Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 441
________________ नन्दीसूत्रम् गुण हैं, उतने ही गुणी हैं । ऐसी मान्यता रखने वाले को अनेकवादी कहते हैं। वस्तुगत अनन्त पर्याय होने से वस्तु को भी अनन्त मानने वाले अनेकवादी कहलाते हैं। ३. मितवादी-जो लोक को सप्तद्वीप समुद्र तक ही मानते हैं, आगे नहीं । जो आत्मा को अंगुष्ठप्रमाण या श्यामाक तण्डुल प्रमाण मानते हैं, शरीर या लोकप्रमाण नहीं । जो दृश्यमान जीवों को ही आत्मा मानते हैं, अनन्त-अनन्त नहीं। ऐसे विचारक इसी कोटि के वादी माने जाते हैं। ... ४. निर्मितवादी-यह विश्व किसी-न-किसी के द्वारा निर्मित है। ईश्वरवादी सृष्टि का कर्ता, हर्ता एवं धर्ता सब कुछ ईश्वर को मानते हैं। कोई ब्रह्मा को, शैव शिव को, वैष्णव विष्णु को कर्ता व निर्माता मानते हैं। देवी भगवत में शक्ति-देवी को ही निर्मात्री माना है, इत्यादि वादियों का समावेश उक्त भेद में हो जाता है। १. सातावादी-जिनकी मान्यता है कि सुख का बीज सुख है और दुःख का बीज दुःख है । जैसे शुक्ल तन्तुओं से बुना हुआ वस्त्र भी सफेद ही होगा और काले तन्तुओं से बना हुआ वस्त्र भी काला ही होगा। वैषयिक सुख के उपभोग से जीव भविष्य में सुखी हो सकता है । तप-संयम, बह्मचर्य नियम आदि शरीर और मन को कष्टप्रद होने से, ये सब दुःख के मूल कारण हैं । शरीर को तथा मन को साता पहुंचाने से ही अनागत काल में जीव सुखी हो सकता है, अन्यथा नहीं। ऐसी मान्यता रखने वाले विचारकों का समावेश उक्त भेद में हो जाता है। ६. समुच्छेदवादी-क्षणिकवादी आत्मा आदि सभी पदार्थों को क्षणिक मानते हैं, निरन्वय नाश की मान्यता को मानने वाले समुच्छेदवादी कहाते हैं । ७. नित्यवादी-जो एकान्त नित्यवाद के पक्षपाती हैं, उनके विचार में प्रत्येक वस्तु एक रस में अवस्थित है। उनका कहना है-वस्तु में उत्पाद-व्यय नहीं होता। वे वस्तु को परिणामी नहीं, कूटस्थ नित्य मानते हैं। दूसरे शब्दों में उन्हें विवर्तवादी भी कहते हैं । जैसे असत् की उत्पत्ति नहीं होती और न उसका विनाश ही होता है। इसी प्रकार सत् का भी उत्पाद और विनाश नहीं होता। कोई भी परमारणू सदा-काल से जैसा चला आ रहा है, वह भविष्य में भी ज्यों का त्यों बना रहेगा, उसमें परिवर्तन के लिए कोई गंजायश नहीं है। ऐसी मान्यता रखने वाले वादी उक्त भेद में निहित हो जाते हैं। ८. न संति परलोकवादी-आत्मा ही नहीं तो परलोक किसके लिए ? आत्मा किसी भी प्रमाण से प्रमाणित नहीं होता । आत्मा के अभाव होने पर पुण्य-पाप, धर्म-अधर्म, शुभ-अशुभ कोई कर्म नहीं है। अतः परलोक नामक कोई वस्तु ही नहीं है। अथवा शान्ति मोक्ष को कहते हैं, जो आत्मा को तो मानता है, किन्तु उनका कहना है कि आत्मा अल्पज्ञ है, वह कभी भी सर्वज्ञ नहीं बन सकता है । संसारी आत्मा कभी भी मुक्त नहीं हो सकता अथवा इस लोक में ही शान्ति-साता या सुख है, परलोक में इन सब का सर्वथा अभाव है। परलोक का पुनर्जन्म का तथा मोक्ष के निषेधक जो भी विचारक हैं, उन सबका समावेश उपर्युक्त वादियों में हो जाता है। ३. अज्ञानबादी-अज्ञानी बने रहने से पाप करता हआ भी निष्पाप बना रहता है। जिनका मन्तव्य है कि अज्ञान दशा में किए गए सब गुनाह-अपराध क्षम्य होते हैं। तथा जैसे शासक अबोध बालक

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