Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Bhagwan Mahavir Meditation and Research Center

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Page 509
________________ द्वादशांग-आराधना का फल मूलम्-इच्चेइअंदुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकतारं वीइवइंसु। इच्चेइअंदुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकतारं वीइवयंति। इच्चेइअं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकतारं वीइवइस्संति। छाया-इत्येतद् द्वादशांगं गणिपिटकमतीते कालेऽनन्ताजीवा आज्ञयाऽऽराध्य चतुरन्तं संसारकान्तारं व्यतिव्रजिषुः। ईत्येतद् द्वादशांगं गणिपिटकं प्रत्युत्पन्नकाले परीता जीवा आज्ञयाऽऽराध्य चतुरन्तं संसारकांतारं व्यतिव्रजन्ति। इत्येतद् द्वादशाङ्ग-. . गणिपिटकमनन्ता जीवा आज्ञयाऽऽराध्य चतुरन्तं संसारकान्तारं व्यतिव्रजिष्यन्ति। पदार्थ-इच्चेइअं-इस प्रकार से इस, दुवालसंगं गणिपिडगं-द्वादशांग गणिपिटक की, तीए काले-अतीत काल में, अणंता जीवा-अनंत जीव, आणाए आराहित्ता-आज्ञा से आराधना करके, चाउरतं संसारकतार-चार गति रूप संसार कतार को, वीइवइंसु-पार कर गए, इच्चेइअं-इस प्रकार से इस, दुवालसंगं गणिपिडगं-द्वादशांग गणिपिंटक की, पडुप्पण्ण काले-वर्तमान काल में, परित्ता जीवा-परिमित जीव, आणांए आराहित्ता-आज्ञा से आराधना करके, चाउरतं संसारकतार-चार गति रूप संसार कतार को, वीइवयंति-पार कर रहे हैं, इच्चेइअं-इस प्रकार इस, दुआलसंगं गणिपिडगं-द्वादशांगरूप गणिपिटक की, अणागए काले-अनागत काल में, अणंता जीवा-अनंत जीव, आणाए आराहित्ता- आज्ञा से आराधना करके, चाउरंतं संसारकतार-चार गतिरूप संसार कतार को, वीइवइस्संति-पार करेंगे। भावार्थ-इस प्रकार इस द्वादशांग गणिपिटक की अतीत काल में आज्ञा से आराधना करके अनन्त जीव संसार रूप जंगल को पार कर गए। ___ इसी प्रकार इस बारह अंग गणिपिटक की वर्तमान काल में परिमित जीव आज्ञा से आराधना करके चार गति रूप संसार को पार करते हैं। इसी प्रकार इस द्वादशांग रूप गणिपिटक की अनागत काल में आज्ञा से आराधना करके अनन्त जीव चारगति संसार को पार करेंगे। टीका-इस सूत्र में आज्ञा पालन करने का त्रैकालिक फल वर्णन किया है, जैसे कि जिन जीवों ने द्वादशांग गणिपिटक की सम्यक्तया आराधना की और कर गए, कर रहे हैं तथा अनागत काल में करेंगे, वे जीव चतुर्गति रूप संसार अटवी को निर्विघ्नता से उल्लंघन कर * 500 *

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