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[ ५३ ] अव्वए, अवट्ठिए, निचे। से जहानामए पंचथिकाए न कयाइनासी न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवहिए, निच्चे, एवामेव दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ, भुविं च, भवइ य, भविस्सइ य,धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वएं, अवहिए, निच्चे । से समासत्रो चउविहे पणत्ते, तंजहा-व्वरो, खित्तो, कालो, भावो। तत्थ व्वनो सुयनापी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ, खित्तो णं मुयनाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ, कालो णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वं खेत्तं जाणइ पासइ, भावो णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वे भावे जाणइ पासइ, ॥ सू॥ ५७॥ अक्खर संन्नी सम्म, साइयंखलु सपज्जवसियंच। गमियं अंगपविटुं, सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥१३॥
आगमसत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिटं।। विति सुयनाणलंभं, तं पुव्वविसारया धीरा॥ १४ ॥
मुस्सूसइ १ पडिपुच्छइ २ सुणेइ ३ गिबहइ४