Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Bhagwan Mahavir Meditation and Research Center

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Page 502
________________ * सिद्धगति प्राप्त की, इत्यादि विषय वर्णन किए गए हैं, इतना ही नहीं-मोक्ष सुख की प्राप्ति और उनके साधन इस प्रकार के विषय वर्णित हैं। इस अनुयोग में प्रथम बार सम्यक्त्व लाभ से लेकर यावन्मात्र उन जीवों ने भव ग्रहण किए, उन भवों में जो-जो आत्मकल्याण के लिए व प्राणिमात्र के हित को लक्ष्य में रखकर जो-जो शुभ क्रियायें कीं, उन सबका विस्तृत वर्णन किया है। शेष वर्णन सूत्रकर्ता ने मूलपाठ में स्वयं कर दिया है। इससे यह भली-भांति सिद्ध होता है कि जो तीर्थंकरों के जीवनचरित होते हैं, वे सर्व मूल प्रथमानुयोग में अन्तर्भूत हो जाते _____ वास्तव में जो सूत्रकर्ता ने 'मूलपढमाणुओगे' पद दिया है, इसका यही भाव है कि इस अनुयोग में सम्यक्त्व प्राप्ति से लेकर निर्वाण पद पर्यन्त पूर्णतया जीवनवृत्त कथन किया गया है। जैसे कि कहा है- “मूलं धर्मप्रणयनतीर्थकरास्तेषां प्रथमसम्यक्त्वावाप्तिलक्षणपूर्ववादिगोचरोऽनुयोगो मूलप्रथमानुयोगः। इस का भावार्थ पहले लिखा जा चुका है। ____ मूलम्-२. से किं तं गंडिआणुओगे? गंडिआणुओगे- कुलगरगंडिआओ तित्थयरगंडिआओ, चक्कवट्टिगंडिआओ, दसारगंडिआओ, बलदेवगंडिआओ, वासुदेवगंडिआओ, गणधरगंडिआओ, भद्दबाहुगंडिआओ, तवोकम्मगंडिआओ, हरिवंसगंडिआओ, उस्सप्पिणीगंडिआओ, ओसप्पिणीगंडिआओ, चित्तंतरगंडिआओ, अमर-नर-तिरिअ-निरय-गइ-गमण-विविहपरियट्टणाणुओगेसु, एवमाइआओ गंडिआओ आघविजंति, पण्णविजंति, से त्तं गंडिआणुओगे, से त्तं अणुओगे। ___ छाया-२. अथ कः स गण्डिकानुयोगः ? गण्डिकानुयोगे कुलकरगण्डिकाः, तीर्थकरगण्डिकाः, चक्रवर्त्तिगण्डिकाः, दशारगण्डिकाः, बलदेवगण्डिकाः, वासुदेवगण्डिकाः, गणधरगण्डिकाः, भद्रबाहुगण्डिकाः, तपःकर्मगण्डिकाः, हरिवंशगण्डिकाः, उत्सर्पिणीगण्डिकाः, अवसर्पिणीगण्डिकाः, चित्रान्तरगण्डिकाः, अमर-नर-तिर्यङ्-निरयगति-गमन-विविधपरिवर्तनानुयोगेषु, एवमादिका भावा गण्डिका आख्यायन्ते, प्रज्ञाप्यन्ते, स एव गण्डिकानुयोगः, स एषोऽनुयोगः। भावार्थ-शिष्य ने पूछा-वह गण्डिकानुयोग किस प्रकार है ? आचार्य उत्तर देते हैंगण्डिकानुयोग में कुलकरगण्डिका, तीर्थंकरगण्डिका, चक्रवर्तिगंडिका, दशारगंडिका, बलदेवगंडिका, वासुदेवगण्डिका, गणधरगण्डिका, भद्रबाहुगण्डिका, तपःकर्मगण्डिका, हरिवंशगण्डिका, उत्सर्पिणी गण्डिका, अवसर्पिणी गण्डिका, चित्रान्तरगण्डिका, देव, मनुष्य, तिर्यंच, नरकगति इनमें गमन और विविध प्रकार से संसार में पर्यटन इत्यादि गण्डिकाएं कही गयी हैं। इस प्रकार प्रज्ञापन की गयी है। यह वह गण्डिका अनुयोग है। टीका-इस सूत्र में गण्डिकानुयोग का वर्णन किया गया है। गण्डिका शब्द प्रबन्ध वा - *493*

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