Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Bhagwan Mahavir Meditation and Research Center

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Page 531
________________ ‘षिधु संराद्धौ' धातु से भी सिद्ध शब्द बनता है। जिन्होंने आत्मीय गुणों को पूर्णतया विकसित कर लिया है, वे सिद्ध कहे जाते हैं, अनन्त पदार्थों के जानने के कारण, अनन्त कर्मांशों को जीतने के कारण, और अनन्त ज्ञानादिगुणोपेत होने के कारण सिद्ध भगवन्तों को अनन्त भी कहते हैं। केवलज्ञान और केवलदर्शन होने के कारण जो भावेन्द्रिय और भावमन से भी रहित हो गए हैं, उन्हें अनिन्द्रिय कहते हैं। क्योंकि द्रव्येन्द्रिय और द्रव्यमन ये औदयिक भाव में अन्तर्भूत हो जाते हैं। भावेन्द्रिय और भावमन ये क्षयोपशम भाव में निहित हो जाते हैं। सिद्धों में उक्त दोनों भावों का अभाव है, वे सदा सर्वदा क्षायिक भाव में ही वर्तते हैं। जो सर्व दोषों से मुक्त हो गए हैं, जिनकी कोई निन्दा नहीं करता, इस दृष्टि से सिद्धों को अनिन्दित भी कहते हैं। विश्व में ऐसी कोई उपमा नहीं है, जो सिद्धों के साथ पूर्णतया घटित हो सके। अतः - उन्हें अनुपम भी कहते हैं। ___ जो निःसीम आध्यात्मिक सुख का अनुभव करते हैं और सदा एक रस में रमण करते हैं ऐसे सिद्धों को आत्मोत्पन्नसुख भी कहते हैं। वे वैभाविक परिणति से तथा दोषलव से सर्वथा रहित हो गए हैं। अत: उन्हें अनवद्य भी कहते हैं। जन्म से रहित होने से अज वा अजन्मा, जरा से रहित होने के कारण अजर, मरण से रहित को अमर। इसी प्रकार निरंजन, निष्कलंक, निर्विकार, निर्वाणी, निरतंक, निर्लेप, निरामय, मुक्तात्मा, परमात्मा, और निरूपाधिक ब्रह्म ये सब शब्द एकार्थक होने से सिद्ध भगवन्त के वाचक हैं। इस प्रकार यावन्मात्र शब्द सिद्धों के लिए प्रयुक्त हो सकते हैं, वे सब एकार्थपद में समाविष्ट हो जाते हैं। हो सकता है, एकार्थकपद में इस प्रकार सिद्धों का स्वरूप वर्णित हो। ३. अर्थपद-जो अर्थ सिद्धों से सम्बन्धित हैं, ऐसे पदों को अर्थपद कहते हैं। क्योंकि सिद्ध शब्द अनेक अर्थ में रूढ़ है, जैसे कि जिन्होंने अनेक विद्याएं सिद्ध की हुई हैं, वे विद्यासिद्ध कहलाते हैं, जिन्होंने कठोर साधना के द्वारा मंत्रसिद्ध किए हैं, वे मंत्रसिद्ध कहलाते हैं। जो शिल्पकला में परम निपुण बन गए हैं, वे शिल्पसिद्ध कहलाते हैं। जिनके मनोरथ पूर्ण हो गए हैं, उन्हें मनोरथ सिद्ध कहते हैं। जिनकी यात्रा निर्विघ्नता से सफल हो गई, उन्हें यात्रा सिद्ध कहते हैं। जिनका जीवन ही आगम-शास्त्रमय हो गया है, उन्हें, आगम सिद्ध कहते हैं। जो कृषि-वाणिज्य, भवननिर्माण आदि करने में निपुण हैं, वे कर्मसिद्ध कहाते हैं। जिनके कार्य निर्विघ्नता से सिद्ध हो गए हैं, उन्हें कार्यसिद्ध कहते हैं। जिन्होंने विधिपूर्वक तप करके अनेक सिद्धियां प्राप्त की हैं, उन्हें तप सिद्ध कहते हैं। जिन्हें जन्म से ही ज्ञान और लब्धि उत्पन्न हो रही हैं, वे जन्म-सिद्ध कहलाते हैं। जिन्होंने तप और संयम से अष्टविध कर्मों का *522 *

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