Book Title: Nandisutra Mool Path
Author(s): Chotelal Yati
Publisher: Chotelal Yati

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Page 47
________________ [ ४५ ] अंतकिरियानो, आघविजंति। विवागसुयस्य णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुप्रोगदारा,संखेजा वेढा संखेज्जा सिलोगा, संखेजाओ निजुत्तीओ, संखिजाश्रो संगहणीश्रो, संखिज्जारो पडिवत्तीअो । से णं अंगट्ठयाए इकारसमे अंगे, दो सुयक्खंधा, वीसं अज्झयणा, वीसं उद्देसणकाला, वीसं समुद्देसणकाला, संखिजाई पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पन्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति, पन्नविनंति, परूविजंति, दंसि. जंति निदंसिजंति, उवदंसिजति, से एवं पाया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा अाघविजइ, से त्तं विवागसुयं ११ ॥ सू० ५५ ॥ से किं तं दिहिवाए ? दिहिवाएणं सव्वभावपख्वणा आघविजइ, से समासो पंचविहे पण्णत्ते, तंजहापरिकम्मे १ सुत्ताई २ पुव्वगए ३ अणुप्रोगे ४ चलिया ५ । से किं तं परिकम्मे ? परिकम्मे सत्तविहे पएणत्ते, तंजहा-सिद्धसेणिया परिकम्मे १ मणुस्ससेणियापरिकम्मे २ पुट्ठसेणिया-परिकम्मे ३ अोगाढसेणियापरिकम्मे ४ उवसंपजणसेणियापरिकम्मे ५ विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ६ चुयाचुयसेणियाप

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