Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 461
________________ 1 . नन्दीसूत्रम् समुद्देशनकालाः, संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रण, संख्येयान्यक्षराणि, अनन्ता गमाः, अनन्ताः पर्यवाः, परीतस्त्रसाः, अनन्ताः स्थावराः, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचिता जिनप्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते, प्रज्ञाप्यन्ते, प्ररूप्यन्ते, दर्यन्ते, निदर्श्यन्ते, उपदय॑न्ते। स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं विज्ञाता, एवं चरण-करण प्ररूपणाऽऽख्यायते, ता एता अनुत्तरौपपातिकदशा ।।सूत्र ५४॥ भावार्थ-शिष्यने प्रश्न किया—गुरुदेव ! अनुत्तरौपातिकदशासूत्र में क्या वर्णन है ? आचार्य जी उत्तर में कहने लगे-अनुत्तरोपपातिकदशासूत्र में, अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले पुण्य आत्माओं के नगर, उद्यान, व्यन्तरायतन, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इस लोक और परलोक सम्बन्धि ऋद्धि विशेष, भोगों का परित्याग, मुनिदीक्षा, संयम पर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधानतप, प्रतिमाग्रहण, उपसर्ग, अन्तिम संलेखना, भक्त प्रत्याख्यान अर्थात् अनशन, पादपोपगमन तथा मृत्यु के पश्चात् अनुत्तर-सर्वोत्तम विजय आदि विमानों में औपपातिकरूप में उत्पत्ति । पुनः च्यवकर सुकुल की प्राप्ति फिर बोधि लाभ और अन्तक्रिया इत्यादि का कथन है । अनुत्तरौपपातिकदशा में परिमित वाचना, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्ति, संख्यात संग्रहणी, तथा संख्यात प्रतिपत्ति हैं। वह अनुत्तरौपपातिकदशा सूत्र अङ्ग की अपेक्षा से नवमा अङ्ग है। उसमें एक श्रुत . स्कन्ध, तीन वर्ग, तीन उद्देशन काल तथा तीन ही समुद्देशनकाल हैं। पदाग्र परिमाण से संख्यात सहस्र हैं । संख्यात अक्षर, अनन्त अर्थ गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस तथा अनन्त स्थावरों का वर्णन है । शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिन भगवान द्वारा प्रणीत भाव कहे गये हैं । प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन से सुस्पष्ट किए गए हैं। अनुत्तरौपपातिकदशासूत्र का सम्यग् अध्ययन करने वाला तद्रूप आत्मा, ज्ञाता, एवं विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार चरण-करण की प्ररूपणा उक्त अङ्ग में की गयी हैं । यह उक्त अङ्ग का विषय है ।सूत्र ५४॥ ____टीका-इस सूत्र में अनुत्तरोपपातिक अङ्ग का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। अनुतर का अर्थ है सर्वोत्तम, २२.२३-२४-२५-२६ इन देवलोकों में जो विमान हैं, उन्हें अनुत्तर विमान कहते हैं। उन विमानों में पैदा होने वाले देव को अनुत्तरोपपातिक कहते हैं । इस सूत्र में तीन वर्ग हैं। पहले वर्ग में १० अध्ययन, दूसरे में १३, तीसरे में पुनः १० अध्ययन हैं। आदि-अन्त वर्ग में दस-दस अध्ययन होने से इसे अनुत्तरोपपातिक दशा कहते है। इसमें उन ३३ महापुरुषों का वर्णन है, जिन्होंने अपनी धर्म साधना से समाधि पूर्वक काल करके अनुत्तर विमानों में देवत्व के रूप में जन्म लिया है। वहां की भव स्थिति पूर्णकर सिर्फ एक बार ही मनुष्य गति में आ कर मोक्ष प्राप्त करना हैं। जो ३३ महापुरुष अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए। उन में २३ तो राजा श्रेणिक की चेलना, नन्दा, धारणी इन तीन रानियों से

Loading...

Page Navigation
1 ... 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522