Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Bhagwan Mahavir Meditation and Research Center

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Page 493
________________ अथवा संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्दनय ये चार नय हैं, यहां इन से अभिप्राय नहीं। छिन्नच्छेद नय उसे कहते हैं जैसे कि जो पद व श्लोक दूसरे पद की अपेक्षा नहीं करता और . न दूसरा पद उस की अपेक्षा रखता है। इस प्रकार से जिस पद की व्याख्या की जाए, उसे छिन्नच्छेद नय कहते हैं। उदाहरण के लिए, जैसे___धम्मो मंगलमुक्किट्ठ-तथा छिन्नो-द्विधाकृतः-पृथक्कृतः, छेदः-पर्यन्तो येन स छिन्नच्छेदः, प्रत्येकं विकल्पितपर्यन्त इत्यर्थः, स चासौ नयश्च छिन्नच्छेदनयः। अब इन्हीं सूत्रों को अच्छिन्नच्छेद नय के मत से वर्णन करते हैं, जैसे धर्म सर्वोत्कृष्ट मंगल है। तब प्रश्न होता है कि वह कौन-सा ऐसा धर्म है जो सर्वोत्कृष्ट मंगल है ? इस के उत्तर में कहा जाता है कि "अहिंसा संजमो तवो" इस प्रकार कथन करने से दोनों पद सापेक्षिक सिद्ध हो जाते हैं। यद्यपि ये 22 सूत्र, सूत्र और अर्थ दोनों प्रकार से व्यवच्छिन्न हो चुके हैं, तदपि पूर्व परंपरागत इनका अर्थ उक्त प्रकार से किया गया है। तात्पर्य यह है कि जो पद स्वतन्त्र हो और जो पद दूसरे पद की अपेक्षा रखता हो, इस प्रकार के पदों व अर्थों से युक्त . . उपर्युक्त 88 सूत्र वर्णन किए गए हैं। वृत्तिकार ने त्रैराशिक मत आजीविक संप्रदाय को बताया है, न कि रोहगुप्त से प्रचलित संप्रदाय को। । ३. पूर्व मूलम्-से किं तं पुव्वगए ? पुव्वगए चउद्दसविहे पण्णत्ते, तंजहा-१. उप्पायपुव्वं, २. अग्गाणीयं, ३. वीरिअं, ४. अत्थिनस्थिप्पंवायं, ५. नाणप्पवायं, ६. सच्चप्पवायं, ७. आयप्पवायं, ८. कम्मप्पवायं, ९. पच्चक्खाणप्पवायं, १०. विज्जाणुष्पवायं, ११. अवंज्झं, १२. पाणाऊ, १३. किरिआविसालं, १४. लोकबिंदुसा। १. उप्पाय-पुव्वस्स णं दस वत्यू, चत्तारि चूलिआवत्थू पन्नत्ता, २. अग्गेणीय-पुव्वस्स णं चोहसवत्थू, दुवालस चूलिआवत्थू पण्णत्ता, ३. वीरिय-पुव्वस्स णं अट्ठ वत्थू, अट्ठचूलियावत्थू पण्णत्ता, ४. अत्थिनत्थिप्पवाय-पुव्वस्स णं अट्ठारस वत्थू, दस चूलियावत्थू पण्णत्ता, ५. नाणप्पवाय-पुव्वस्स णं बारस वत्थू पण्णत्ता, ६. सच्चप्पवाय-पुव्वस्स णं दोण्णि वत्थू पण्णत्ता, ७. आयप्पवाय-पुव्वस्स णं सोलस वत्थू पण्णत्ता, - *484*

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