Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 437
________________ नन्दीसूत्रम् १. तत्र जा समवसरणे स्थितेन भगवता एवमाख्यातम् । १०. अथवा श्रुतं मम हे आयुष्यमनू ! वर्तते यतस्तेन भगवता एवमाख्यातम् , एवमादयस्तं तमर्थमधिकृत्य गमा भवन्ति ।" अभिधानवशतः पुनरेवंगमाः सुयं मे पाउसंतेणं, अाउस सुयं मे, मे सुयं पाउसं, इत्येवमर्थभेदेन, तथा २ पदानां संयोजनतोऽभिधानगमा भवन्ति, एवमादयः किल गमा अनन्ता भवन्ति ।" स्व-पर भेद से अनन्त पर्याय हैं। इस में परिमित त्रसों का वर्णन है, अनन्त स्थावरों का उक्त श्रुत में सविस्तर वर्णन किया गया है। सासयकडनिबद्धनिकाइया-शाश्वत धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य नित्य हैं। घट-पट आदि पदार्थ प्रयोगज हैं तथा संध्याभ्रराग विश्रसा से हैं, ये भी उक्त श्रुत में वर्णित हैं। नियुक्ति, हेतु, उदाहरण, लक्षण आदि अनेक पद्धतियों के द्वारा पदार्थों का निर्णय किया गया है। भाषविज्जन्ति-इस सूत्र में जीवादि पदार्थों का स्वरूप सामान्य तथा विशेषरूप से कथन किया गया है। परणविज्जन्ति-नाम आदि के भेद से कहे गए हैं। परूविज्जन्ति-विस्तार पूर्वक प्रतिपादन किए गए हैं। दंसिज्जति-उपमा-उपमेय के द्वारा प्रदर्शित किए गए हैं। निदंसिज्जंति-हेतु तथा दृष्टान्तों से वस्तुतत्त्व का विवेचन किया गया है। उवदंसिज्जंति-इस प्रकार सुगम रीति से कथन किए गए हैं, जिससे शिष्य की बुद्धि में अधिक शंका उत्पन्न न हो । . इस अङ्ग की अधिकांश रचना गद्यात्मक है, पद्य बीच २ में कहीं कहीं आते हैं। अर्धमागधी भाषा का स्वरूप समझने के लिए यह रचना महत्त्व पूर्ण है । सातवें अध्ययन का नाम महापरिज्ञा है, किन्तु काल-दोष से उस का पाठ व्यवच्छिन्न हो गया है । उपधान नामक-६ वें अध्ययन में भगवान महावीर . की तपस्या का बड़ा विचित्र और मार्मिक वर्णन है । वहां उन के लाढ, वज्रभूमि और शुभ्रभूमि में विहार और नाना प्रकार के घोर उपसर्ग सहन करने का स्पष्ट उल्लेख है। पहले श्रुतस्कन्ध के 8 अध्ययन हैं, और ४४ उद्देशक हैं । दूसरे श्रुतस्कन्ध में श्रमण के लिए निर्दोश भिक्षा का, आहार पानी की शुद्धि, शय्यासंस्तरण-विहार-चातुर्मास-भाषा-वस्त्र, पात्र आदि उपकरणों का वर्णन है। मल-मूत्र यत्ना से त्यागना, महाव्रत और तत्सम्बन्धी २५ भावनाओं के स्वरूप का, महावीर स्वामी के पहले कल्याणक से लेकर दीक्षा, केवलज्ञान और उपदेश आदि का सविस्तर वर्णन है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध १६ अध्ययनों में विभाजित है। इस की भाषा पहले स्कन्ध की अपेक्षा सुगम है। इस सूत्र में उद्देशकों की गणना इस प्रकार है प्रथम श्रुतस्कन्ध अध्ययन-१ । २ । ३ । ४ । ५। ६ । ०।८ । । उद्देशक-७ । ६ । ४ । ४ । ६ । ५ । ० । ७ । ४ । द्वितीय श्रुतस्कन्ध अध्ययन-१०।११।१२।१३ । १४।१५। १६ । १७। १८ । १६ । २० । २१ । २२ । २३ । २४ । २५ । उद्देशक- ११ । ३।३।२।२ । २ । २ । १ । १। १। १। १। १। १। १।१।

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