Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Bhagwan Mahavir Meditation and Research Center

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Page 412
________________ ज्ञाताधर्मकथाः, ७. उपासकदशाः, ८. अन्तकृद्दशाः, ९. अनुत्तरौपपातिकदशाः, १०. प्रश्नव्याकरणानि, ११. विपाक् श्रुतम् १२. दृष्टिवादः, इत्येतद् द्वादशांगगणिपिटकंचतुर्दश- पूर्विणः सम्यक् श्रुतम्, अभिन्न- दशपूर्विणः सम्यक् - श्रुतं, ततः परं भिन्नेषु भजना, तदेतत् सम्यक् श्रुतम् ॥ सूत्र ४१ ॥ पदार्थ-से किं तं सम्मसुअं- अथ वह सम्यक् श्रुत क्या है ?, सम्मसुअं- सम्यक् - श्रुत, उप्पण्णनाणदंसणधरेहिं - उत्पन्न ज्ञान - दर्शन को धरने वाले, तिलुक्क - त्रिलोक द्वारा, निरिक्खिअ - आदरपूर्वक देखे हुए, महिअपूइएहिं - भावयुक्त नमस्कृत्य पूज्य, तीयपडुप्पण्ण-मणागय-अतीत, वर्तमान और अनागत के, जाणएहिं - जानने वाले, सव्वण्णूहिंसर्वज्ञ और, सव्वदरिसीहिं सर्वदर्शी, अरहंतेहिं - अर्हंत, भगवंतेहिं - भगवन्तों द्वारा पणीअं-प्रणीत- अर्थ से कथन किया हुआ, जं- जो, इमं - यह, दुवालसंगं- द्वादशांगरूप, गणिपिडगंगणिपिटक है, जैसे-आयारो - आचारांग, सूयगडो - सूत्रकृतांग, ठाणं - स्थानांग, समवाओसमवायांग, विवाहपण्णत्ती - व्याख्याप्रज्ञप्ति, नायाधम्मकहाओ - ज्ञाताधर्मकथांग, उवासगदसाओ - उपासकदशांग, अंतगडदसाओ - अन्तकृद्दशांग, अणुत्तरोववाइयदसाओअनुत्तरौपपातिकदशांग, पण्हावागरणाई - प्रश्नव्याकरण, विवागसुअं-विपाकश्रुत, दिट्ठि वाओ - दृष्टिवाद, इच्चेअं - इस प्रकार यह, दुवालसंगं- द्वादशांग, गणिपिडगं - गणिपिटक, चोद्दस-पुव्विस्स-चतुर्दशपूर्वधारी का सम्मसुअं- सम्यक् श्रुत है, अभिण्णदसपुव्विस्ससम्पूर्ण-दशपूर्वधारी का, सम्मसुअं - सम्यक् श्रुत है, तेण परं - उसके उपरान्त, भिण्णेसु - दशपूर्व से कम धरने वालों में, भयणा - भजना है। से त्तं सम्मसुअं - इस प्रकार यह सम्यक् श्रुत है। · भावार्थ- गुरु से प्रश्न किया- गुरुदेव ! वह सम्यक् श्रुत क्या है ? उत्तर देते हुए गुरुजी बोले - सम्यक् श्रुत उत्पन्न ज्ञान और दर्शन को धरने वाले, त्रिलोकभवनपति, व्यन्तर, विद्याधर, ज्योतिष्क और वैमानिकों द्वारा आदर - सन्मानपूर्वक देखे गए, तथा यथावस्थित उत्कीर्तित, भावयुक्त नमस्कृत, अतीत, वर्तमान और अनागत के जानने वाले. सर्वज्ञ और सर्वदर्शी अर्हत- तीर्थंकर भगवन्तों द्वारा प्रणीत- अर्थ से कथन किया हुआ, जो यह द्वादशांगरूप गणिपिटक है, जैसे १. आचारांग, २. सूत्रकृतांग, ३. स्थानांग, ४. समवायांग, ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति, ६. ज्ञाताधर्मकथांग, ७. उपासकदशांग, ८. अन्तकृद्दशांग, ९. अनुत्तरौपपातिकदशांग, १०. प्रश्नव्याकरण, ११. विपाकश्रुत और, १२. दृष्टिवाद, इस प्रकार यह द्वादशांग गणिपिटक चौदह पूर्वधारी का सम्यक् श्रुत होता है। सम्पूर्ण दशपूर्वधारी का भी सम्यक् श्रुत होता है। : उससे कम अर्थात् कुछ कम दशपूर्व और नव आदि पूर्व का ज्ञान होने पर भजना अर्थात् सम्यक् श्रुत हो और न भी हो। इस प्रकार यह सम्यक् श्रुत का वर्णन पूरा हुआ ॥ सूत्र ४१ ॥ 403

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