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द्वादशांग गणीपिटक का या ज्ञानप्रवाद पूर्व का एक बिन्दू प्रमाण है। इसे ज्ञानप्रवादपूर्व की एक छोटी सी झाँक्नी माना जाए तो अधिक उपयुक्त होगा। साहित्य का विवेचन ___ साहित्य शब्द स-हित से बना है-जो प्राणीमात्र का हितकारी, प्रियकारी हो, उसे साहित्य कहते हैं अथवा किसी भाषा या देश के समस्त गद्य-पद्य ग्रन्थों, लेखों आदि के समूह को साहित्य कहते हैं, इसी को लिटरेचर एवं सकल वाङ्मय भी कहते हैं। साहित्य शब्द से अभिप्राय किसी भाषा विशेष से ही नहीं है, अपितु सर्व भाषाओं और सर्व लिपियों का अन्तर्भाव साहित्य में हो जाता है। साहित्य भावों के परिवर्तन का एक मुख्य साधन है। भाषा, व्यवहार, वार्तालाप, व्याख्यान, शिक्षा, लेख, पुस्तक, चित्र, पत्र आदि सब साहित्य के अंग हैं। शोक साहित्य के पढ़ने सुनने से हम रोने लग जाते हैं, धैर्य का वेग एकदम छूट जाता है। प्रेम साहित्य से दूसरों के प्रति हमारा अनुराग और वात्सल्य बढ़ जाता है, हम ऊंच-नीच का भेदभाव हटाकर प्रेम करने लग जाते हैं, फिर भले ही वह पशु-पक्षी ही क्यों न हो। शान्ति-साहित्य के सन्मुख आने पर हम सहसा शान्ति के पुजारी बन जाते हैं। नोंक-झोंक साहित्य हमें हंसने के लिए विवश कर देता है। आगम साहित्य से हमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, सदाचार, अपरिग्रह, झानाचार, दर्शनाचार, चारित्रचार, तप आचार, वीर्याचार, संवर, निर्जरा, न्याय, नीति और बन्धन से मुक्ति आदि सद्गुणों की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। राजीमती की शिक्षाओं से रहनेमि के सभी विकार शान्त हो गए, वह वार्तालाप या शिक्षा भी साहित्य ही था और अब भी वह साहित्य ही है। साहित्य महान् सर्वव्यापक एवं विश्वकोष है। जैसे-सर्वांगपूर्ण शरीर में उत्तमांग अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, उसके बिना शरीर मात्र कबन्धक ही है। वैसे ही आगम-शास्त्र भी साहित्य जगत में मूर्धन्य स्थान रखता है, बारह अंगों को आगम कहते हैं। जैसे-गंगाजल से भरे हुए घट के नीर को गंगा नहीं कह सकते, वैसे ही नन्दी को न अंगसूत्र कह सकते हैं और न ज्ञानप्रवाद पूर्व ही। हां, उन्हीं से अंश-अंश ग्रहण किए हुए पीयूष घट की तरह ज्ञानघट कह सकते हैं। जो कि भव्य प्राणियों को अमर बनाने वाला तथा जीवन को मंगलमय एवं आनन्दमय बनाने वाला शास्त्र है। इससे मोहनिद्रा नष्ट हो जाती है और आज्ञानान्धकार सदा के लिए लुप्त हो जाता है। अतः इसके अध्ययन करने से मानसिक शान्ति सदा बनी रहती है। अध्ययन श्रद्धा पूर्वक होना चाहिए। सम्यक्श्रद्धा के बिना अध्ययन, योग्यता सब कुछ अवस्तु है। सम्यग्ज्ञान के बिना श्रद्धा अवस्तु है। अतः नन्दी भी साहित्य जगत् में अपना विलक्षण ही स्थान रखता है। आगम युग
भगवान् महावीर का शासन प्रारम्भ होने के अनन्तर हजार वर्ष से कुछ अधिक काल पर्यन्त आगम युग रहा है। उस काल में श्रमणवर्ग प्रायः हृदय का ऋजु और महामनीषी रहा
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