Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 493
________________ नन्दीसूत्रम इस पाठ में, श्राणाए विराहित्ता - श्राज्ञया विराध्य, पद दिया है। इसका आशय यह है कि द्वादशाङ्ग गणिपिटक ही आज्ञा है, क्योंकि जिस शास्त्र में संसारी जीवों के हित के लिए जो कुछ कथन किया गया है। उसी को आज्ञा कहते हैं । वह आज्ञा तीन प्रकार से प्रतिपादन की गई है, जैसेकि सूत्राज्ञा, अर्थाज्ञा और उभयाज्ञा । ३५२ जो अज्ञान एवं असत्यहठ वश से अन्यथा सूत्र पढ़ता है, जमालिकुमार आदिवत्, उसका नाम सूत्राज्ञा विराधना है । जो अभिनिवेश के वश होकर अन्यथा द्वादशाङ्ग की प्ररूपणा करता है, वह अर्थ आज्ञा विराधना है, गोष्ठामा हिलवत् । जो श्रद्धाहीन होकर द्वादशाङ्ग के उभयागम का उपहास करता है, उसे उभयाज्ञा विराधना कहते हैं । इस प्रकार की उत्सूत्र प्ररूपण अनन्तसंसारी या अभव्यजीव ही कर सकते हैं । अथवा जो पंचाचार पालन करने वाले हैं, ऐसे धर्माचार्य के हितोपदेश रूप वचन को आज्ञा कहते हैं । जो उस आज्ञा का पालन नहीं करता, वह परामार्थं से द्वादशाङ्ग वाणी की विराधना करता है । इसी प्रकार चूर्णिकार भी लिखते हैं- "अहवा प्राणति पंच विहायारण सीलस्स गुरुणो हियोवएस वयणं आणा, तम ना आयते गणिपिडगं विराहियं भवइ ति ।" इस कथन से यह सिद्ध हुआ कि आज्ञा-विराधन करने का फल निश्चय ही भव भ्रमण है । द्वादशाङ्ग-आराधना का फल मूलम् — इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा श्रणाए आराहित्ता चाउरंतंसंसारकंतारं वीइवइंसु । इच्चेइअं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा प्रणाए आराहित्ता चाउरंतंसंसारकंतारं वीइवयंति । इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं प्रणागए काले प्रणता जीवा आणाए, राहित्ता चाउरतं संसारकंतारं वीइवइस्संति । छाया - इत्येतद् द्वादशाङ्गं गणिपिटकमतीते कालेऽनन्ताजीवा आज्ञयाऽऽराध्य चतुरन्तं संसारकान्तारं व्यतिव्रजिषुः । इत्येतद् द्वादशङ्गं प्रत्युत्पन्नकाले परीता जीवा आज्ञयाऽऽराध्य चतुरन्तंससाकांतारं व्यतिव्रजन्ति । इत्येद् द्वादशाङ्कंग - णिपिटकमनन्ता जीवा आज्ञयाssराध्य चतुरन्तं संसारकान्तारं व्यतिव्रजिष्यन्ति । पदार्थ – इच्चे -- इस प्रकार से इस दुबालसंग गणिपिडगं - द्वादशाङ्ग गणिपिटक की तीए काले- भूतकाल में श्रणंता जावा -- अनन्त जीव आणाए - आज्ञा से श्रराहित्ता-आराधना कर चाउरंत संसार कंतारं चतुर्गति रूप संसार को बीइवइंसु पार कर गए। इच्चे- इस प्रकार इस दुवालसंग गरिणपिडगं - द्वादशाङ्ग रूप गणिपिटक की पडुप्पण काले - वर्तमान काल में परित्ता जीवा-परिमित जीव श्राणाए श्राराहिता - आज्ञा से आराधन करके चाउरंतं संसार कंतारं - चार गतिरूप संसार कन्तार को वीइवयंति - पार कर जाते हैं । इच्चेइ- - इस प्रकार इस दुवालसंगं गणिपिडगं - द्वादशाङ्गरूप गणिपिटक की अणा गए कालेअनागत काल में अयंता जीवा-अनंत जीव श्राणाए आराहित्ता - आज्ञा से आराधना करके चाउरंतं संसार कंतार-चार गतिरूप संसार कंतार को वीइवइस्संति - पार करेंगे ।

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