Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 414
________________ सादि-सान्त, अनादि-अनन्तश्रुत तत्समासतश्चतुर्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतो भावतः, तत्र १. द्रव्यतः सम्यक्-श्रुतम्-एकं पुरुषं प्रतीत्य-सादिकं सपर्यवसितम्, बहून् पुरुषांश्च प्रतीत्य-अनादिकमपर्यवसितम् । २. क्षेत्रतः पञ्च भरतानि, पञ्चैरावतानि प्रतीत्य-सादिकं सपर्यवसितम्, पञ्चमहाविदेहानि प्रतीत्य-अनादिकमपर्यवसितम् । ३. कालत उत्सर्पिणीमवसर्पिणीञ्च प्रतीत्य-सादिकं सपर्यवसितम्, नो-उत्सर्पिणी नो-अवसर्पिणीञ्च प्रतीत्य-अनादिकमपर्यवसितम् । ४. भावतो ये यदा जिनप्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते, प्रज्ञाप्यन्ते, प्ररूप्यन्ते, दर्यन्ते, निदर्श्यन्ते, उपदय॑न्ते, तदा तान् भावान् प्रतीत्य-सादिकं सपर्यवसितम् । क्षायोपशमिकं पुनर्भावं प्रतीत्य-अनादिकमपर्यवसितम् । ' अथवा भवसिद्धिकस्य श्रुतं-सादिकं सपर्यवसितञ्च, अभवसिद्धिकस्य श्रुतम्-अनादिकमपर्यवसितञ्च । सर्वाकाशप्रदेशाग्रं सर्वाकाशप्रदेशैरनन्तगुणितं पर्यवाक्षरं निष्पद्यते, सर्वजीवानामपि च अक्षरस्याऽनन्तभागो नित्यमुद्घाटितः (तिष्ठति), यदि पुनः सोऽपि-आवियेत तेन जीवोsजीवत्वं प्राप्नुयात् । 'सुष्ठ्वपि मेघसमुदये, भवति प्रभा चन्द्रसूर्याणाम् ।' तदेतत् सादिकं सपर्यवसितम्, तदेतदनादिकमपर्यवसितम् ।।सूत्र ४३॥ पदार्थ—से किं तं साइमं सपज्जवसिगं ?-वह सादि सपर्यवसित च.-और प्रणाइअं अपज्जवसिनं अनादि अपर्यवसित-श्रुत क्या है ? इच्चेइयं-इस प्रकार यह दुवालसंग-द्वादशाङ्ग गणिपिडगं-गणिपिटक वुच्छित्तिनयट्टयाए-पर्यायनय की अपेक्षा से साइमं सपज्जवसिअं-सादि सपर्यवसित है, अवुच्छित्तिनयट्टयाए-द्रव्यार्थकनय की अपेक्षा से प्रणाइअं अपज्जवसिधे-अनादि अपर्यवसित है, तंवह श्रुतज्ञान समासो-संक्षेप में चउम्विहं-चार प्रकार से पण्णत्तं-प्रतिपादन किया गया है, तं जहा—जैसे दबो-द्रव्य से, खित्तमो-क्षेत्र से कालो-काल से भावो-भाव से तत्थ–उन । चारों में दव्वनो णं-द्रव्य की अपेक्षा 'ण' वाक्यालङ्कार में सम्मसुअं—सम्यक्श्रुत एगं पुरिसं पडुच्चएक पुरुष की अपेक्षा से. साइयं सपज्जवसिअं-सादि सपर्यवसित है, बहवे पुरिसे य पडुच्च-और बहुत पुरुषों की अपेक्षा से प्रणाइयं अपज्जवसिअं—अनादि अपर्यवसित है। खेत्तत्रोणं-क्षेत्र की अपेक्षासेपंच भरहाई-पांच भरत, पंचेरवयाई-पांच ऐरावत की पडुरचअपेक्षा साहनं सपज्जवसिअं—सादि सपर्यवसित है, पंच-पांच महाविदेहाइं पडुच्च-महाविदेह की अपेक्षा से प्रणाइयं अपज्जवसिअं—अनादि अपर्यवसित है। कालोणं-काल से उस्सप्पिणिं ओसप्पिणिं च पडुच्च-उत्सपिणी और अवसर्पिणी की अपेक्षा

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