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यह रत्न किस संज्ञा वाला है? इस में विशेष गुण क्या-क्या हैं? इसका मूल्य कितना हो सकता है? यह किस राशि वाले के लिए उपयोगी है? इस का स्वामी कौन सा ग्रह है ? यह किस के लिए हानिकारक है? इस जाति के भेदों में से यह किस भेद वाला है? इस प्रकार उस की गहराई में उतरना, यह साकारोपयोग का काम है और वही अन्तिम निर्णय देता है। अनाकार उपयोग प्रत्यक्ष अवश्य कर सकता है, किन्तु वह अन्तिम निर्णय नहीं देता। एक विशिष्ट औषध को चक्षुष्मान प्रत्यक्ष कर सकता है, किन्तु इस टिकिया में या इस बिन्दु में * क्या-क्या शक्ति है? इसमें किन-किन रोगों को उन्मूलन करने की शक्ति है? क्या - क्या इस
गुण हैं? इसमें किन-किन ओषधियों का मिश्रण है? इस का अवधिकाल कितना है? इस में दोष क्या-क्या हैं? इस प्रकार का ज्ञान, विशेष चिन्तन से या साकार उपयोग से होता है, अनाकार उपयोग से नहीं।
केवलज्ञान और केवलदर्शन दोनों ही सकल पारमार्थिक प्रत्यक्ष हैं। जीव- अजीव, रूपी - अरूपी, मूर्त-अमूर्त, दृश्य-अदृश्य, भाव- अभाव, ज्ञान-अज्ञान, भव्य - अभव्य, मिथ्यादृष्टि - सम्यग्दृष्टि, गति - अगति, धर्म-अधर्म, संसारी - मुक्त, सुलभबोधि- दुर्लभबोधि, आराधक - विराधक, चरमशरीरी - अचरमशरीरी, नवतत्त्व, षड्द्रव्य, सर्वकाल, सर्वपर्याय, हानि-लाभ, सुख-दु:ख, जीवन-मरण, अनन्त संसारी - परित्तसंसारी, परमाणु- महास्कन्ध, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श तथा संस्थान, संसार और संसार के हेतु, मोक्ष और मोक्ष के हेतु, 14 गुणस्थान और लेश्या, योग और उपयोग ये सब अनावरण ज्ञान-दर्शन के विषय हैं। दोनों उपयोग केवली के एक साथ होते हैं या क्रमभावी होते हैं? इस के विषय में प्रज्ञापना सूत्र में गौतम स्वामी के प्रश्न और भगवान महावीर के उत्तर विशेष मननीय हैं, जैसे कि
भगवन् ! जिस समय में केवली रत्नप्रभा पृथ्वी को जानता है, क्या उस समय रत्नप्रभा पृथ्वी को भी देखता है? भगवान् महावीर स्वामी ने कहा- नहीं। फिर प्रश्न शर्करप्रभा पृथ्वी के विषय में, फिर वालुकाप्रभा, इसी प्रकार सब पृथ्वियों, सौधर्म आदि देवलोकों एवं परमाणु से लेकर महास्कन्ध के विषय में भी प्रश्न करते हैं। इस से प्रतीत होता है कि केवली का उपयोग कभी रत्नप्रभा में, कभी सौधर्मस्वर्ग पर और कभी ग्रैवेयक पर, कभी परमाणु पर तथा कभी स्कन्ध पर पहुंचता है। यदि केवली सदा-सर्वदा सभी काल, सभी क्षेत्र, सभी द्रव्य और सभी भावों अर्थात् सभी पर्यायों को एक साथ जानता व देखता तो रत्नप्रभा आदि के अलगअलग प्रश्न न किए जाते। इस से पता चलता है कि केवली का जब कभी ज्ञान में उपयोग होता है, तब एक साथ सब द्रव्य और पर्यायों पर नहीं, अपितु किसी परिमित विषय पर ही होता है। हां, उन में सर्व द्रव्य और सर्वपर्यायों के जानने की लब्धि होती है। इसी प्रकार ‘पश्यति' क्रिया के विषय में भी जानना चाहिए। इस विषय में सूत्र का वह पाठ निम्नलिखित है
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