Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Acharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan

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Page 430
________________ - -- द्वादशाङ्ग-परिचय २८९ अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकड-निबद्ध-निकाइया, जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरण-परूवणा आघविज्जइ, से तं आयारे ॥सूत्र ४६॥ छाया-अथ कः स आचारः ? आचारे श्रमणानां निर्ग्रन्थानामाचार-गोचर-विनयवैनयिक-शिक्षा-भाषाऽभाषा चरण-करण-यात्रा-मात्रा-वृत्तय आख्यायन्ते । स समासतः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-१. ज्ञानाचारः, २. दर्शनाचारः ३. चारित्राचारः, ४. तपःआचारः, ५. वीर्याचारः। . आचारे परीता (परिमिता) वाचनाः, संख्येयानि-अनुयोगद्वाराणि, संख्येया वेढाः (वृत्तयः), संख्येयाः श्लोकाः, संख्येया नियुक्तयः, संख्येयाः प्रतिपत्तयः । स अङ्गार्थतया प्रथममङ्ग, द्वौ श्रुतस्कन्धौ, पञ्चविंशतिरध्ययनानि, पञ्चाशीतिरुद्देशनकालाः, पञ्चाशीतिः समुद्देशनकालाः, अष्टादश , पदसहस्राणि पदाग्रेण, संख्येयान्यक्षराणि, अनन्ता गमाः, अनन्ताः पर्यवाः, परीतास्त्रसाः, अनन्ताः स्थावराः, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचिता जिनप्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते, प्ररूप्यन्ते, दर्शयन्ते, निदर्श्यन्ते, उपदर्यन्ते । - स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणा आख्यायते, स एष आचारः ।।सूत्र ४६॥ पदार्थ-से किं तं पायारे १-वह आचार नामक श्रुत क्या है ? आयारे णं-आचारानश्रुत में .'णं' वाक्यालङ्कारे समणाणं-श्रमण निग्गंयाणं-निर्ग्रन्थों के प्रायार-आचार गोयर-गोचर, भिक्षा ग्रहण विधि, विनय-ज्ञानादि विनय, वेणइ-विनय-फल, कर्मक्षय आदि, सिक्खा-ग्रहण शिक्षा और आसेवन शिक्षा, तथा विनय शिक्षा, भासा-सत्य और व्यवहार भाषा, अभासा-असत्य और मिश्र, चरण-महाव्रत आदि करण-पिण्ड विशुद्धि आदि जाया-यात्रा माया-परिमित आहार ग्रहण वित्तीभो नाना प्रकार के अभिग्रह इत्यादि विषय प्राघविजंति-कहे गये हैं, से—वह आचार समासो-संक्षेप में पंचविहे-पांच प्रकार का पण्णत्ते-प्रतिपादन किया गया है तं जहा—जैसे-नाणायारे-ज्ञानाचार, दसणायारे-दर्शनाचार, चरित्तायारे-चारित्र आचार, तवायारे-तप आचार वीरियायारे-वीर्याचार । आयारे णं-आचाराङ्ग में 'ण' वाक्यालङ्कार में परित्ता वायणा–परिमित वाचना संखेज्जा अणुमोगदारा-संख्यात अनुयोगद्वार, संखिज्जा वेढा-संख्यात छन्द, संखेज्जा सिलोगा--संख्यात श्लोक, संखिज्जाओ निज्जुत्तीो—संख्यात नियुक्ति, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ-संख्यात प्रतिपत्ति। से णं-वह अंगट्टयाए-आचार अङ्गार्थ से पढमे अंगे-प्रथम अंग है, दो सुप्रखंधा-दो श्रुतस्कन्ध हैं पणवीसं अज्झयणा-पच्चीस अध्ययन हैं, पंचासीई उद्दे सणकाला-८५ उद्देशन काल है, पंचा

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