Book Title: Nandi Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Bhagwan Mahavir Meditation and Research Center

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Page 462
________________ से णं अंगठ्ठयाए चउत्थे अंगे, एगे सुअखंधे, एगे अज्झयणे, एगे उद्देसणकाले, एगे समुद्देसणकाले, एगे चोआले सयसहस्से पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइआ जिणपन्नत्ता भावा आघविज्जति, पन्नविज्जति, परूविज्जंति, दंसिज्जति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति। से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करण-परूवणा आघविज्जइ, से तं समवाए ॥ सूत्र ४९ ॥ छाया-अथ कोऽयंसमवायः ? समवायेन जीवाः समाश्रीयन्ते, अजीवाः समाश्रीयन्ते, जीवाऽजीवाः समाश्रीयन्ते स्वसमयः समाश्रीयते, परसमयः समाश्रीयते, स्वसमय-पर-समयौ समश्रीयेते, लोकः समाश्रीयते, अलोकः समाश्रीयते, लोकाऽलोको समाश्रीयेते। समवाये एकादिकानामेकोत्तरिकाणां स्थान-शत-विवर्द्धितानां भावानां प्ररूपणाऽऽख्यायते, द्वादशविधस्य च गणि-पिटकस्य पल्लवाग्रः समाश्रीयते। समवायस्य परीता वाचनाः, संख्येयान्यनुयोगद्वाराणि, संख्येयाः वेढाः, संख्येया श्लोकाः, संख्येयाः नियुक्तयः, संख्येयाः संग्रहण्यः, संख्येयाः प्रतिपत्तयः। : सः अंगर्थतया चतुर्थमंगम् एकः श्रुतस्कन्धः, एकमध्ययनम्, एकः उद्देशनकालः, एकः समुद्देशनकालः, एकंचतुश्चत्वारिंशदधिकंशत सहस्रंपदाग्रेण, संख्येयान्यक्षराणि, अनन्ता गमाः अनन्ताः पर्यवाः, परीतास्त्रसाः, अनन्ताः स्थावराः,शाश्वत-कृत-निबद्धनिकाचिता जिन-प्रज्ञप्ता भावा आख्यायन्ते, प्रज्ञाप्यन्ते, प्ररूप्यन्ते, दर्श्यन्ते, निदर्श्यन्ते, उपदर्श्यन्ते। . स एवमात्मा, एवं ज्ञाता, एवं विज्ञाता, एवं चरण-करण-प्ररूपणाऽऽख्यायते, स एवं समवायः। सूत्र ॥४९॥ - भावार्थ-शिष्य ने पूछा-भगवन् ! समवाय-श्रुत का विषय क्या है ? आचार्य उत्तर में बोले-समवायांगसूत्र में यथावस्थित रूप से जीव, अजीव और जीवाजीव आश्रयण किए जाते हैं। स्वदर्शन, परदर्शन और स्व-परदर्शन आश्रयण किए जाते हैं। लोक, अलोक और लोकालोक आश्रयण किए जाते हैं। समवायांग में एक से वृद्धि करते हुए सौ स्थान तक भावों की प्ररूपणा की गई है और द्वादशांगगणिपिटक का संक्षेप में परिचय आश्रयण किया गया है अर्थात् वर्णित समवायांग में परिमित वाचना, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तिएं, संख्यात संग्रहणिएं तथा संख्यात प्रतिपत्तिएं हैं। - *453* -

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