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अर्जुन मुनि ने छः महीने में ही ग्यारह अंगों का अध्ययन कर लिया। धन्ना अणगार जो कि कांकदी नगरी के वासी थे, उन्होंने 9 महीने में ही 11 अंगों का अध्ययन कर लिया। यदि पद परिमाण की गणना 11 अंग सूत्रों में दिगम्बर आम्नाय के अनुसार की जाए तो एक पद का ज्ञान होना भी असंभव है, जब कि 11अंगों में करोड़ों की संख्या में पद हैं। और एक पद 16348307888 अक्षरों का होता है, जिसको मध्यमपद भी कहते हैं। .. .
हां,यदि ऋषभदेव भगवान के युग में इतने अक्षरों के परिमाण को पद कहा जाए तो कोई अनुचित न होगा, किन्तु भगवान महावीर के युग में यह उपर्युक्त मान्यता कदापि संगत नहीं बैठती है। आदिनाथ भगवान के युग में मनुष्यों की जो अवगाहना, आयु, बौद्धिकशक्ति और वज्रऋषभनाराच संहनन थे, यह सब काल के प्रभाव से क्षीण होते गए। महावीर के युग तक अधिक न्यूनता आ गई। अतः सिद्ध हुआ कि महावीर स्वामी के युग में जो अंगों में पद परिमाण आया है,वह उक्त विधि के अनुसार ही घटित हो सकता है, दिगम्बर आम्नाय के अनुसार नहीं। काल के प्रभाव से पद की परिभाषा बदलती रहती है, सदाकाल पद की परिभाषा एक जैसी नहीं रहती, क्योंकि आयु, बौद्धिक शक्ति, तथा संहनन के अनुसार ही पद की परिभाषा बनती रहती है। पद गणना सब तीर्थंकरों के एक जैसी रहती है, किन्तु उसकी परिभाषा बदलती रहती है। बारह अंग सूत्रों की पद संख्या सूत्रों के नाम श्वेताम्बर
दिगम्बर आचारांग
18000
18000 सुयगडांग
36000
36000 ठाणांग
72000
42000 समवायांग
144000 .
164000 भगवती
288000
228000 ज्ञाताधर्मकथांग
576000
556000 उपासकदशांग 1152000
117000 अन्तगडदशांग 2304000
2328000 अनुत्तरौपपातिक 4608000
9244000 प्रश्नव्याकरण
9216000
9316000 विपाकसूत्र
18432000
18400000. पूर्वस्थ पद संख्या 832680005
1086856005
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