Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Bhagwan Mahavir Meditation and Research Center

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Page 514
________________ तताऽपाहता .. ३. शुश्रूषते प्रतिपृच्छति, शृणोति गृह्णाति चेहते वाऽपि । ततोऽपोहते वा, धारयति करोति वा सम्यक् ॥ ९५ ॥ ४. मूकं हुंकारं बाढंकार, प्रतिपृच्छां विमर्शम् । ततः प्रसंगपरायणं च, परिनिष्ठा सप्तमके ॥ ९६ ॥ ५. सूत्रार्थः खलु प्रथमः, द्वितीयो नियुक्ति-मिश्रितो भणितः । __ तृतीयश्च निरवशेषः, एष विधिर्भवत्यनुयोगे ॥ ९७ ॥ तदेतदङ्गप्रविष्टम्, तदेतच्छ्रुतज्ञानम्, तदेतत्परोक्षज्ञानम् । ॥ सैषा नन्दी समाप्ता ॥ पदार्थ-अक्खर-अक्षरश्रुत-अनक्षरश्रुत, सन्नी-संज्ञीश्रुत-असंज्ञीश्रुत, सम्म-सम्यक्श्रुत और मिथ्याश्रुत, साइयं-सादि और अनादि श्रुत, खलु-अवधारणार्थ, च-और, सपज्जवसिअंसपर्यवसित-अपर्यवसित, गमिअं-गमिक और अगमिक, अंगपविट्ठ-अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य, एए-ये, सपडिवक्खा -सप्रतिपक्ष 14 भेद हैं। आगमसत्थग्गहणं-आगम शास्त्र का अध्ययन, जं-जो, अट्ठहि-बुद्धिगुणेहिं-बुद्धि के आठ गुणों से, दिलैं-देखा गया है, तं-उसको, पुव्वविसारया धीरा-पूर्व विशारद धीर आचार्य, सुअनाणलंभं श्रुतज्ञान का लाभ, बिंति-कथन करते हैं। - वे आठ गुण-सुस्सूसइ-विनययुत गुरु के वचन सुनने वाला, पडिपुच्छइ-विनययुत, प्रसन्नचित होकर पूछता है, सुणेइ-सावधानी से सुनता है, अ-और, गिण्हइ-सुनकर अर्थ ग्रहण करता है, ईहए याऽवि-ग्रहण के पश्चात् पूर्वापर अविरोध से पर्यालोचन करता है, च-समुच्चय अर्थ में, अपि से पर्यालोचन ग्रहण किया गया है, तत्तो-तत्पश्चात्, अपोहए व-"यह ऐसा ही है" इस प्रकार विचारकर फिर, धारेइ-सम्यक् प्रकार से धारण करता है, षा-अथवा, करेइ वा सम्म-सम्यक्तया यथोक्त अनुष्ठान करता है। ___. सुनने की विधि-मूअं-मूक बनकर सुने, हुंकारं वा-अथवा 'हुं' ऐसे कहे, अथवा 'तहत्ति' कहे, फिर, बाढंक्कारं-यह ऐसे ही है, पडिपुच्छइ-फिर पूछता है, पुनः, वीमंसा-विमर्श अर्थात् विचार करे, तत्तो-तत्पश्चात्, पसंगपरायणंच-उत्तर उत्तरगुण के प्रसंग में पारगामी होता है, परिणिट्ठ सत्तमए-पुनः गुरुवत् भाषण-प्ररूपण करे, ये सात गुण सुनने के हैं। व्याख्यान की विधि-सुत्तत्थो खलु पढमो-प्रथम अनुयोग सूत्र व अर्थ रूप, 'खलु' अवधारणार्थ में है, बीओ-दूसरा अनुयोग सूत्र स्पर्शिक नियुक्ति मिश्र, भणिओ-कहा गया है, य-और, तइओ-तृतीय अनुयोग, निरवसेसो-सर्व प्रकार नय-निक्षेप से पूर्ण, एस-यह, अणुओगे-अनुयोग में, विही होइ-विधि होती है। से त्तं अंगपविट्ठ-यह अंगप्रविष्ट श्रुत है, से त्तं सुयनाणं-यह श्रुतज्ञान है, से त्तं - *505* -

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