Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 454
________________ द्वादशाङ्ग-परिचय धर्मकथाङ्ग के दस वर्ग हैं, उनमें एक-एक धर्मकथा में पाँच-पांच सौ आख्यायिकाएं हैं, एक-एक आख्यायिका में पांच-पाच सौ उपाख्यायिकाएं हैं और एक-एक उपाख्यायिका में पांचपांच सौ आख्यायिका - उपाख्यायिकाएं हैं । इस तरह पूर्वापर सब मिला कर साढ़े तीन करोड़ कथानक हैं, ऐसा कथन किया गया है । ३१३ ज्ञाताधर्मकथा में परिमित वाचना, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ, संख्यात श्लोक, संख्यात निर्युक्तिएं संख्यात संग्रहणिएं हैं, और संख्यात प्रतिपत्तिएं हैं । अङ्ग की अपेक्षा से ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र छठा है। दो श्रुतस्कन्ध, १६ अध्ययन, १६ उद्देशनकाल, १६ समुद्देशनकालं तथा पदान्र परिमाण में संख्यात सहस्र हैं । इसी प्रकार संख्यात अक्षर, अनन्त अर्थागम, अनन्त पर्याय परिमित त्रस और अनन्त स्थावर हैं । शाश्वतकृत - निबद्ध निकाचित जिन प्रतिपादित भाव, कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दिखाए गए, निदर्शन और उपदर्शन से सुस्पष्ट किए गए हैं। उक्त अङ्ग का पाठक तदात्मकरूप, ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है । इस प्रकार ज्ञाताधर्मकथा में चरण-करण की विशिष्ट प्ररूपण की गयी है, यही ज्ञाताधर्म कथा का स्वरूप हैं ।। सूत्र ५१ ॥ टीका - इस सूत्र में छठे अङ्ग का संक्षिप्त परिचय दिया है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं । इस अङ्ग का नाम ज्ञाता-धर्म-कथा है । यह नाम तीन पदों से युक्त है, इसका सारांश इतना ही है कि ज्ञाता का अर्थ यहां उदाहरणों के लिए प्रयुक्त किया गया है । इतिहास, दृष्टान्त, उदाहरण इन सबका अन्तर्भाव ज्ञाता में हो जाता है । जो इतिहास उदाहरण, धर्म कथाओं से अनुरंजित हो, अथवा जिस धर्मकथा में मुख्यतया उदाहरण ऐसे दिए गए हों जिन के सुनने से या अध्ययन करने से श्रोता और अध्येता का जीवन धर्म में प्रवृत्त हो जाए; उसे ज्ञाताधर्मकथा कहते हैं । अथवा पहले श्रुत-स्कन्ध का नाम ज्ञाता है और दूसरे श्रुत स्कन्ध का नाम धर्मकथा है । इतिहास तो प्रायः वास्तविक ही होते हैं, किन्तु दृष्टान्त, उदाहरण, कथा, कहानियां वास्तविक भी होते हैं और काल्पनिक भी । सम्यग्दृष्टियों के लिए सम्पूर्ण विश्व, शिक्षाणालय तथा शिक्षक है । मिथ्यादृष्टि के लिए उपर्युक्त सभी उदाहरण पतन के कारण हैं, वह अमृत को विष समझता है और विष को अमृत, यह दोष विष या वस्तुओं का नहीं है, अपितु दृष्टि का है सम्यग्दृष्टि अमृत अमृत समझता है और अपने ज्ञान प्रयोग से विष को भी अमृत बना देता है । ज्ञाताधर्मकथा में पहले श्रुत स्कन्ध के अन्तर्गत १९ अध्ययन हैं और दूसरे श्रुतस्कन्ध में १० वर्ग हैं, प्रत्येक वर्ग में अनेकों अध्ययन है । प्रत्येक अध्ययन में एक कथा है और अन्त में उस कथा या दृष्टन्त से मिलने वाली शिक्षाएं बताई गई है । कथाओं में पात्र के नगर, उद्यान प्रासाद, शय्या, समुद्र, स्वप्न, धर्म साधना के प्रकार और अपने कर्त्तव्य से फिसलते हुए भी पुनः संभल जाना, अढाई हजार वर्ष पूर्व भारतीय लोगों का जीवन उत्थान या पतन की ओर कैसे बढ रहा था ? कुमार्ग से हट कर सुमार्ग में कैसे लगे और सुमार्ग को छोड़कर कुमार्ग में पड़ने से उनकी दशा कैसे हुई तथा वे धर्म के आराधक कैसे बने ? ठीक तरह से आराधना करते हुए विराधक कैसे बने ? उनका अगला जन्म कहां और कैसा रहा इन सबका इस सूत्र में सविस्तार विवेचन

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