Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 471
________________ नदीसूत्रम् अन्तिम तीन नय शब्दनय से कहे जाते हैं । इस प्रकार संग्रह, व्यवहार ऋजुसूत्र और शब्द सात नयों के चार रूप कथन किए गए हैं। इसी प्रकार चूर्णिकार भी लिखते हैं "इयाणि परिकम्मे नय चिन्ता - नेगमो दुविहो संगहिश्र असंगहिश्रो य, तत्थ संगहिश्रो संगहं पविट्ठो संगहि ववहारं तम्हा संगहो, त्रवहारो, उज्जसुश्रो, सद्दाइया य एको एवं चउरो नया एएहिं चउहिं नएहिं ससमइगा परिकम्मा चिन्तिज्जन्ति ।” ३३०. आजीविक मत को दूसरे शब्दों में त्रैराशिक भी कहते हैं, इसका अर्थ है – विश्व में यावन्मात्र पदार्थ हैं, वे सब व्यात्मक हैं, जैसे जीव, अजीव और जीवाजीद । लोक अलोक और लोकालोक । सद्, असद् और सदसद् । वे नय भी तीन ही प्रकार से मानते हैं—जैसे कि द्रव्यास्तिक, पर्यायास्तिक और उभयास्तिक । परिकर्म के उक्त सात भेद त्रैराशिक के मतानुसार हैं, किन्तु उसका सातवां भेद पर सिद्धान्त है । अतः वह और उसके भेद जैन सिद्धान्त को मान्य नहीं है । १. सिद्धश्रेणिका परिकर्म मूलम् - से किं तं सिद्धसेणिया - परिकम्मे ? सिद्धसे णिश्रा - परिकम्मे चउदसविपन्नत्ते, तं जहा - १. माउगापयाई, २. एगट्टिश्रपयाई, ३. अट्ठपयाई, ४ . पाढोमागासपयाई, (पाढोग्रामास) पयाई ५. केउभू, ६. रासिवद्धं, ७. एगगुणं, • दुगुणं, ε. तिगुणं, १०. केउभू, ११. पडिग्गहो, १२. संसारपडिग्गहो, १३. नंदावत्तं, १४. सिद्धावत्तं, से त्तं सिद्ध सेणियापरिकम्मे । ८. छाया - अथ किं तत् सिद्धश्रेणिका - परिकर्म ? सिद्धश्रेणिका - परिकर्म चतुर्दशविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा १. मातृकापदानि, २ . एकार्थपदानि, ३. अर्थपदानि, ४. पृथगाकाशपदानि, ५. केतुभूतम्, ६. राशिबद्धम्, ७. एकगुणम् ८. द्विगुणम्, ६. त्रिगुणम्, १०. केतुभूतम्, ३१. प्रतिग्रहः, १२. संसारप्रतिग्रहः, १३. नन्दावर्त्तम्, १४. सिद्धावर्त्तम्:, तदेतत् सिद्धश्रेणिकापरिकर्म । भावार्थ - सिद्धश्रेणिका परिकर्म कितने प्रकार का है ? आचार्य उत्तर में कहते हैं, वह १४ प्रकार का है, जैसे १. मातृकापद, २. एकार्थकपद, ३. अर्थपद, ४. पृथगाकाशपद, ५. केतुभूत, ६. राशिबद्ध, ७. एकगुण, ८. द्विगुण, ६. त्रिगुण, १०. केतुभूत, ११. प्रतिग्रह, १२. संसारप्रतिग्रह, १३. नन्दावर्त्त, १४. सिद्धावर्त्त, इस प्रकार सिद्धश्रेणिका परिकर्म है । टीका - इस सूत्र में सिद्ध श्रेणिका परिकर्म के विषय में कहा गया है। इसके १४ भेद वर्णित हैं । सूत्र में उनके सिर्फ नामोत्कीर्तन ही किए हैं, विस्तार नहीं । सिद्ध श्रेणिका - पद से संभावना की जा सकती है कि विद्यासिद्ध आदि का इसमें वर्णन होगा । चौथा पद 'पाढो आमासपवाह' यह किसी-किसी प्रति में पाया जाता है। मातृकापद, एकार्थकपद, और

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