Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 450
________________ द्वादशाङ्ग-परिचयं की तथा सुधर्मास्वामी की आयु १०० वर्ष की थी। महावीर भगवान् के ३०० शिष्य १४ पूर्वी के ज्ञाता थे, ४०० शास्त्रार्थं महारथी थे । इस प्रकार संख्या बढ़ाते हुए कोटी पर्यन्त ले गए हैं, जैसे कि भगवान् ऋषभदेव से लेकर अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी पर्यन्त काल का अन्तर एक सागरोपम कोड़ निर्दिष्ट किया गया है । ३० तत्पश्चात् द्वादशाङ्ग गणिपिटक का संक्षिप्त परिचय दिया गया है । त्रिषष्टी शलाका पुरुषों का नाम माता-पिता, जन्म, नगरी, दीक्षास्थान इत्यादि का वर्णन किया है । मोहकर्म के ५२ पर्यायवाची नाम गिनाए हैं । ७२ कलाओं के नाम निर्देश किए गए हैं । जैन सिद्धान्त तथा इतिहास की परम्परा की दृष्टि से यह श्रुताङ्ग महत्वपूर्ण है । इसमें अधिकांश गद्य रचना है, कहीं २ गाथाओं द्वारा भी विषय प्रस्तुत किया गया है। सूत्र ॥ ४६ ॥ ५. श्रीव्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 1. मूलम् - से किं तं विवाहे ? विवाहे णं जीवा विहिज्जंति, अजीवा विश्राहिज्जंति, जीवाजीवा विप्राहिज्जंति, ससमय विश्राहिज्जति, परसमए विप्रोहिज्जति, ससमय पर समए विग्राहिज्जंति, लोए विग्राहिज्जति, अलोए विआहिज्जति, लोयालो विप्राहिज्जति । विवाहस्स णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुोगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिज्जा निज्जुत्तीओ, संखिज्जा संग्गहणीओ, सखिज्जा पंडिवत्तीओ | से णं अंगट्टयाए पंचमे अंगे, एगे सुक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साई ं, दस समुद्दे सग सहस्साइ, छत्तीसं वागरणसहस्साइ, दो लक्खा, अट्ठासीई पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिण-पण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जसि, उवदंसिज्जं ति । से एवं प्रया, एवं णाया, एवं विष्णाया, एवं चरण - करण-परूवणा प्राघविज्जइ, सेत्तं विवाहे | सूत्र ५० ॥ छाया - अथ का सा व्याख्यां ? ( कः स विवाह : ? ) व्याख्यायां जीवा व्याख्यायन्ते, अजीवा व्याख्यायन्ते, जीवाऽजीवा व्याख्यायन्ते, स्वसमयो व्याख्यायते, पर- समयो व्याख्यायते, स्वसमय - परसमयौ व्याख्यायेते, लोको व्याख्यायते, अलोको व्याख्यायते लोकाऽलोकौ व्याख्यायेते !

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