Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Bhagwan Mahavir Meditation and Research Center

View full book text
Previous | Next

Page 475
________________ उत्पन्न होने वाले पुण्य आत्माओं के नगर, उद्यान, व्यन्तरायतन, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इस लोक और परलोक सम्बन्धि ऋद्धिविशेष, भोगों का परित्याग, मुनिदीक्षा, संयम पर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधानतप, प्रतिमाग्रहण, उपसर्ग, अन्तिम संलेखना, भक्त प्रत्याख्यान अर्थात् अनशन, पादपोपगमन तथा मृत्यु के पश्चात् अनुत्तर-सर्वोत्तम विजय आदि विमानों में औपपातिकरूप में उत्पत्ति। पुनः च्यवकर सुकुल की प्राप्ति, फिर बोधि लाभ और अन्तक्रिया इत्यादि का कथन है। ... ___अनुत्तरौपपातिकदशा सूत्र अंग की अपेक्षा से नवमा अंग है। उसमें एक श्रुतस्कन्ध, तीन वर्ग, तीन उद्देशनकाल तथा तीन ही समुद्देशनकाल हैं। पदाग्र परिमाण से संख्यात सहस्त्र हैं। संख्यात अक्षर, अनन्त अर्थ गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस तथा अनन्त स्थावरों का वर्णन है। शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिन भगवान द्वारा प्रणीत भाव कहे गए हैं। प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन से सुस्पष्ट किए गए हैं। ____ अनुत्तरौपपातिकदशासूत्र का सम्यग् अध्ययन करने वाला तद्प आत्मा, ज्ञाता, एवं विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार चरण-करण की प्ररूपणा उक्त अंग में की गयी है। यह उक्त अंग का विषय है ॥ सूत्र ५४ ॥ टीका-इस सूत्र में अनुत्तरौपपातिक अंग का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। अनुत्तर का अर्थ है सर्वोत्तम। 22-23-24-25-26 इन देवलोकों में जो विमान हैं, उन्हें अनुत्तर विमान कहते हैं। उन विमानों में पैदा होने वाले देव को अनुत्तरौपपातिक कहते हैं। इस सूत्र में तीन वर्ग हैं। पहले वर्ग में 10 अध्ययन, दूसरे में 13, तीसरे में पुन: 10 अध्ययन हैं। आदि-अन्त वर्ग में दस-दस अध्ययन होने से इसे अनुत्तरौपपातिक दशा कहते हैं। इसमें उन 33 महापुरुषों का वर्णन है, जिन्होंने अपनी धर्म साधना से समाधिपूर्वक काल करके अनुत्तर विमानों में देवत्व के रूप में जन्म लिया है। वहां की भव स्थिति पूर्ण कर सिर्फ एक बार ही मनुष्य गति में आकर मोक्ष प्राप्त करना है। जो 33 महापुरुष अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए, उन में 23 तो राजा श्रेणिक की चेलना, नन्दा, धारिणी इन तीन रानियों से उत्पन्न हुए महापुरुषों का उल्लेख है। शेष दस महापुरुषों में काकन्दी नगरी के धन्ना अनगार की कठोर तपस्या और उस के कारण शरीर के अंग-प्रत्यंगों की क्षीणता का बड़ा मार्मिक और विस्तृत वर्णन किया गया है। इस में निम्नलिखित पद विशेष महत्त्व रखते हैं और ये पद आत्म विकास में प्रेरणात्मक हैं, जैसे कि परियागा-दीक्षा की पर्याय अर्थात् चारित्र पालन करने का काल परिमाण, सुयपरिग्गहा-श्रुतज्ञान का वैभव क्योंकि धर्मध्यान का आलंबन स्वाध्याय है, स्वाध्याय के सहारे से धर्मध्यान में प्रगति हो सकती है। तवोवहाणाइं-जिस सूत्र का जितना तप करने का विधान है, उसे करते रहना। पडिमाओ-भिक्षु की 12 पडिमाएं धारण करना, अथवा स्थानांग सूत्र के चौथे अध्ययन में कथित चार प्रकार की पडिमाओं का धारण, पालन करना। उवसग्गा-संयम तप की आराधना से विचलित करने वाले परीषहों तथा उपसर्गों को समता *466*

Loading...

Page Navigation
1 ... 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546