Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 439
________________ नन्दीसूत्रम् निकवादिनाम् (अज्ञानवादिनाम् ), द्वात्रिंशद् वैनयिकवादिनाम्, त्रयाणां त्रिषष्ठ्यधिकानाम्, पाषण्डि कशतानां व्यूहं कृत्वा स्वसमयः स्थाप्यते । सूत्रकृते परीता वाचनाः, संख्येयानि-अनुयोगद्वाराणि, संख्येयाः वेढाः, संख्येयाः श्लोकाः, संख्येया निर्युक्तयः, संख्येयाः प्रतिपत्तयः । तदङ्गर्थतया द्वितीयमङ्गम्, द्वौ श्रुतस्कन्धौ, त्रयोविंशतिरध्ययनानि, त्रयस्त्रिंशदुद्देशनकालाः, त्रयस्त्रिशत्समुद्देशनकालाः, षट्त्रिंशत् पदसहस्राणि पदाग्रेण, संख्येयान्यक्षराणि, अनन्ता गमाः, अनन्ताः पर्यवाः, परिमितास्त्रसाः, अनन्ताः स्थावराः, शाश्वत-कृत-निबद्धनिकाचिता जिनप्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते, प्ररूप्यन्ते, दर्शयन्ते, निदर्श्यन्ते, उपदय॑न्ते । स एवमात्मा, एवं ज्ञाता एवं विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणाऽऽख्यायते । तदेतत्सूत्रकृतम् ॥ सूत्र ४७ ॥ भावार्थ-शिष्य ने पूछा-भगवन् ! सूत्रकृताङ्गश्रुत में किस विषय का वर्णन किया है ? आचार्य उत्तर में बोले-सूत्रकृताङ्ग में षड्द्रव्यात्मक लोक सूचित किया जाता है, केवल आकाश द्रव्य वाला अलोक सचित किया जाता है, लोकालोक दोनों सूचित किए जाते हैं। इसी प्रकार जीव, अजीव और जीवाजीव की सूचाना की जाती है । एवमेव स्वमत, परमत और स्व-परमत की सूचना की जाती है । सूत्रकृताङ्ग में १८० क्रियावादियों के मत एवं ६७ अज्ञानवादी इत्यादि ३६३ पाषण्डियों का व्यूह बना कर स्वसिद्धान्त की स्थापना की जाती है। सूत्रकृताङ्ग में परिमित वाचनाएं हैं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात छन्द, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तिएं, संख्यात संग्रहणिएं और संख्यात प्रतिपत्तिएं हैं। यह अङ्ग अर्थ की दृष्टि से दूसरा है । इसमें दो श्रुतस्कन्ध और २३ अध्ययन हैं । तथा ३३ उद्देशनकाल, ३३ समुद्देशनकाल हैं। सूत्रकृताङ्ग का पदपरिमाण ३६ हजार है । इसमें संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय और परिमित त्रस, अनन्त स्थावर हैं । धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यरूप से और प्रयोग व विश्रसा, करण रूप से निबद्ध एवं हेतु आदि द्वारा सिद्ध किए गए जिन प्रणीत भाव कहे जाते हैं तथा प्रज्ञापन, प्ररूपण, निर्दशन और उपदर्शन किए जाते हैं। सूत्रकृताङ्ग का अध्ययन करने वाला तद्रूप अर्थात् सूत्रगत विषयों में तल्लीन होने से तदाकार आत्मा, ज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार से इस सूत्र में चरण६ करण की प्ररूपणा कही जाती है । यह सूत्रकृताङ्ग का वर्णन है ॥ सूत्र ४७ ॥ ..

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