ कर पुस्तके मङ्गानी चाहिये। (६) बैरङ्ग पत्र नहीं लिये जायेंगे और न पत्र के साथ भेजे हुए टिकटों
की कोई जिम्मेदारी कार्यालय पर होगी। (७) ऑर्डर भेजते समय, मुकाम, डाकखाना तथा ज़िला व रेलवे स्टेशन
बहुत साफ, व स्पष्ट लिखना चाहिये। (८) यदि किसी ची० पी० में भूल जान पड़े तो उसे लौटाना नहीं
चाहिये, वी० पी० छुड़ाकर हमें तुरन्त लिखें, भूल ठीक कर देंगे। नोट-हिन्दी की प्रायः सभी प्रसिद्ध २ प्रकाशकों की पुस्तकें उचित मूल्य पर जीवन कार्यालय अजमेर में सदैव मिल सकेंगी।
पत्र व्यवहार का पता
पंडित छोटेलाल यति जीवन कार्यालय ( तारघर के पीछे) अजमेर सप्रेस में छपाई बहुत उमदा, शुद्ध, सस्ती और जल्दी होती है। पुस्तक छपाई के लिए खास प्रबन्ध है । सञ्चालक-जीतमल लूणिया
पता-आदर्श प्रेस, केसरगंज, अजमेर।।
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________________ 1 // जैन-धर्म में क्रान्ति फैलाने वाले ग्रन्थ दयादान प्रचारक पुस्तकें। इन पर कमीशन नहीं मिलेगा। 1 अनुकम्पा विचार 1) 19 सद्धर्म मण्डन 2 परदेशी राजा 20 भस्तेय ब्रत 3 आदर्श क्षमा -) // 21 सत्यव्रत 4 अर्जुनमाली राधेश्याम तर्जमें] =) 22 सुबाहु कुमार 5 नंदन मणीहार // 23 अहिंसा व्रत 6 प्रार्थना -) 24 वैधव्य दीक्षा 7 सुदर्शन 25 ब्रह्मचर्यव्रत 8 मदनरखा -)26 धर्म व्याख्या 9 चूलणी पिता 27 सनाय-अनाथ निर्णय 10 जैनधर्म में मातृ पितृ सेवा)२८ सडाल पुत्र की कथाका 11 परिचय [दयादान विचार] 3) 29 तीर्थकर चरित्र प्र० भा० ) 12 शालीभद्र चरित्र 3 भाग ) 30 द्वि० मा० ) 13 मिलके वस्त्र और जैन धर्म -) 31 सत्यमूर्ति हरिश्चन्द्रतारा / 14 जिनरिख जिनपाला 32 रुक्मिणी विवाह। 15 मेघकुमार 1-) 33 खादी और जैन धर्म 16 सामाइक और धर्मोपकरण ) 34 स्मृति श्लोक 17 नमिराज ऋषि भेंट 35 जैनधर्मशिक्षावली भा.७ वां) 18 तेरापंथले सुजानगढ़ में चरचा)॥ 36 चित्रमय अनुकम्पा विचार) हिन्दी की प्रायः सभी प्रसिद्ध प्रसिद्ध प्रकाशकों की पुस्तकें उचित मूल्य पर जीवन कार्यालय अजमेर में, सदैव मिल सकेंगी। महावीर स्तोत्र अर्थ सहित ) हंसराजचरित्र-) बच्छराज चरिन्न-) झणकार चरित्र =) अमर चरित्र - // जैन सुख चैन बहार पाँचो भाग 1) चन्दन वाला चरित्र ) // गजल गुल चमन बहार ) चन्द्र लीला चरित्र - सीता बनवास-) विनय वाटिकाचंपकचरित्र)। राजाविक्रमादित्य-)॥ स्त्री शिक्षा भजन संग्रह प्रद्यग्न कुंवर चरित्र // वीर जयन्ती संदेश