Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 464
________________ द्वादशाङ्ग-परिचय त्तर रूप से पदार्थों का वर्णन किया गया है। प्रश्नोत्तर बहत होने से इसका नाम भी बहुवचनान्त निर्वाचित किया है। १०८ प्रश्नोतर पूछने पर वर्णन किए गए हैं। जो विद्या या मंत्र का पहले विधिपूर्वक जाप करने से फिर किसी के पूछने पर शुभाशुभ कहते हैं, और १०८ विद्या या मंत्र विधि पूर्वक सिद्ध किए हुए बिना ही पूछे शुभाशुभ कहते हैं । तया १०८ प्रश्न पूछने पर हैं । यह आगम देवाधिष्ठित मंत्र एवं विद्या से युक्त है । इसी प्रकार वृत्तिकार भी लिखते हैं "तेषु प्रश्नव्याकरणे-अष्टोत्तरं प्रश्नशतं या विद्या मंत्रा वा विविना जप्यमानाः पृष्टा एव सन्तः शुभाशुभं कथयन्ति ते प्रश्नाः, तेषामष्टोत्तरं शतं, पुनर्निद्या मंत्रा व विधिना जप्यमाना अपृष्टा एवं शुभाशुभं कथयन्ति तेऽप्रश्नाः, तेषामष्टोत्तरशतं, तथा ये पृष्टां अपृष्टाश्च कथयन्ति ते प्रश्नाप्रश्नास्तेवामप्यष्टोत्तरं शतमाख्यायते।" - इसमें अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न, आदर्श प्रश्न इत्यादि विचित्र प्रकार के प्रश्न और अतिशायी विद्याओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त श्रमण-निर्ग्रन्थों का नागकुमारों और सुपर्णकुमार के साथ दिव्य संवादों का कथन किया गया है । प्रस्तुत सूत्र में इसके ४५ अध्ययन वर्णन किए हैं और इसका एक श्रुतस्कन्ध है। - समवायाङ्ग सूत्र में प्रश्न व्याकरण का परिचय तथा नन्दीसूत्र में दिए गए परिचय में कहीं सदृशता है और कहीं विसदृशता है। शेष पूर्ववत दोनों सूत्रों में पाठ समान ही हैं । स्थानांग सूत्र के दशवें स्थान में प्रश्न व्याकरणदशा के दश अध्ययन निम्नलिखित हैंपणहावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा १ उवमा २ संवा, ३ इसिभासियाई, ४ आयरियभासियाई, ५ महावीरभासियाई, ६ खोमगपसिणाई, ७ कोमलपासणाइं, ८ अद्दागपसिणाई, ६ अंगुट्ठसिणाई, १० बाहुपसिणई । प्रश्नव्याकरणदशा इहोक्तरूपा दृश्यमानास्तु पंचाश्रवपञ्चसंवरात्मिका इतीहोकानां तूपमादोनामध्ययनानामतरार्थः प्रतीयमान एवेति नवरं, पसिणाई ति प्रश्नविद्या यकाभिः क्षोमकादिषु देवतावतारः क्रियत इति, तत्र क्षौमकं वस्त्र, अद्दागो-प्रादर्शोऽगुष्ठो हस्तावायवो बाहवो भुजा इति ।” - इस वृत्ति से यह सिद्ध होता है कि वर्तमान में केवल उक्त सूत्र के ५ आश्रव और पांच संवर रूप दस अध्ययन ही विद्यमान हैं। अतिशय विद्या वाले अध्ययन दृष्टिगोचर नहीं होते। तथा जो अंगुष्ठ आदि प्रश्न कथन किए गए हैं, उनका भाव यह है कि अंगुष्ठ आदि में देव का आवेश होने से प्रतिवादी को यह निश्चित होता है कि मेरे प्रश्न का उत्तर इस मुनि के अंगुष्ठ आदि अवयव दे रहे हैं । यह भी स्वयं सिद्ध है कि यह सूत्र मंत्र और विद्याओं में अद्वितीय था । चूणिकार का भी यही अभिमत है। वर्तमान काल के प्रश्नव्याकरण सूत्र में दो श्रुतस्कन्ध हैं । पहले श्रुतस्कन्ध में क्रमशः हिंसा, झूठ, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह का सविशेष वर्णन है । दूसरे श्रुतस्कन्ध में अहिंसा सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का अद्वितीय वर्णन है। इनकी आराधना करने से अनेक प्रकार की लब्धियों की प्राप्ति का वर्णन है। जिज्ञासुओं को यह सूत्र विशेष पठनीय और मननीय है ।।सूत्र ५५॥ दिगम्बर मान्यतानुसार प्रश्नव्याकरणसूत्र का विषय प्रश्न व्याकरण में हत, नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवित-मरण, जय-पराजय, नाम, द्रव्य, आयु और संख्या का प्ररूपण किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें तत्त्वों का निरूपण करने वाली आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेगनी और निवेदनी इस प्रकार चार धर्म कथाओं का विस्तृत वर्णन है, जैसे कि

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