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और किसी को चार ज्ञान होने पर ही केवलज्ञान होता है, क्योंकि केवलज्ञान क्षायिक लब्धि
संज्ञी के 900 भवों को जातिस्मरण ज्ञान के द्वारा मनुष्य ही जान सकता है, यह मतिज्ञान की उत्कृष्टता है। प्रतिपूर्ण दृष्टिवाद का ज्ञान भी मनुष्य ही अध्ययन कर सकता है, यह श्रुतज्ञान की उत्कृष्टता है, परमावधिज्ञान या अप्रतिपाति अवधिज्ञान भी मनुष्य ही प्राप्त कर सकता है, अन्य गतियों के जीव नहीं। विपुलमति मनःपर्यवज्ञान मनुष्य को तब हो सकता है, जब वह केवलज्ञान होने के अभिमुख होता है, अन्यथा मध्यम तथा जघन्य ज्ञान में रहता है, उत्कृष्ट तक नहीं पहुंचने पाता। यह भी कोई नियम नहीं है कि क्षयोपशमजन्यज्ञान उत्कृष्ट हुए बिना केवलज्ञान नहीं होता। नियम यह है कि क्षयोपशमजन्यज्ञान की उत्कृष्टता से नियमेन उसी भव में केवलज्ञान हो जाता है। साकार और अनाकार उपयोग की परिभाषा
_ 'उप' पूर्वक युज्-युञ्जने धातु, भाव में घञ् प्रत्ययान्त होने से उपयोग शब्द बनता है। जिसके द्वारा जीव वस्तुतत्त्व को जानने के लिए व्यापार करता है, उसे उपयोग कहते हैं। जीव का बोध रूप व्यापार ही उपयोग कहलाता है।' अथवा जो अपने विषय को व्याप्त कर दे, उसे उपयोग कहते हैं। वह उपयोंग दो भागों में विभक्त है-जैसे कि साकारोपयोग और अनाकारोपयोग। इनके विषय में विभिन्न धारणाएं हैं___ 1. जिस उपयोग का विषय भिन्न पदार्थ होता है, वह साकारोपयोग है और जिसका विषय भिन्न पदार्थ नहीं पाया जाता, वह अनाकारोपयोग है।
2. घट-पट आदि.बाह्य पदार्थों का जानना साकारोपयोग है और बाह्य पदार्थों को ग्रहण करने के लिए.स्वप्रत्ययरूप प्रयत्न का होना अनाकारोपयोग है।
3. पर्यायार्थिक की अपेक्षा साकारोपयोग है और द्रव्यार्थिक की अपेक्षा अनाकारोपयोग कहलाता है। ___4. सचेतन और अचेतन वस्तु में उपयुक्त आत्मा जब वस्तु को पर्याय सहित जानता है, तब वह साकारोपयोग है और जब पर्यायरहित सिर्फ अखण्ड वस्तु को सामान्य बोधरूप व्यापार से ग्रहण करता है, तब उसे अनाकारोपयोग कहते हैं। अब केवलज्ञानी के उपयोग के विषय में निरूपण किया जाता है।
___ 1. केवलज्ञान और केवलदर्शन दोनों ही पारमार्थिक प्रत्यक्ष हैं, जिसके मल-अवरणविक्षेप का सर्वथा अभाव हो गया, उसमें साकारोपयोग और अनाकारोपयोग कैसे घटित होता है? इसका समाधान यूं किया जाता है-जब केंवली सचेतन और अचेतन द्रव्य का प्रत्यक्ष
1. उपयुज्यते वस्तुपरिच्छेदं प्रतिव्यापार्यते जीवोऽनेनेत्युपयोगः-प्रज्ञापना सूत्र पद 29 वां-वृत्ति। ..
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