Book Title: Nandisutra Mool Path
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Chotelal Yati

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Page 46
________________ [ ४४ ] यकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति, परणविजंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निर्दसिज्जंति, उवदंसिज्जंति; से एवं आया, एवं नाया, एवं विरणाया; एवं चरणकरणरूवणा आघविज्जइ; से तं पण्हावागरणाई १० ।। सू० ।। ५४ ॥ से कि तं विवागसुयं ? विवागसुए णं सुकडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जइ, तत्थ णं दस दुहविवागा दस सुहविवागा । से किं तं दुहविवागा ? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराई, उज्जाणाई, वणसंडाई, चेइयाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपर लोइया इड्ढि विसासा, निरयमणाई, संसारभवपवंचा दुहपरंपराओ, दुकुलपच्चायाइओ, दुल्लहबोहियत्तं, आघविज्जइ; से न्तं दुहविवागा । से किंतं सुहविवागा ? सुहविवागेसु णं सुहविवशगाणं नगराई, उज्जाई, वणसंडाइ चेइयाइ, समोसरणाइ, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलो इया इड्ढविसेसा, भोग परिचागा, पव्वज्जाओ, लोगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, संग हणीचक्खाणाई, पावगमणाई, देव लोगगमणाई, याए नरंपराओ, सुकुलपश्चायाईओ, पुणवोहिलाभा,

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