Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Bhagwan Mahavir Meditation and Research Center

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Page 468
________________ ज्ञाताधर्मकथा में चरण-करण की विशिष्ट प्ररूपणा की गयी है, यही ज्ञाताधर्मकथा का स्वरूप है। सूत्र ५१ ॥ टीका - इस सूत्र में छठे अंग का संक्षिप्त परिचय दिया है। इसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं। इस अंग का नाम ज्ञाताधर्मकथा है। यह नाम तीन पदों से युक्त है, इसका सारांश इतना ही है ज्ञाता का अर्थ यहां उदाहरणों के लिए प्रयुक्त किया गया है। इतिहास, दृष्टान्त, उदाहरण इन सबका अन्तर्भाव ज्ञाता में हो जाता है। जो इतिहास उदाहरण, धर्म कथाओं से अनुरंजित हो, अथवा जिस 'धर्मकथा में मुख्यतया उदाहरण ऐसे दिए गए हों जिन के सुनने से या अध्ययन करने से श्रोता और अध्येता का जीवन धर्म में प्रवृत्त हो जाए, उसे ज्ञाताधर्मकथा कहते हैं। अथवा पहले श्रुत-स्कन्ध का नाम ज्ञाता है और दूसरे श्रुतस्कन्ध का नाम धर्मकथा है। इतिहास तो प्रायः वास्तविक ही होते हैं, किन्तु दृष्टान्त, उदाहरण, कथा, कहानियां वास्तविक भी होते हैं और काल्पनिक भी । सम्यग्दृष्टियों के लिए सम्पूर्ण विश्व, शिक्षणालय तथा शिक्षक है। मिथ्यादृष्टि के लिए उपर्युक्त सभी उदाहरण पतन के कारण हैं, वह अमृत को विष समझता है और विष को अमृत, यह दोष विष या वस्तुओं का नहीं है, अपितु दृष्टि का है। सम्यग्दृष्टि अमृत को अमृत समझता है और अपने ज्ञान प्रयोग से विष को भी अमृत बना देता है। ज्ञाताधर्मकथा में पहले श्रुतस्कन्ध के अन्तर्गत 19 अध्ययन हैं और दूसरे श्रुतस्कन्ध में 10 वर्ग हैं, प्रत्येक वर्ग में अनेकों अध्ययन हैं। प्रत्येक अध्ययन में एक कथा है और अन् में उस कथा या दृष्टान्त से मिलने वाली शिक्षाएं बताई गई हैं। कथाओं में पात्र के नगर, उद्यान, प्रासाद, शय्या, समुद्र, स्वप्न, धर्म साधना के प्रकार और अपने कर्त्तव्य से फिसलते हुए भी पुनः संभल जाना, अढाई हजार वर्ष पूर्व भारतीय लोगों का जीवन उत्थान या पतन की ओर कैसे बढ़ रहा था, कुमार्ग से हट कर सुमार्ग में कैसे लगे और सुमार्ग को छोड़कर कुमार्ग में पड़ने से उनकी दशा कैसी हुई तथा वे धर्म के आराधक कैसे बने, ठीक तरह से आराधना करते हुए विराधक कैसे बने, उनका अगला जन्म कहां और कैसा रहा, इन सबका इस सूत्र में सविस्तार विवेचन किया गया है। इस सूत्र में कुछ महावीर के युग में होने वाले इतिहास हैं, कुछ अरिष्टनेमि 22वें तीर्थंकर का समकालीन इतिहास है । कुछ महाविदेह क्षेत्र से सम्बन्धित इतिहास है और कुछ पार्श्वनाथ के शासन काल का इतिहास है, तथा तुम्बे और चन्द्र आदि के उदाहरण सर्व देश कालावनच्छिन्न हैं। 8वें अध्ययन में 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ के पंच कल्याणकों का वर्णन है। 16वें अध्ययन में द्रौपदी के पूर्व जन्म की कथा विशेष ध्यान देने योग्य है और उसके वर्तमान एवं भावी जीवन का विवरण है। दूसरे स्कन्ध में सिर्फ पार्श्वनाथ जी के शासन में साध्वियों का गृहस्थ अवस्था का जीवन और साध्वी जीवन तथा भविष्य में जीवन कैसा रहा, इसका बड़े सुन्दर एवं न्यायपूर्ण शैली से वर्णन किया है। ज्ञाता कथांग की भाषा शैली बहुत ही सुन्दर है, इसमें प्रायः सभी प्रकार के रसों का वर्णन मिलता है। शब्दालंकार और अर्थालंकारों से यह सूत्र विशेष महत्त्वपूर्ण है। शेष परिचय भावार्थ में दिया जा चुका है ।। सूत्र 51 ॥ *459*

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