Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Bhagwan Mahavir Meditation and Research Center

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Page 473
________________ इस तरह उक्त अंग में चरण-करण की प्ररूपणा की गयी है । यह अन्तकृद्दशा का स्वरूप है॥ सूत्र५३ ॥ टीका - इस सूत्र में अन्तकृद्दशांग सूत्र का अवयवों सहित अवयवी का संक्षेप में वर्णन मिलता है। अन्तकृद्दशा का अर्थ है कि जिन नर-नारियों और निर्ग्रन्थ एवं निर्ग्रन्थियों ने संयम-तप की आराधना - साधना करते हुए जीवन के अन्तिम क्षण में कर्मों का तथा भवरोग का अन्त कर कैवल्य होते ही निर्वाण पद प्राप्त किया उन पुण्य आत्माओं की जीवनचर्या का इस सूत्र में उल्लेख किया गया है। इस में आठ वर्ग हैं । पहिले और पिछले वर्ग में दस-दस अध्ययन हैं, इस दृष्टि से अन्तकृत् के साथ दशा शब्द का प्रयोग किया गया है। सूत्र कर्त्ता जो अंतकिरियाओ पद दिया है, इसका भाव यह है कि जिन महात्माओं ने उसी भव में शैलेशी-चौदहवें गुणस्थान को प्राप्त कर निर्वाण प्राप्त किया है अर्थात् वे आत्माएं कैवल्य प्राप्त कर जनता को धर्मोपदेश नहीं दे सकीं, इसी कारण उन्हें अन्तकृत् केवली कहा है। उक्त अंग के वर्गों तथा अध्ययनों का निम्न प्रकार से 8 वर्गों में विभाजन किया गया है, जैसे वर्ग 1 2 3 4 5 6 अध्ययन 10 8 13 7 8 10 10 16 13 10 इस सूत्र में अरिष्टनेमि और महावीर स्वामी के शासन काल में होने वाले अन्तकृत केवलियों का ही वर्णन मिलता है। पांचवें वर्ग तक अरिष्टनेमि के शासन काल में जिन नर-नारी यादव वंशीय राजकुमारों और श्रीकृष्णजी की अग्रमहिषियों ने धर्म साधना में अपने आप को झोंककर आत्मा का निखार किया तथा निर्वाण प्राप्त किया उनका वर्णन है। छठे वर्ग से लेकर आठवें वर्ग तक सेठ, राजकुमार, राजा श्रेणिक की महारानियों ने दीक्षित होकर घोर तपश्चर्या और अखंड चारित्र की आराधना करते हुए मासिक, अर्द्धमासिक संथारे में कर्मों पर विजय प्राप्त कर सिद्धत्व को प्राप्त किया, इस प्रकार उनके पावन चरित्र का वर्णन है। उन्होंने महावीर और चन्दनबाला महासती की देख-रेख में आत्म-कल्याण किया। इसमें प्राय: ऐसी शैली है कि एक का वर्णन करने पर शेष वर्णन उसी ढंग से है। जहां कहीं आयु, संथारा, क्रियानुष्ठान में विशेषता हुई, उसका उल्लेख कर दिया है। सामान्य वर्णन सब का एक जैसा ही है। अध्ययनों के समूह का नाम वर्ग है। शेष वर्णन पूर्ववत् ही है | सूत्र 53 ॥ ९. श्री अनुत्तरौपपातिक दशा सूत्र मूलम्-से किं तं अणुत्तरोववाइ अदसाओ ? अणुत्तरोववाइअदसासु णं अणुत्तरोवावइआणं नगराई, उज्जाणाई, चेइआइं, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापिअरो, धम्मायरिआ, धम्मकहाओ, इहलोइअपरलोइआ 464

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