________________
जानकारी के लिए समुचित होगा। संख्या के आद्योपान्त को संख्यात कहते हैं। संख्या दो प्रकार की होती है, एक लौकिक और दूसरी लोकोत्तरिक । इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, दहहजार, लाख, दह लाख, करोड़-दहकरोड़, अर्ब-दहअर्ब, खर्ब-दहखर्व, नीलम-दहनीलम, पद्म-दहपद्म, शंख-दहशंख इससे आगे लौकिक संख्या का अवसान है। क्योंकि इससे आगे लौकिक संख्या व्यवहार में प्रयुक्त नहीं होती, किन्तु लोकोतरिक संख्या इससे बहत आगे तक है। एक सौ चौरानवें अंकों तक आगमों में संख्या वणित है जैसे कि१. समय (काल का अविभाज्यांश)
१३. तीन ऋतुओं की एक अयन २. असंख्यात समयों की एक आवलिका। १४. दो अयनों का एक वर्ष । ३. संख्यात आवलिकाओं का एक आणापाणु । १५. पांच वर्षों का एक युग । ४. सात आणापारणु का एक स्तोक ।
१६. बीस युगों की एक शती । .५. सात स्तोक का एक लव ।
१७. दस शतियों का एक हजार । ६. सात लवों का एक नालिका।
१८. शतसहस्रों का एक लाख । ७. ३८३ नालिकाओं की एक घड़ी।
१६. चौरासी लाख का एक पूर्वांग। .. ८. दो घड़ियों का एक मुहूर्त ।
२०. चौरासी लाख पूर्वांगों का एक पूर्व । ६. तीस मुहूर्त का एक अहोरात्र ।
२१. चौरासी लाख पूर्वो का एक त्रुटितांग । १०. पन्दरह अहोरात्र का एक पक्ष ।
२२. चौरासी लाख ७टितांगों का एक त्रुटित ११. दो पक्षों का एक मास ।
२३. चौरासी लाख त्रुटित का एक अटटांग। १२. दो मासों की एक ऋतु ।
२४. चौरासी लाख अटटांगों का एक अटट । . इसी प्रकार आगे आने वाली संख्या को चौरासी लाख से गुणा करने पर यावत् शीर्षप्रहेलिक तक चौरासी लाख अटट का एक अववांग, चौरासी लाख अववांग का एक अवव अर्थात् पूर्व-पूर्व की अपेक्षा उत्तरोत्तर चौरासी लाख गुणा करने से हुहकांग-हूहूक, उत्पलांग-उत्पल, पद्मांग-पद्म, नलिनांग-नलिन अक्षनिकुरांग-अक्षनिकुर, अयुतांग-अयुत. नयुतांग-नयुत, प्रयुतांग-प्रयुत, चुलिकांग-चुलिका, शीर्षप्रहेलिकांगशीर्षप्रहेलिका तक पहुंच जाती है। यदि इनकी गणना अंकों में की जाए तो निम्नलिखित प्रकार से की जाती है, जैसे कि
७५८२,६३२५,३०७३०,१०२४,११५७,६७३५,६६६७,५६९६,४०६२,१८६६,६८४८०,८०१८३२६६००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००। इन अङ्कों में संख्यात की पूर्णता हो जाती है। संख्यात तीन प्रकार का है, जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । जघन्य संख्यात २, ३ से लेकर उत्कृष्ट संख्यात में से एक इकाई न्यून करने से मध्यम संख्यात बनता है। जो अङ्क ऊपर दिए हैं, इनसे उत्कृष्ठ संख्यात बनता है । जघन्य और उत्कृष्ठ के मध्य में जो संख्याएं हैं, वे सब मध्यम संख्यात कहलाती हैं । संख्यात का प्रयोजन
___ जिन मनुष्य और तिर्यंचों की आयु उ० करोड़ पूर्व की है, वे संख्यात वर्ष की आयु वाले हैं। जिनकी उससे अधिक है, वे असंख्यात वर्षायुष्क कहलाते हैं। यह नियम नारक और देवगति का नहीं है। | वहां दस हजार वर्ष से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक जिन-जिन देव और नैरयिकों की है, वे सब संख्यात वर्ष की ।