Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 455
________________ नदी किया गया है। इस सूत्र में कुछ महावीर के युग में होने वाले इतिहास हैं, कुछ अरिष्टनेमि २२ वें तीर्थकर का समकालीन इतिहास है । कुछ महाविदेह क्षेत्र से सम्बन्धित इतिहास है और कुछ पार्श्वनाथ के शासन काल का इतिहास है, तथा तुम्ब और चन्द्र आदि के उदाहरण सर्व देश कालावनच्छित है । ८वें अध्ययन में १६ वें तीर्थंकर मल्लिनाथ के पंच कल्याणकों का वर्णन है । १६ वें अध्ययन में द्रौपदीं के पूर्व जन्म की कथा विशेष ध्यान देने योग्य है और उसका वर्तमान एवं भावी जीवन का विवरण है। दूसरे स्कन्ध में सिर्फ पार्श्वनाथ जी के शासन में साध्वियों का गृहस्थ अवस्था का जीवन और साध्वी जीवन तथा भविष्य में जीवन कैसा रहा ? इसका बड़े सुन्दर एवं न्याय पूर्ण शैली से वर्णन किया है । ज्ञाताधर्मकथाङ्ग की भाषा शैली बहुत ही सुन्दर है, इसमें प्रायः सभी प्रकार के रसों का वर्णन मिलता है । शब्दालंकार और अर्थालंकारों से यह सूत्र विशेष महत्त्व पूर्ण है । शेष परिचय भावार्थ में दिया हो चुका है ।। सूत्र ५१ ।। ७. श्रीउपासकदशाङ्गसूत्र मूलम् - से किं तं उवासगदसा ? उवासगदसासु णं समणोवासयाणं नगराई, उज्जाणाणि चेइमाई, वणसंडाई, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरि, धम्मकहा, इहलोइ - परलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ. परियागा, सुनपरिग्गहा, तवोवहाणाई, सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोस होववास पडिवज्जणया, पडिमात्र, उवसग्गा, संलेहणा, भत्तपच्चक्खाणाई, पात्रोवगमणाई, देवलोग-गमणाई, सुकुलपच्चायाईप्रो, पुणबोहिलाभा, अंतकिरिआओ आघविज्जंति । उवासगदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुप्रोगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जासिलोगा, संखेज्जानो निज्जुतीप्रो, संखेज्जा संगहणीओ, संखेज्जाश्रो पडिवत्ती । सेणं अंग या सत्तमे अंगे, एगे सुक्खंधे, दस अज्झयणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्दे सणकाला, संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, प्रणता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, प्रणंता थावरा, सासय-कड - निबद्धनिकाइ जिण पण्णत्ता भावा प्राघविज्जंति, पन्नविज्जंति, परूविज्जंति, दंसि - ज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरण-करण परूवणा आघविज्जइ, से त्तं उवासगदसा ।। सूत्र ५२ ।।

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