Book Title: Nandisutra Mool Path
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Chotelal Yati

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ [ २५ ] सेन, रवि पक्खिन्ते सेऽवि नद्वे, एवं परिवप्पमाणेसु पक्विप्पमाणेसु होही से उद्गबिंदू, जेणं तं मल्लगं रावेहिइत्ति; होही से उद्गबिंदू, जे गं तंसि मल्लगंसि ठाहिति; होही से उद्गबिंदू जेणं तं मल्लगं भरिहित; होही से उद्गबिंदू, जे णं तं मल्लगं पवाहेहिति; एवामेव पक्खिष्पमाणेहिं पक्खिप्पमाऐहिं अणतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरियं होइ; ताहुति करेइ नो चेव णं जाणइ के वेस सद्दाइ ? तो हं पविसई, तजाई मुगे एस सद्दइ; तत्र वायं पविसइ, तो से उवगयं हवइ, तत्र धारणं पविसइ, तणं धारेइ संखिज्जं वा कालं, असंखिज्जं वा कालं, से जहानामए केइ पुरसे अव्वत्तं सद्दं सुपिज्जा, तेणं सद्दोत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस साइ; तओ ईहं पविसह, तत्र जाणइ मुगे एस सद्दे, तो अवायं पविसइ, तत्रो से उवगयं हवइ; तत्र धारणं पविसइ, तो णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं रूवं पासिज्जा तेणं रूवत्ति उग्ग हिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रूवत्ति; तओ ईपविसइ, तो जाणइ अमुगे एस रूवे, तो अवायं पविसइ, तत्र से उवगयं हवइ, तम्रो धारणं पवि

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60